मेरी चंडीगढ़ यात्रा (पार्ट 1, चंडीगढ़ आगमन)
(दिनांक:- 19-26 जनवरी 2020)
पिछले दिनों मुझे कुछ निजी कार्य वश चंडीगढ़ जाना पड़ा जिसमें मुझे पूरा मौका मिला कि चंडीगढ़ और उसके आसपास के क्षेत्रों में भ्रमण कर सकू और आप सभी से भी अपना अनुभव साझा कर सकू। उम्मीद है आप सभी को अच्छा लगेगा।
वैसे चंडीगढ़ भले ही राजधानी क्षेत्र है लेकिन वो अन्य राज्यों की राजधानियों के अपेक्षा बहुत ही शांत और छोटा शहर है। 2011 के जनगणना के अनुसारबउसकी कुल आबादी मात्र 10 लाख है। रोड पर ट्रैफिक जाम शायद ही कही देखने को मिले। और यहाँ इतने सारे वृक्ष लगाए गए है कि आपको प्रदूषण का एहसास भी नहीं होता। यहाँ घूमने लायक प्रमुख जगहों में नगर के उत्तर में मानव निर्मित सुखना झील और उसके पास ही बना रॉक गार्डेन है। इसके अलावा रोज गार्डेन, छतबीर जू, म्यूजियम और इलांटे मॉल भी घूमने लायक बढ़िया जगह है।
चंडीगढ़ के पूर्व में हरियाणा का पंचकूला शहर बसा हुआ है तथा पश्चिम में पंजाब का मोहाली। ये तीनों मिल कर ट्राइसिटी बनाते है। राजधानी होने के कारण दोनों राज्यों के विधानसभा और उच्च न्यायालय यही पर स्थित है। और यह खुद केंद्र द्वारा प्रशासित होता है।
चंडीगढ़ आगमन
(20 जनवरी 2020)
मैंने बिहार के बक्सर से 19 जनवरी को रात 10 बजे पाटलिपुत्र-चंडीगढ़ सुपरफ़ास्ट ट्रेन पकड़ी जिसने चंडीगढ़ हमें अगले दिन शाम को 6 बजे पहुँचाया। उतरते ही हमें एक रोचक अनुभव हुआ ज्यों ट्रेन प्लेटफ़ॉर्म पर पहुँची मुझे अचानक बहुत सारे चिड़ियों का शोर सुनाई पड़ने लगा। लेकिन हमें शुरू में विश्वास ही नहीं हुआ, मानो लग रहा था कि किसी सफाई कर्मी द्वारा रगड़ या किसी मशीन की आवाज होगी लेकिन यह शोर जैसे-जैसे ट्रेन आगे बढ़ती जा रही थी वैसे-वैसे बराबर बढ़ रहा था। उतरने बाद पता चला वहाँ उससमय सचमुच में हजारों की संख्या में पक्षियों का जमावड़ा था। चारो ओर पक्षी ही पक्षी दिखाई दे रहे है और उनका शोर सुनाई दे रहा था। एक साथ इतने सारे पक्षी मैंने अपने जीवन में पहली बार ही देखे थे, लेकिन जो भी था वह बहुत ही सुखद दृश्य था।
यहाँ से उतर कर हमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के कार्यालय में जाना था जहाँ मैंने रहने की व्यवस्था की थी। उतरते समय ही मैंने एक यात्री से वहाँ की परिवहन व्यवस्था के बारे में पूछ लिया था। उसने मुझे rapido नामक एक app के बारे में बताया जो अकेले यात्रियों के लिए नगर में बाइक सुविधा प्रदान करती थी। वह सुविधा मेरे लिए आगे बहुत काम आया। वहाँ से मुझे सेक्टर 18C के लिए जाना था, लेकिन कोई भी ऑटो without reserve जाने को तैयार नहीं था। बड़ी मुश्किल से एक shared auto मिला जो 50 रु में तैयार हो गया जबकि वो मुश्किल से 4 किमी भी नहीं था। वहाँ पहुँचने के बाद संघ कार्यालय बताने पर पता खोजने में कोई खास दिक्कत नहीं हुई।
वहाँ संघ कार्यालय के बाहर एक पुलिस पोस्ट बनी हुई थी जहाँ दिन-रात पुलिसकर्मी सुरक्षा देते रहते थे। शायद कुछ साल पहले खालिस्तानी आतंकवादियों द्वारा आरएसएस के कार्यकर्ताओ पर हुए हमले के बाद यह सुरक्षा दी गई थी। वहाँ पहले से ही बिहार के दो अन्य कार्यकर्ता ठहरे हुए थे। हम सबका वहाँ बस सोना होता था बाकी खाना-पीना हम सब बाहर से कर के आते थे। जिस दिन वहाँ पहुँचा था उस दिन बहुत ज्यादा ठंड थी हालाँकि उसके बाद के 4-5 दिन धूप जरूर खिली। उस दिन तो हम थके हुए थे सो जल्दी ही सो गए।
क्रमशः
(नोट:- इस पूरे यात्रा के दौरान अपने संस्मरण को मैंने कई भागों में इस ब्लॉग में प्रस्तुत करने का प्रयास किया है, उन सभी के लिंक नीचे मिल जाएंगे)
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