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रोहतास भ्रमण, बिहार (भाग- 3, तुतला भवानी जलप्रपात)

रोहतास भ्रमण, बिहार

(भाग- 3)

दिनांक:- 24 सितंबर से 27 सितंबर 2020
स्थान- रोहतास जिला (बिहार)


 

यहाँ मात्र दो वर्ष पहले तक कोई नहीं आता था और झरने के पास असमाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता था। वहाँ के स्थानीय लोगो के संघर्ष के कारण मात्र दो वर्ष में ही उस स्थान का कायापलट हो गया था और रोजाना हजारो की संख्या में लोग आ रहे थे।

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कशिश जलप्रपात

कशिश जलप्रपात
ह जलप्रपात डिहरी से लगभग 30 किमी दक्षिण में अमझोर गाँव के पास है। यह भी बहुत ही खूबसूरत झरना है, यहाँ पानी बहुत ही ऊँचाई से गिरता है लेकिन नीचे आने से पहले एक चट्टान पर गिरने के बाद आगे गिरने से इसकी तीव्रता थोड़ी कम हो जाती है, जिसके चलते हम यहाँ सीधे झरने में नहा भी सकते थे।
26 को सुबह उठने के बाद चाय पानी पी कर ही हमलोग वहाँ के लिए चल दिए। हमारे साथ एक और स्थानीय व्यक्ति हो लिए जिससे हम 2 बाइक पर 4 लोग हो गए। आगे अमझोर गाँव के पास एक तेलकप मोड़ था, वही से हमलोग दाहिने मुड़ गए और 2-4 किमी चलने के बाद दिखाई देने अद्भुद नजारा, वहाँ तीन ओर से ऊँचे-ऊँचे पहाड़ थे और करीब 3-4 झरने अलग जगहों से बहुत ऊँचाई से गिर रहे थे, हमलोग यहाँ कन्फ्यूज्ड हो गए थे कि कौन वाले झरने के पास जाना है और जाने रास्ता कहा से है। आखिर में कुछ स्थानीय लोगो से पूछताछ करने पर पता चला कि उनमें एक ही झरना के समीप जाने के लिए रास्ता बना है। झरना के निकट पहुँचने पर वहाँ हमें एक भी व्यक्ति नहाते हुए मौजूद नहीं मिला। हालाँकि वहाँ का कुंड छोटा था फिर भी बड़ी सावधानी से गहराई का आकलन करते हुए नीचे पानी में उतरे। कई जगहों पर तेज धार के चलते भी गहरा गड्ढा हो जाता है लेकिन ज्यादा गहरा नहीं होने से हमलोगों ने चैन का सांस लिया और करीब आधा-एक घण्टा वहाँ स्नान इत्यादि करने में बिताया।
यहाँ कभी पहले पी०पी०सी० नामक कंपनी की खदान हुआ करती थी जो इन पहाड़ो से खनिज पदार्थ निकालने का काम करती थी, लेकिन कालांतर में इसके बंद होने से यहाँ पर जगह-जगह इसके अवशेष दिखाई दे रहे थे।

 

तुतला भवानी जलप्रपात और पैदल झूला पुल

तुतला भवानी जलप्रपात
वहाँ से वापस तिलौथू पहुँचने के बाद हमलोगों ने भोजन वैगेरह किया और फिर वहाँ नजदीक ही रोहतास के सबसे प्रसिद्ध जलप्रपात #तुतला_भवानी जलप्रपात के दर्शन का निश्चय किया। वहाँ पर जलप्रपात के एकदम निकट बहुत छोटा सा तुतला भवानी का देवी मंदिर है, उन्हीं के नाम पर इस जलप्रपात का नाम पड़ा है। यह तिलौथू से लगभग 8 किमी दक्षिण-पश्चिम में है। वहाँ जाने के लिए तिलौथू से ही एक रास्ता पश्चिम की ओर कट जाता है। हमलोग दोपहर 12 बजे तिलौथू से तुतला भवानी की ओर चले और थोड़ी ही देर में वहाँ पहुँच गए, वहाँ का झरना वाकई अन्य झरनों की अपेक्षा बहुत ही विशाल था, और यह बहुत दूर से ही दिखाई देने लगा था।
झरने से लगभग दो किमी पहले ही बैरियर लगा दिया गया था और वही गाड़ियों के लिए पार्किंग वैगेरह की सुविधा की गई थी। वहाँ के देखरेख करने वाली समिति के लोगो से बात करने पर पता चला कि यहाँ मात्र दो वर्ष पहले तक कोई नहीं आता था और झरने के पास असमाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता था। वहाँ के स्थानीय लोगो के संघर्ष के कारण मात्र दो वर्ष में ही उस स्थान का कायापलट हो गया था और रोजाना हजारो की संख्या में लोग आ रहे थे।
वहाँ पिछले जलप्रपातों की तुलना में बहुत ज्यादा भीड़ थी, लगभग सैकड़ों गाड़िया पार्किंग में लगी थी। इससे पहले जिन दो जलप्रपात में गए वहाँ नहाने की सुविधा तो थी लेकिन उतना प्रसिद्ध नहीं होने के कारण वहाँ हमलोगों के अलावा लगभग कोई था ही नहीं। लेकिन यहाँ आप झरने में सीधे नहा नहीं सकते थे, क्योंकि जिस ऊँचाई और धार से झरना गिर रहा था उसको देखकर लोग दूर से ही हाथ जोड़ रहे थे। कुंड के अंदर पत्थर भी बहुत ज्यादा उबड़-खाबड़ था सो वहाँ कुंड में ही स्नान करने में लोगो को बहुत ही सावधानी बरतनी पड़ रही थी।
लगभग दो किमी पैदल चलने के बाद हमलोग तुतला भवानी झरने के एकदम निकट पहुँच गए। वहाँ तुतला भवानी मंदिर थोड़ी ऊँचाई पर था। लेकिन वहाँ पहुँचने के लिए मात्र चार दिन पहले ही सरकार ने एक #झूलावालापुल का उद्घाटन किया था। झूला वाला पुल इसलिए कि उस पुल पर कूदने से वो पुल हिलता था इससे कई लोग इसपर जानबूझ कूद रहे थे इससे वह पुल भी अपने आप में आकर्षण का एक केंद्र बन गया था। झरना पत्थर से टकरा कर दूर-दूर तक छिटा मार रहा था जिससे लग रहा था कि पुल पर ही हमलोग भींग जाएँगे।
यहाँ की स्थिति देखकर हमलोगों ने स्नान करने का विचार त्याग दिया, वैसे भी सुबह एक जगह स्नान कर ही लिए थे, अतः माता के दर्शन करने के पश्चात हमलोग वापस तिलौथू के लिए प्रस्थान कर गए।

इंद्रपुरी बराज और बक्सर की ओर

तिलौथू में कुछ देर आराम करने के बाद करीब 5 बजे वहाँ से सासाराम की ओर प्रस्थान किए। उधर डिहरी की ओर लौटते क्रम में रास्ते में इंद्रपुरी बराज पड़ता है। यह भी एक अद्भुद दृश्य पैदा करता है। यह एक बांध है जो सोन नदी पर बना है। सोन नदी को बांधने से वहाँ एक छोटा समुद्र जैसी स्थिति का निर्माण हो जाता है, और दूर-दूर तक अथाह जलराशि दिखाई दे रही थी। यह लगभग 1.5 किमी चौड़ा है। यहाँ भी कुछ देर हमलोगों ने भ्रमण किया फिर सासाराम की ओर चल दिए, विचार था कि आज ही बक्सर के लिए निकल ले लेकिन दिनभर के थकावट के बाद हिम्मत नहीं किया और अपना रात्रि विश्राम सासाराम में ही हुआ। लेकिन अगले दिन 27 सितंबर को सुबह 6 बजे ही सासाराम शहर से निकल लिया और फिर 9 बजे तक बक्सर में था। इस बीच इन चार दिनों में मोटरसाइकिल से मैंने 400 किमी की यात्रा कर ली थी, और मेरी दोनो बाहें दो-तीन दिन तक दर्द भी करती रही लेकिन घूमने में जो सुकून मिला वो और कहा मिलेगा।
समाप्त।


यात्रा के दौरान ली गई कुछ तस्वीरें

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