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मेरी चंडीगढ़ यात्रा (पार्ट 2, सुखना झील एवं रॉक गार्डेन भ्रमण)

मेरी चंडीगढ़ यात्रा (पार्ट 2, सुखना झील एवं रॉक गार्डेन भ्रमण)

दिनांक- 21 जनवरी 2020 (मंगलवार)

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आज दिन की शुरुआत राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शाखा से हुई। वहाँ बगल के ही एक पार्क में रोज सुबह 6:30 बजे से शाखा लगता था। जहाँ प्रायः आसपास के बुजुर्ग व्यायाम इत्यादि के मकसद से आते थे। शहर में कुल 4 शाखा ही थी जिसमें 3 बुजुर्गों की ही थी। शहर में ज्यादातर आबादी सेवानिवृत्त कर्मचारियों की ही है इसलिए भी ऐसा है। शाखा में जाने से सामूहिक रूप से व्यायाम तो हो ही गया लेकिन इसके चलते वहाँ के कई प्रतिष्ठित लोगों से परिचय भी हो गया। जिसमें एक महोदय की तो अपनी इंजीनियरिंग कॉलेज थी और उसमें 80% करीब 1200 छात्र कश्मीर घाटी से थे। वे अभी हाल ही में कश्मीर घाटी का दौरा करके आए थे। ऐसे समय में जब धारा 370 निष्प्रभावी होने के बाद, उपद्रव रोकने के लिए लागू हुए प्रतिबंधों के कारण घाटी लगभग पूरी दुनिया से कटा हुआ है तब उनका कश्मीर दौरा और उनके द्वारा वहाँ का अनुभव सुनना, बहुत ही रोचक लगा।
वहाँ जनजीवन लगभग सामान्य हो चुका था, आवागमन भी सामान्य हो चली थी और बाजारे नियमित रुप से खुल रही थी। उनकी टीम द्वारा कई घरों में डोर टू डोर संपर्क अभियान भी चलाया गया था, जहाँ उन्होंने बताया कि वहाँ के लोगो का माइंडसेट पूरी तरह हिन्दू विरोधी हो गया है लेकिन इनलोगों का अपना अनुभव यह था कि यह सब उचित संवाद के कमी के कारण ज्यादा हो रहा है क्योंकि उनलोगों के प्रयास स्वरूप वहाँ कई परिवार यह स्वीकारते नजर आए कि हिन्दुओ के साथ सहआस्तित्व से रहना ही सही है लेकिन इस कार्य को बड़े स्तर पर करना होगा क्योंकि वहाँ के स्थानीय नेता तो यह खाई को और बढ़ाने में ही लगे रहते है।
सुबह शाखा से आने के बाद वहाँ ठहरे सभी लोग तैयार हो अपने-अपने गंतव्य स्थान की ओर चल दिए। वहाँ हम सबने निकलते ही सबसे पहले एक चलती फिरती दुकान से आलू पराठा का नास्ता किया। वहाँ बाकी के रेस्तरां में या अन्य बढ़िया जगह हर चीज बहुत महंगी मिल रही थी।

Ganish Ji Jo Amritsar ke the karyalay me mere sath thahre hue the

इस बीच वहाँ हमने पहली बार ही कोई व्यवस्थित नगर देखा था, सभी घर एक समान ऊँचाई के थे। सभी सड़के पर्याप्त चौड़ी थी, और थोड़ी थोड़ी दूर पर एक दूसरे से मिल रही थी। सड़को के किनारे साइकिल ट्रैक भी बने थे और दोनों ओर बहुत सारे वृक्ष लगाए गए थे। इससे कुछ-कुछ ये भी समझ आ रहा था कि इतना शख्त नियम होगा कि शहर में जल्दी कोई नया निर्माण भी नहीं हो पा रहा होगा। जो पहले व्यवस्थित तरीके से बन गया वही होगा। बाकी चंडीगढ़ के बाहर के दोनों शहरों में ऊँची ऊँची अपार्टमेंटो की भरमार थी। लेकिन वहाँ शायद ही कोई आवासीय परिसर दिखा जो निर्धारित ऊँचाई से ज्यादा हो।
आज मेरा पूरा दिन कोई काम नहीं था सो सोचा कि यहाँ के दोनों प्रमुख जगहों पर एक ही दिन में घूम लिया जाए। इसलिए सबसे पहले मैंने सुखना झील जाने का कार्यक्रम बनाया। यहाँ 17 सेक्टर में एक बस स्टैंड थी जहाँ से हर जगह की बस मिलती थी। चंडीगढ़ में अगर आप 60 रु का एक टिकट खरीद लेंगे तो पूरे दिन कहि भी बस में आना जाना फ्री हो जाता है। मैंने पूरे दिन वाला टिकट तो खरीद लिया लेकिन 20 रु से ज्यादा का इस्तेमाल नहीं किया होऊँगा।
वहाँ सेक्टर 17 स्थित बस स्टैंड पहुँचने के बाद एक बस वाले से ही सुखना झील वाली बस के बारे में पूछा जिसने मुझे बस के बारे में बताते हुए बोला कि इतनी नंबर की एक लाल बस आएगी उसी में बैठ जाना। थोड़ी ही देर इंतेजार के बाद वो वाली बस आ भी गई। उस बस कि कंडक्टर एक महिला थी और यह वहाँ के लिए आम बात थी। लेकिन मैंने यह तो पहली ही बार देखा था।

सुखना झील:-

लगभग 11 बजे मैं सुखना झील पहुँच गया था। वह मानव निर्मित झील थी जिसे उस नगर के वास्तुकारों द्वारा वहाँ के लोगों को प्रकृति का आनंद लेने के लिए बनाया गया था। जिसमें चारों ओर बांध बनाकर उसमें पानी भरा गया था। झील के उत्तर में जंगल भी लगाया था। झील के चारों ओर पेड़-पौधों द्वारा अद्भुद सजावट की गई थी और लोगो को चलने के लिए एक खूबसूरत ट्रैक भी बनाया गया था जो झील के किनारे-किनारे अर्धवृत्ताकार बनाते हुए लगभग 3 किमी लंबी बनी थी।
वहाँ झील में और झील के आसपास मनोरंजन की हर सामग्री उपलब्ध थी जो पर्यटकों को लुभाती हो। मैंने उस झील के किनारे बने लंबे ट्रैक पर धीरे-धीरे चलना शुरू कर दिया और 12 बजे के आसपास उसके दूसरे छोर पर पहुँच गया जहाँ से जंगल शुरू हो रहा था। वहाँ जंगल भी में कुछ दूर तक पर्यटकों के जाने का रास्ता बना हुआ था।

वह झील पक्षियों के कई प्रकार के प्रजातियों का स्थायी निवास भी था। वास्तव में सारी शाँति तो वही थी क्योंकि सारे पर्यटक तो बस झील के किनारे वाले पक्के ट्रैक तक ही घूम कर वापस चले जा रहे थे और बहुत तो 3 किमी दूर पैदल आने का जहमत भी नहीं उठाते होंगे। वहाँ जंगल में इधर-उधर खूब घुमा, वहाँ सिर्फ और सिर्फ पक्षियों के कोलाहल के अलावा और कोई भी नहीं था। ऐसे-ऐसे पक्षी दिख रहे थे जिसे मैंने पहली बार ही देखा होगा। उधर करीब एक घण्टा बिताने के बाद, झील के प्रवेश द्वार की ओर फिर उसी तरह पैदल ही वापस चल दिया। पुनः 3 किमी चलने के बाद पूरी तरह थक गया था। तब तक 2 बज गए थे लेकिन आज ही मैंने रॉक गार्डेन भी घूमने को सोच रखा था सो तुरंत ही वहाँ से रॉक गार्डेन की ओर चल दिया। वह झील के बगल में ही था, वहाँ अंदर जाने के लिए 30 रु प्रवेश शुल्क था।

रॉक गार्डेन:-

रॉक गार्डन जैसा कि नाम से ही पता चलता है पत्थरों का बगीचा। वह विस्तृत क्षेत्र में फैला पत्थरों से बनाई गई कलाकृतियों से भरा अद्भुद जगह था। जैसे-जैसे उसमें आगे बढ़ते जाते थे विष्मयकारी कलाकृतियों के दर्शन होते जाते थे, न जाने कितने साल लग गए होंगे इसके निर्माण में। वहाँ बहुत सारे कृतिम गुफा और झरने बनाए गए थे जिससे वह एक प्राकृतिक जगह होने का अहसास करा रहा था। वहाँ एक अभी 3rd फेज का काम चल ही रहा था, जिसमें एक डॉल हाउस था। उसमें कपड़ो के कलाकृतियों के माध्यम से अद्भुद ग्रामीण जन जीवन को दर्शाया गया था। इसके अलावे वहाँ मछलीघर, साँपघर इत्यादि भी था। इन सारी चीजों को पूरा घूमने में लगभग 3 घण्टा लग गए, तब तक 5 बज गया था। जब बाहर आया तो बहुत देर तक बस का इंतजार किया लेकिन वो आया ही नहीं और टेम्पू बिना रिज़र्व के जा नहीं रहे थे। ऐसे समय में मुझे रपीडो का ख्याल आया और तुरंत एक बाइक के लिए रिक्वेस्ट कर दिया। 5 मिनट के भीतर ही एक स्कूटी सवार व्यक्ति मेरे पास आकर रुक गया। और बस थोड़ी ही देर में मुझे मेरी गंतव्य स्थल तक पहुँचा दिया।

वहाँ कार्यालय पर पहुँच कर कुछ देर आराम किया। तभी एक व्यक्ति मुझे वहाँ के एक स्थानीय वार्ड पार्षद के साथ कश्मीरी पंडितों के दुर्दशा पर आधारित एक नाटक देखने चलने के लिए बोला। वो जगह एक कम्युनिटी हॉल थी जहाँ कुछ विद्यार्थी पिछले एक हप्ते से इस नाटक का अभ्यास कर रहे थे। वास्तव में वो एक नुक्कड़ टाइप का नाटक था लेकिन उनलोगों के जीवंत अभिनय ने वहाँ मौजूद सभी लोगो के दिल को कश्मीरी पंडितों के दर्द से जोड़ दिया, मानो यह स्वयं का दर्द हो। अंत में उनलोगों की टोली को लोगो से पैसे भी खूब मिले। यह सब देखकर मुझे अपने क्षेत्र में भी ऐसे ही राष्ट्रवादी भावनाओं से ओत-प्रोत नाटकों के आयोजन करने के सपने आने लगे। उधर से कार्यालय लौट कर आने में मुझे 9 बज गए।
क्रमशः

(नोट:- इस पूरे यात्रा के दौरान अपने संस्मरण को मैंने कई भागों में इस ब्लॉग में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, उन सभी के लिंक नीचे मिल जाएंगे)

इस यात्रा से संबंधित अन्य पोस्टों के लिंक⇓⇓⇓


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This Post Has One Comment

  1. Sushant Singhal

    प्रिय आलोक देशपांडेय जी, आज पहली बार आपके ब्लॉग पर आया और सबसे पहले सुकना झील वाली पोस्ट पढ़ना तय किया क्योंकि पिछले वर्ष मैं भी अपने एक मित्र के साथ सुकना झील देखने गया था। यह स्थान वास्तव में ही बहुत सुन्दर व शान्त है। मेरे मित्र महोदय तो मुझे सुबह पांच बजे ही सुकना झील के लिये ले गये थे, साथ में उनके तीन मित्र और भी थे। अगर हम इतनी सुबह सुकना झील पहुंच जायें तो वहां पर प्रातःभ्रमण करने वालों की और योगाभ्यास, जॉगिंग आदि करने वालों की अच्छी बड़ी संख्या दिखाई देती है और मौसम भी अत्यन्त सुहावना होता है।
    आपकी बाकी यात्राओं के संस्मरण भी पढूंगा। आपकी लेखन शैली अच्छी है। आपने https://indiatraveltales.in पर मेरे एक परम मित्र श्री मुकेश पाण्डेय ’चन्दन’ का भी ब्लॉग देखा होगा। वह भी बक्सर के ही निवासी हैं और आजकल मध्य प्रदेश के पन्ना शहर में पुलिस अधिकारी हैं। वह भी बहुत अच्छा लिखते हैं। मैने आपके ब्लॉग को अपनी ब्लॉगर लिस्ट में जोड़ दिया है।

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