मोह मतलब क्या?
अपने मन में बुना हुआ एक ऐसा संसार
जिसमें लगता है कि अमुक वस्तु मिल जाएगी तो मुझे असीम सुख प्राप्त होगा
जब हम अपने इस संसार को खुद से बुनते है तो खुद से तोड़ भी सकते है बस उस लालसा को खत्म करना होगा।
लेकिन उस बंदर का क्या जो चने से भरे मटके में हाथ घुसाए हुए है,
जो अपना हाथ निकालना तो चाहता है लेकिन चना की लालसा उसे मुट्ठी खोलने नहीं देता।
लालसा कोई छोड़ना नहीं चाहता,
क्योंकि केवल दुःख के भय से लालसा छोड़ना कायरता लगता है।
लेकिन यह तब अपने आप छूट जाती है जब आपके सामने उससे भी बड़ी लालसा पैदा हो जाती है।
अगर यह पूरी नहीं हो पाती है तो दुःख पैदा होता है और पूरी हो गई तो एक नई लालसा।
लालसा का यह क्रम चलते रहता है।
यह लालसा तो मात्र एक ही चीज से हमेशा-हमेशा के लिए खत्म हो सकती है।
उस परमपिता परमेश्वर की लालसा करना।
जिसको पाने से कोई लालसा शेष नहीं रहती।
जिसके अंदर यह लालसा पैदा हो जाती है उसको संसार की सभी लालसाएँ तुक्ष लगने लगती है फिर वह केवल वही कर्म करता है जो उसे कर्तव्य पूर्ति हेतु आवश्यक लगता है।