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ककोलत जलप्रपात यात्रा, नवादा (बिहार)

ककोलत जलप्रपात यात्रा

ककोलत जलप्रपात यात्रा 
नवादा (बिहार)
दिनांक:- 30-31 मार्च 2016

नमस्कार दोस्तों,
आज मैं अपनी ककोलत जलप्रपात यात्रा के बारे में बताऊंगा।
इससे पहले कि यात्रा वृतांत शुरू करूं आइए कुछ ककोलत जलप्रपात के बारे में बात कर लिया जाए।
यह बिहार के नवादा जिला में स्थित है और बिहार का एकमात्र जलप्रपात है। कुछ लोग तो इसे बिहार का कश्मीर भी कहते है। ककोलत जाने के लिए नवादा से फतेहपुर मोड़ और फिर वहाँ से थाली मोड़ तक सार्वजनिक वाहन आसानी से मिलते है लेकिन थाली मोड़ से वहाँ तक 4 km कि यात्रा में गर्मियों के आलावा अन्य दिनों में शायद ही वाहन चलते होंगे।

वैसे तो मैं घुमने का शौक़ीन हूँ इस कारण अक्सर ऐसे जगहों के बारे में google search करते रहता हूँ जो घुमने के लिए बढ़िया हो। इसमें मैं इस बात का विशेस ख्याल रखता हूँ कि ज्यादा खर्च न हो। इसका कारण यही है कि मेरे घर की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है और मैं भी अभी विद्यार्थी जीवन में ही हूँ। लेकिन फिर भी मैं किसी तरह अपने घुमने के शौक को पूरा करने की कोसिस करते रहता हूँ। फिलहाल तो बिहार का निवासी होने के कारण बिहार के प्रमुख स्थानों का दर्शन कर लेना चाहता हूँ।
इसी क्रम में मुझे ककोलत जलप्रपात के बारे में जानकारी मिली। और फिर हमको छुट्टी। सोचा इस छुट्टी का उपयोग का सुअवसर आ गया है। अतः वहाँ जाने का प्लान बना लिया। सबसे पहले मैंने कुछ साथी खोजना शुरु किया जो हमारे साथ जा सके, दो तीन से पूछने पर कोई तैयार नहीं हुआ तो मैंने ज्यादा दिमाग नहीं लगाया और अकेले ही जाने का मुड बना लिया। और इसके लिए तैयारियां शुरू कर दी। इससे पहले मैं कहीं घुमने के इरादे से अकेले नहीं गया था। अतः यह हमारा पहला यात्रा था जो अकेले होता।
हमको नवादा जाने के लिए पहले अपने घर बक्सर से गया जाना होगा जहाँ से नवादा 50-60 km दुरी पर है। हमारे पास गया जाने के दो विकल्प थे। एक तो मुगलसराय जाकर वहाँ से गया के लिए निकला जाए दूसरा पटना होते हुए गया जाया जाए। चूँकि पटना वाला रास्ता नजदीक था इसलिए मैंने यही चुना।

30 मार्च 2016 को मैं सुबह जल्दी ही जग गया और यात्रा शुरुआत करने के लिए अपना समान पैक करने लग गया। उस दिन सुबह 7 बजे मैंने घर छोड़ दिया। स्टेशन पहुँचते ही हमे पटना के लिए गाड़ी मिल गई। मैंने घर से कुछ नास्ता भी बनवा लिया था रास्ते में खाने के लिए। हमारी गाड़ी सुबह 11 बजे पटना पहुँच गई। वहाँ अभी पटना से गया जाने वाली गाडी में 1 घंटा देरी था तो सोचा कुछ खा लिया जाए, तो वही स्टेशन के पास के ही एक होटल में 35₹/प्लेट एक प्लेट चावल खाया। और फिर 12 बजे के करीब गया जाने वाली गाड़ी में सवार हो गया। चूँकि गाड़ी express थी सो 2 घंटे में मैं गया पहुंच गया। उतरने के बाद मोबाइल में आगे नवादा जाने की ट्रेन देखा तो एक सवारी गाड़ी का समय 3 बजे बता रहा था, वो उस समय स्टेशन पर खड़ी भी थी, लेकिन खुलने में साढ़े 4 बजा दी।अब तक मैं आज के रात्रि विश्राम के बारे में असमंजस की स्थिति में था कि कहा रात बिताऊ। क्या नवादा स्टेशन इतना बड़ा और भीड़ भरा होगा कि मैं रात स्टेशन पर भी गुजार लू। यही सब सोचते चला जा रहा था। और सोचता भी क्यों न, हमे एक सिमित बजट में अपने घुमने के शौक को पूरा करना था। होटल में रुकना मेरे बस की बात कहा थी। लेकिन भाग्य से ट्रेन में हमारी मुलाकात एक वृद्ध सज्जन से हो गई जो एक व्यवसाई थे। वो नवादा के ही थे। बातचीत के क्रम में मैंने उनसे अपने आने का उद्देश्य बता दिया जिसके बाद वे हमसे ठहरने इत्यादि के स्थान के बारे में पूछने लगे इस पर मैंने उनसे अपना असमंजस जताया।
यह बात जानकर उन्होंने मुझे एक ऐसी जगह का पता बताया जहाँ बहुत कम पैसे देकर अपनी रात गुजार सकूं। वहाँ स्टेशन के बगल में चौक पर एक “कारू साहू सदन” नामक धर्मशाला था। उन्होंने बताया कि अभी शादी-ब्याह का लगन नहीं होने के कारण वो खाली होगा और आप वहाँ 100 रू० के करीब देकर रात बिता सकते है। मैं इतने कम रु० में एक रात बिताने की बात पर आश्चर्यचकित था सो मैंने उनकी बात मान ली और उनसे वो धर्मशाला दिखाने का आग्रह किया।

नवादा स्टेशन
नवादा स्टेशन

शाम को करीब 6 बजे हम नवादा पहुंचे। इसके बाद मैं उस वृद्ध के साथ उस धर्मशाला में पहुँचा। उस वृद्ध का उस धर्मशाला वाले के साथ पहले से ही जान-पहचान था। उसने उससे अपनी धर्म शाला में मुझको एक रात का आश्रय देने का अनुरोध किया। इस पर वो उनसे सवाल पूछने लगा कि यह लड़का हिन्दू तो है न। और फिर जब मेरे जबाब से संतुष्ट हुआ तभी मुझे ठहराने के लिए हामी भरी। उसके बाद उसने मेरा voter id इत्यादि चेक किया लेकिन उसका व्यवहार गजब का था। वो मुझसे सवाल पर सवाल करते जाता था कि विद्यार्थी होकर भी घुमने क्यों निकले हो, पढ़ना नहीं स्थिर से। मुझे नहीं मालुम की इन सवालों से उसका क्या मतलब था लेकिन कम पैसे होने के कारण चुप था तब तो और जब उसने एक रात की किराया मात्र 70/- रु० बताया। मैं चुप-चाप उसकी बातो को सहन करता रहा। उसने मुझे एक कमरा दिखाया, वहाँ कोई चौकी नहीं थी बल्कि एक निचे फर्स पर एक लंबा गद्दा बिछा था। उनसे मुझे बताया कि आपको यही सोना पड़ेगा उसने मुझे एक मच्छरदानी भी लगाने को दिया। और बिजली रहने के कारण पंखा वैगेरह चल ही रहा था। हा उस कमरे से उसने ताला हटा दिया था बोला कि हम अपना ताला नहीं देते। फिर भी मैं इतने कम रुपए में इतनी सुविधाएँ ज्यादा ही समझता था। रात हमारी अच्छी से गुजरी।
सुबह 6 बजे हमारा नींद खुल गया। उठने के बाद नित्य क्रिया से निवृत होकर मैं वहाँ से ककोलत जलप्रपात की ओर प्रस्थान करने की तैयारी करने लगा। सुबह 8 बजे वहाँ से निकलने के पश्चात मैं पास ही स्थित बस स्टैंड पहुँचा, जो किसी पुल को पार कर जाना पड़ता था। वहाँ से थाली मोड़ तक की डायरेक्ट बस मिल जाती है लेकिन उस समय वहाँ कोई बस नहीं थी। लेकिन कई टेम्पू वाले फतेहपुर मोड़ तक जा रहे थे जहाँ से हमे थाली मोड़ तक के साधन मिल जाते। अतः हमने टेम्पू पकड़ लिया। एक टेम्पू वाले ने हमसे 15 रु लिया और आधे घंटे में फतेहपुर मोड़ पहुँचा दिया। उसके बाद थाली मोड़ के लिए भी एक और टेम्पू पकड़ लिया। उसने हमसे 20 रु किराया लिया और वहाँ पहुचते-पहुचते हमको लगभग 10 बज गए थे।
अब आगे का रास्ता के बारे में हमको सोचना था। पहले वहाँ के लोगो से साधन इत्यादि के बारे में मालुम किया लेकिन निराशा ही हाथ लगा। एक टेम्पू वाला reserve करवा के जाने को तैयार था लेकिन मैं उतना पैसा खर्चना नहीं चाहता था। अंततः हमने 4 km पैदल ही नापने का प्रयत्न किया।
अभी मैं कुछ ही दूर पैदल चला था कि हमे एक मोटरसाइकिल सवार दिखाई पड़ गया। वो अकेला ही था, मैंने सोचा कि एक बार उससे लिफ्ट मांग कर देखा जाए क्या करता है वो? उसने हमको सहर्ष लिफ्ट दे दिया। वो मुझसे बोला कि भाई ककोलत तक तो नहीं लेकिन आधा दूर तक तो छोड़ ही दूँगा। उसके बाद मेरा गाँव आ जाएगा। रास्ते में उसने ही मुझे बताया कि अगर आप और अधिक गर्मी में आते मसलन मई-जून में तो आपको किसी प्रकार का साधन का दिक्कत नहीं हुआ होता। उस समय दिन भर टेम्पुओ का आवाजाही लगा रहता है। आधे रास्ते में उसने मुझे उतार दिया, इसके बाद का रास्ता हमे पैदल ही तय करना था। थोड़ी देर पैदल चलने के बाद सुनसान रास्ता आ गया और जंगल-झाड़ी शुरू हो गया। बिच-बिच में इक्का-दुक्का मोटरसाइकिल और टेम्पू ही वहाँ से गुजरती जो आम तौर से ककोलत की ओर ही जाती थी। इस भरी दुपहरी में 2 km की यात्रा में हमारा बुरा हाल हो गया। पूरा कुर्ता पसीने से भींग गया था।

ककोलत जल प्रपात के पास मैं करीब 11 बजे पहुँचा और थोड़ा आराम करने के बाद आसपास के सुंदर-सुंदर दृश्य का निरीक्षण करने लगा। इसके बाद मैं वहाँ नहाने की तैयारी करने लगा। वहाँ का पानी वास्तव में ठंडा था। और धार में नहाने पर चोट भी लगता था। कुछ देर धार में नहाने के बाद तलाब में नहाने लगा। तलाब में सब जगह गहराई सीने भर ही था। इसके बारे में नेट पर पढ़ा था कि पहले यहाँ बहुत बड़ा गड्ढा था जिसके चलते कई मौते भी हुई थी लेकिन इसे 1994 में भर दिया गया।
नहाने के बाद हमे हल्का-हल्का ठंडक महसूस होने लगा जिसके बाद मैं धुप में बैठ गया। वही घर से लाया अपना नास्ता को भी खाया। इस क्रम में 1 बज गया था।
वही बैठे-बैठे मुझे पहाड़ के उपर कई लोग जाते-आते दिखे। उस पहाड़ पर उपर जाने के लिए कोई रास्ता नहीं बना था, चट्टानों के बिच से ही वो रास्ता बना कर उपर जाते थे। उनलोगों के देखा-देखि मैं भी अकेले ही थोड़ा उपर गया लेकिन आगे महसूस होने लगा कि अब उपर जाने का कोई रास्ता नहीं दिख रहा है। मैं वही पर बैठ गया तबतक निचे से कुछ लोग आते दिखे। मुझको उनसे आशा बंधी कि शायद वे उपर जाने का सही मार्ग जानते होंगे। लेकिन वे हमारे इतना उपर आए ही नहीं, थोड़ा निचे से ही किसी दूसरी दिशा की ओर घूम गए। इस पर मैं निचे उतरने लगा, और फिर उनलोगों के साथ हो लिया। वे सभी लोग हमारे ही उम्र के थे, पूछने पर बताया कि वे लोग कुंड के स्त्रोत के पास पिकनिक मनाने जा रहे है। थोड़ी देर में मैं उस जगह पहुंच गया जहाँ से ककोलत जलप्रपात का पानी सीधे निचे गीरता था। इसके बाद उनलोगों ने मुझे आगे ले जाने से मना कर दिया। वे सभी लोग पास के गाँव से आए थे और बताया कि हमें लौटने में 5 बज जाएँगे। इसके बाद वे सभी जंगलो में आगे बढ़ गए। वहाँ का दृश्य बहुत सुहावना था। पानी बहने के कारण आसपास थोड़ा छायादार बृक्ष भी था। उसी में से एक वृक्ष के निचे एक पत्थर पर चादर बिझा कर बैठ गया। वहाँ पर मैंने करीब 1 घंटा तक आराम किया फिर वापस चल दिया।

आते वक्त जिन परेशानियों से हमे गुजरना पड़ा वो मैं दुबारा नहीं चाहता था अतः वही पर किसी मोटरसाइकिल वाले का इंतजार करने लगा। लेकिन जो भी मोटरसाइकिल जाती उस पर तीन लोग पहले से ही बैठे होते। अंततः एक दो सवारी वाला मोटरसाइकिल वाले ने हमको लिफ्ट दे ही दिया जिसके चलते मैं मुख्य सड़क तक आसानी से पहुँच गया। वहाँ से मुझे नवादा के लिए सीधी बस मिल गई। और करीब 6 बजे हम नवादा स्टेशन पर थे। जाकर सबसे पहले गाड़ी का पता लगाया तो पता चला कि उसके आने में अभी 2 घंटे बाकि है। तब तक मैं पास के ही एक होटल में ₹ 30/- प्लेट रोटी सब्जी खा कर आ गया। उस दिन भारत-वेस्टइंडीज सेमीफाइनल भी था। स्टेशन से बाहर जब मैं बजार में गया तो वहाँ कई दुकानवाले अपने दुकान में tv लगाए हुए थे। उसी से में एक कम भीड़-भाड़ वाला दुकान देखकर मैं भी शामिल हो गया क्रिकेट देखने में। संयोग से मेरी ट्रेन और लेट हो गई जिसके कारण भारत का पूरा पारी देखकर ही हटा।
8:50 में सवारी गाड़ी नवादा आ गई और 11:30 तक हमको गया भी पहुँचा दिया। वहाँ से हमे 1 रात को बजे पटना जाने के लिए बुद्ध-पूर्णिमा एक्सप्रेस मिला। उसमें मैं समान्य बोगी में सवार होकर 3:30 तक पटना पहुँच गया।
थोड़ी देर इंतजार करने के बाद वहाँ से भी हमें नार्थ-ईस्ट एक्सप्रेस बक्सर जाने के लिए मिल गई। और सुबह 7 बजे तक हम घर पर थे। इस प्रकार हमारी पूरी रात यात्रा में ही गुजर गई अतः उस दिन मैं दिन भर सोया और अपनी थकान मिटाई। कुल मिला कर हमारी यह यात्रा सुखद रही और बहुत सारे नए अनुभवों को दे गई। धन्यवाद।
कैसी लगी आप सभी को मेरी यह यात्रा-वृतांत? जरुर बताइएगा। चूँकि यह हमारी पहला यात्रा वृतांत है अतः इसमें हुई त्रुटियों के लिए मैं माफ़ी चाहता हूँ। आपका सब का प्रतिक्रिया अपेक्षित रहेगा।
आलोक देश पाण्डेय
ग्राम- सिमरी, हल्बा पट्टी
जिला-बक्सर (बिहार)

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