मेरी पहली हिमाचल यात्रा (भाग 2)
Part 2 (Day 05-06: 17-18 जून 2019)
धर्मशाला यात्रा…
विनय आज भी मेरे साथ चलने वाला था। आज हमलोगों ने धर्मशाला जाने की योजना बनाई। धर्मशाला यहाँ से 53 किमी था। उसने बताया कि मेरे एक दोस्त की बस है उसी से चलते है किराया थोड़ी कम लेगा। बस यहाँ से सुबह 08:40 बजे थी। तय समय पर हमलोग बस पकड़ लिए। धर्मशाला हमलोग सुबह 11 बजे तक पहुँच गए।
धर्मशाला पहाड़ियों में बसा एक शहर है। यह हिमाचल प्रदेश का शीतकालीन राजधानी भी है।वहाँ बस स्टैंड के समीप ही हमने नास्ता किया। फिर शहर में इधर उधर घूमने लगे। वहाँ पहुँचते ही मौसम सुहाना हो गया था और थोड़ी देर में बारिस होने लगी। बारिस रुकने के बाद हमने मैक्लोडगंज जाने का निर्णय लिया जो कि धर्मशाला से भी ऊपर था। यहाँ एक पहाड़ी खत्म होती थी तो उससे भी ऊँची दूसरी पहाड़ी नजर आती थी। मैक्लोडगंज, बस से जाने के क्रम में फिर से बारिस शुरू हो गई और ऊपर ट्रैफिक जाम भी लग गया। 2 घण्टे तक हमलोग यू ही बारिस खत्म होने का इंतजार करते रहे। बारिस थोड़ा कम होते ही हमलोग भागसूनाग के लिए निकल पड़े। लेकिन खराब मौसम के कारण वहाँ से फिर आगे जाने का साहस न कर सके। क्योंकि आज ही लौटना भी था। वापसी के क्रम में भी हमलोग फिर बारिस में फस गए। किसी तरह एक फेरी वाला के छाते के सहारे छिपने की नाकाम कोशिस किए, लेकिन फिर भी बैग वैगेरह हल्का भींग ही गया। उस फेरी वाले से पूछने पर पता चला कि यहाँ हर तीन चार दिन के अंतराल पर ऐसी मूसलधार बारिस होती रहती है। दरअसल बारिस के मामले में धर्मशाला, चेरापूंजी के बाद दूसरे नंबर पर आता है। वहाँ ऊपर थोड़ी-थोड़ी ठंडी भी लग रही थी, इसके लिए मैंने घर से ही जरूरी सामान लेकर चला था लेकिन विनय को बार-बार कहने को बावजूद वो कुछ नहीं लिया। अब मुझको अपना सामान देकर उसपर दया दिखाना पड़ गया।
वहाँ कुछ देर खड़े रहने के बाद एक ट्रैक्टर दिखी, हमलोग बारिस से बचने के लिए उसी में जाकर बैठ गए। ट्रैक्टर नीचे ही जा रहा था सो ट्रैक्टर में ही बैठे-बैठे धर्मशाला पहुँच गए। वहाँ से फिर भडवार के लिए बस पकड़ चल दिए।
आज धर्मशाला गए लेकिन खराब मौसम के कारण न क्रिकेट स्टेडियम देख पाए न ही दलाई लामा का मंदिर जिनके बारे में बचपन से ही सुनते आ रहे है। खैर अगली बार शायद यह इच्छा पूरी हो जाए।
यहाँ भी विनय के जान-पहचान के कई लोग मिल गए जो शायद वहाँ के होटलों में कर्मचारी थे। मैं उससे बहुत प्रयास किया कि आज रात यही तुम्हारे किसी जान पहचान वाले के यहाँ रुक जाया जाए फिर सुबह त्रियुण्ड ट्रेक के लिए जाएँगे। लेकिन उसको घर जाने की जल्दी हो गई थी, इसलिए हम भी साथ ही चले आए।
Day 06 (18 जून)
कुल्लू की ओर…
आज सुबह ईशान भैया ने कहा मेरा खुद का काम है धर्मशाला में। मेरे साथ ही चलो। तभी उनके एक दोस्त आ गए। वो कुल्लू के रहने वाले थे और आज अपने घर जा रहे थे। इनका नाम आशीष था। ईशान भैया ने हमको इनके साथ ही कुल्लू चले जाने को कहा, वहाँ बकेढ़िया जगह है घूमने वाला। मैं झट से मान भी गया।
आशीष जी यहाँ LIC में जॉब करते थे और कुछ परिवारिक कार्यक्रम में छुट्टी लेकर घर जा रहे थे सो मुझे उनके घर जाना था, जो कुल्लू से 20 किमी पहले था। वो शाम को यहाँ से निकलते अतः आज दिन में ईशान भैया के साथ ही घूमने की योजना थी। शाम को रास्ते में ही आशीष भैया कुल्लू के लिए पिक कर लेने वाले थे।
12 बजे के आसपास हम ईशान भैया के कार से निकले, पहले कांगड़ा पहुँचे। वहाँ हमने “श्री ब्रजेश्वरी देवी माता मंदिर” के दर्शन किए। जब हम वहाँ भडवार से घर से निकले थे तो मुझे जगह-जगह लोगो द्वारा छबील लगाई हुई दिखाई दी। हमलोगों ने कई जगह कार रोके। वहाँ कार रोकते ही छोटे-छोटे बच्चे पानी-शर्बत-फल वैगेरह लेकर दौड़ पड़ते थे। ऐसा छबील लगभग हर 2-3 किमी पर दिखाई दे ही जा रही थी। ईशान जी ने बताया कि ये तो कुछ नहीं है आप एकबार पंजाब चले जाइए वहाँ हर कदम पर आपको ऐसा मिलेगा। वास्तव में विशेष रूप से सिखों द्वारा सेवा भावना से किया गया यह काम बेहद प्रशंसनीय है। वहाँ कांगड़ा में माता के दर्शन करने के बाद हमलोग का अगला पड़ाव धर्मशाला था सो जल्द ही वहाँ से हम धर्मशाला के लिए निकल लिए।
वहाँ धर्मशाला में ईशान भैया को अपना व्यक्तिगत कार्य भी था सो वहाँ पहुँच कर उन्होंने अपना काम निपटाया लेकिन घूमने के लिहाज से धर्मशाला शहर में हम आज भी कही नहीं घूम पाए। क्योंकि आशीष भैया फोन करने लगे वे उधर से चल दिए थे और उनको देरी होने लगी थी अतः बस कर से ही सिर्फ शहर दर्शन करते हुए धर्मशाला से निकल लिए। लौटते वक्त थोड़ी देर के लिए चामुंडा देवी मंदिर रुके। उसके आगे नगरौटा में आशीष भैया अपनी कार लेकर इंतजार कर रहे थे। वहाँ से हम अपना बैग लेकर उनके गाड़ी में शिफ्ट हो गए। यहाँ से कुल्लू 165 किमी था। लगभग 7 बजे के चले-चले पहुँचते पहुँचते रात के 11 बज गया। उनका गांव का नाम टकोली था। जैसे जैसे हम कुल्लू की ओर बढ़ रहे थे वहाँ पहुँचते-पहुँचते ठंड भी बढ़ने लगी। कांगड़ा जिले से वहाँ ज्यादा ठंड थी सो इस जून के महीने में भी मोटा कंबल इस्तेमाल करना पड़ गया।
क्रमशः
(नोट:- हमारी यह यात्रा कुल 13 दिनों की थी, सो ज्यादा लंबा पोस्ट लिखने से बचने के लिए इसे हम पार्ट वाइज और डेट वाइज ही पोस्ट कर रहे है, हर पोस्ट के नीचे आपको इस यात्रा से जुड़े सभी पोस्ट लिंक मिल जाएंगे)
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