रोहतास भ्रमण, बिहार
(भाग- 2)
दिनांक:- 24 सितंबर से 27 सितंबर 2020
स्थान- रोहतास जिला (बिहार)
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रोहतास किला यात्रा


रोहतास किला जाने का मार्ग


यह बिडंबना कहिए या कुछ और इतने प्राचीन किले तक जाने का एक भी सुगम मार्ग नहीं है। जो भी मार्ग है वो जंगलो-पहाड़ो से होते हुए ही जाती है, हालांकि इन मुश्किलात में भी थोड़ा घूम कर चार चक्का गाड़ी पहुँच सकती है।
यह किला डिहरी से लगभग 43 किमी दूरी पर स्थित है जहाँ हम डिहरी से सीधे दक्षिण तरफ सोन नदी के बहाव के साथ-साथ गुजरने वाली सड़क के माध्यम से पहुँच सकते है। हालाँकि रोहतास किला ऊँचे दुर्गम पहाड़ियों पर बसा है इसलिए वहाँ जाने के लिए हमलोगों ने शॉर्टकट रास्ता लिया और पैदल ही जंगल-पहाड़ पार करते हुए वहाँ पहुँचे, लेकिन मालूम करने पर वहाँ के स्थानीय लोगो ने चार चक्का वाहन से पहुँचने का मार्ग भी हमें बताया।
अगर किसी को चार चक्का वाहन से जाना हो तो उसको रास्ते मे एक रोहतास (अकबरपुर) नामक जगह से दाएँ मुड़ रोहतास-अधौरा मार्ग पकड़ना पड़ता है। रास्ते में तारडीह बाजार को पार करने के बाद आगे एक तिराहा पड़ता है जहाँ से हमें बाएं रेहल की तरफ मुड़ जाना है वही रास्ता रोहतास किला के तरफ जाएगी।
अगर पैदल चढ़ाई करके जाना हो तो यहाँ भी बहुत सारे घाट है, जहाँ से लोग चढ़ाई करके वहाँ जाते है, इनमें मुख्य घाट चारा घोड़ाघाट, राजघाट, कठौतिया घाट व मेढ़ा घाट है। हमलोगों ने वहाँ पहुँचने के लिए बौलिया गाँव स्थित राजघाट के तरफ से चढ़ाई चढ़ा था।
थकान भरी चढ़ाई


सुबह महादेव खोह जलप्रपात से स्नान करके आने के बाद भोजन किए और चल दिए रोहतास किला की ओर। हमलोग कुल 5 बाइक पर 9 की संख्या में थे। आनंदीचक से हमलोग बौलिया नामक एक गाँव में पहुँचे, वहाँ कुछ खाने-पीने का सामान और 4-5 बोतल पानी ले लिए। पास में ही एक चर्च था उसी के अंदर हमलोगों ने अपना बाइक पार्क कर दिया था। उसके बाद से हमलोग पैदल हो गए। उस समय तक दोपहर के 12 बज चुके थे, लेकिन मौसम खुशगवार था और रुक-रुक कर हल्की-हल्की बूंदा-बांदी भी हो रही थी। कुछ दूर जंगली रास्तों से गुजरने के बाद पहाड़ की चढ़ाई शुरू हो गई थी। वहाँ कही कोई सीढ़ी वैगेरह भी नहीं बना था। गाँव वाले ही थोड़े से पत्थर वैगेरह हटा कर रास्ता बनाए थे वहाँ भी कही-कही कटीली झाड़ियाँ उग आई थी, बड़ी सावधानी से झाड़ियों को डंडे से हटा-हटा कर आगे बढ़ना पड़ रहा था, दो-तीन बार कुर्ता फटने से बाल-बाल बचा। लेकिन आखिरी में उतरते वक्त दाएँ हाथ की अंगुली में काटा चुभ ही गया था।
पहाड़ के किनारे-किनारे चारों ओर दीवार निर्माण कराया गया था जिसके अंदर प्रवेश के लिए एक बहुत बड़ा दरवाजा भी था। अंदर पहुँचने पर खुले मैदान दिखाई देने लगे, और बीच-बीच में मंदिरों के खंडहर। कुछ ही दूर चले होंगे तो हमें एक बहुत बड़ा महल दिखाई दिया। यही किले का मुख्य भाग था।
पूरे किले में सन्नाटा जैसा फैला था, गार्ड वैगेरह भी नहीं थे, एक-दो चरवाहे आसपास दिख रहे थे इसके अलावा और कोई भी सिवाय हमलोगों के वहाँ पर्यटक के रूप में मौजूद नहीं था। महल के अंदर पहुँच कर कुछ आराम किए और अपने साथ लाए हुए फल वैगेरह खाए, हमलोगों का सारा पानी भी यही खत्म हो गया। आधा पानी तो चढ़ाई चढ़ने में ही खत्म हो गया था। उसके बाद हमलोगों ने अगले 2 घण्टे में पूरे किले का चक्कर लगाया।
नक्सल प्रभावित क्षेत्र
रोहतास किले से उतरना और तिलौथू के लिए प्रस्थान
क्रमशः
यात्रा के दौरान ली गई कुछ तस्वीरें
- इस यात्रा संस्मरण के कुछ अन्य हिस्से


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