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मेरी चंडीगढ़ यात्रा (पार्ट 3, रोज गार्डेन और छतबीर ज़ू )

मेरी चंडीगढ़ यात्रा (पार्ट 3, रोज गार्डेन और छतबीर ज़ू)

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दिनांक:- 22-26 जनवरी 2020

रोज गार्डेन और एलांते मॉल
दिनांक:- 22 जनवरी 2020

   आज भी सुबह की शुरुआत नित्य शाखा से हुई। आज संघ का नगर अभ्यास वर्ग था जिसमें नगर के सभी शाखाओं के कुछ खास कार्यकर्ता एक ही शाखा में इक्कठा होते है और कुल 1:30 घण्टे का शाखा लगता है। इसके लिए कार्यालय के पास के ही एक कार्यकर्ता अपनी कार लेकर आ गए क्योंकि वह शाखा वहाँ से दूर सेक्टर 21 में लगती थी।
आज मेरा वहाँ एक निजी कार्य था सो शाखा से आने के बाद तैयार होकर कार्यालय से जल्दी ही निकल गया और अपना काम निपटाकर दोपहर लगभग 01 बजे तक मैं खाली हो गया।
उसके बाद आज नजदीक ही स्थित जाकिर हुसैन रोज गार्डेन घूमने का प्लान बनाया। वह एक बहुत बड़ा पार्क है जहाँ गुलाबों की कुल 1600 किस्मों को लगाया गया है। यहाँ कोई एंट्री फ़ी नहीं थी।
पार्क में प्रवेश करने पर इसे बहुत अच्छे से सजाया हुआ लगता था लेकिन मुझे उतने ज्यादा गुलाब नहीं दिखे जितना कल्पना किया था, अधिकांश फूल लगता था खिले ही नहीं थे। जगह-जगह पौधे रोपे जरूर गए थे और उसमें पानी भी डाला जा रहा था लेकिन फूल बहुत कम जगह थे। हो सकता है आने वाले वसंत ऋतु में खिले। पूरे पार्क में इधर उधर घूम कर एक दो घण्टे बिताए फिर यहाँ का एलांते मॉल जिसे उत्तर भारत का दूसरा सबसे बड़ा मॉल भी कहा जाता है घूमने का विचार आया। वहाँ जाने के लिए मैंने वही से रैपीडो की बाइक सर्विस बुक की और पहुँच गया मॉल के पास। वैसे वहाँ कोई भी वस्तु खरीदने की मेरी कोई इच्छा थी नहीं लेकिन केवल अंदर घूमते-घूमते ही दो घण्टे निकल गए। उसके बाद वही pvr में तन्हा जी मूवी लगा था जिसे देखने का मन बन गया जिससे उधर से लौटने में रात के 9 बज गए।

छतबीर ज़ू भ्रमण और वापसी
दिनांक:- 23-26 जनवरी 2020

मेरा यहाँ का सारा निजी कार्य खत्म हो गया था सो मेरे पास बस आज का ही समय था जिसमें मैं कुछ और घूम  सकता था। इसलिए आज मैंने यहाँ का चिड़ियाघर छतबीर जू देखने का मन बनाया। रोज की तरह ही सुबह उठ कर शाखा गए फिर वहाँ से लौट कर स्नान इत्यादि कर कार्यालय से निकल गए और बाहर वही आलू पराठा का नास्ता कर सेक्टर 17 स्थित बस स्टैंड की ओर चल दिए। वहाँ से 11 बजे छतबीर जू के लिए बस पकड़ा जो कि वहाँ से 14 किमी था। 12 बजे तक मैं जू में था।
इससे पहले मैं पटना और दिल्ली का चिड़ियाघर घूम चुका था लेकिन यह चिड़ियाघर उनदोनो से अलग था। घुसते ही मेरा सामना सड़क पर चलते मोर और खुले में इधर-उधर टहलते हिरणों से हुई मानों मैं कोई वन्य जीव अभ्यारण में आया हूँ। वहाँ कृतिम रूप में जंगल बना कर बहुत सारे पशु पक्षियों को खुले में ही छोड़ दिया गया था। पटना या दिल्ली में सब चीजें बाड़े के अंदर ही दर्शन करने को मिलते थे।

घूमते-घूमते मैं एक ऐसे पक्षीघर में पहुँच गया जहाँ उड़ने वाले पंछी भी खुले में थे। उस पक्षी घर के प्रवेशद्वार पर बहुत सारे लोहे के सीकड़ लटकाए हुए थे जिससे कि कोई पर्यटक तो अंदर-बाहर जा सकता था लेकिन कोई पक्षी नहीं। अंदर तोता वैगेरह बहुत सारे पक्षी बिना पिंजरे के ही थे। बाहर निकलने पर मुझे एक ऐसा पेड़ दिखा जिस पर सैकड़ो चमगादड़ उल्टा लड़के हुए थे। हालांकि ये पेड़ खुले में थे, लेकिन एक साथ इतने सारे चमगादड़ वो भी खुले में मैंने पहली बार ही देखा था। अगर कुल क्षेत्रफल की बात की जाए तो यह पटना से छोटा और दिल्ली के चिड़ियाघर से थोड़ा ही बड़ा होगा।
2 बजे तक मैंने पूरा चिड़ियाघर घूम लिया था, बाहर निकला तो चंडीगढ़ के लिए एक बस लगी थी, सो तुरंत चढ़ गया। 3 बजे तक मैं चंडीगढ़ कार्यालय पर था। अभी तक मैंने लगभग सभी माने-जाने वाले जगहों पर घूम आया था इसलिए अब घूमने की इच्छा शेष नहीं रही अतः अब वापस लौटने की योजना बनाने लगा।
अगले दिन 24 को हमने चंडीगढ़ से दिल्ली के लिए ट्रेन पकड़ लिया, दिल्ली में मेरा एक दोस्त अनमोल रहता है वही रात बिताई और अगले दिन 25 के शाम को मगध एक्सप्रेस से वापस बक्सर की ओर चल दिए।

(नोट:- इस पूरे यात्रा के दौरान अपने संस्मरण को मैंने कई भागों में इस ब्लॉग में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, उन सभी के लिंक नीचे मिल जाएंगे)

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This Post Has 3 Comments

  1. Sushant Singhal

    मुझे छतबीर ज़ू के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा! इस बार चंडीगढ़ जाना होगा तो अवश्य देखूंगा।

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