गुलामी कि 258वीं सालगिरह आप सभी भारतीयों को मुबारक हो.

गुलामी कि 258वीं सालगिरह आप सभी भारतीयों को मुबारक हो.

23 जून 1757 ही वो दिन था जब अंग्रेजो ने अपना राज्य भारत में स्थापित किया था, उसके बाद से ही वे हम पर अपनी संस्कृति, भाषा एवं कानून थोपने चालू कर दिए थे. 1947 में वे अपना बोरिया-बिस्तर तो समेट कर चलते बने लेकिन पीछे छोड़ गए अपना सड़ा-गला सिस्टम जिसे उन्होंने हम गुलामो पर शासन करने के लिए बनाई थी. आज भारत में जितनी भी समस्याएँ है उसी विदेशी सिस्टम की देन है. न हमारा अपना विकसित किया हुआ न्यायतंत्र है न ही प्रशासनिक तंत्र. यहाँ तक कि सेना का सिस्टम भी अंग्रेजी है.

अंग्रेजो द्वारा हमारी परतंत्रता के अब  258 वर्ष पुरे हो रहे है, 1757 का वो प्लासी का युद्ध ही था जिससे अंग्रेजो का राज्य भारत में स्थापित हो गया उसके बाद से ही अंग्रेजो ने हम पर अपना तंत्र थोपना चालु किया. जैसे अपना कानून बनाए, हमारे शिक्षा व्यवस्था को ध्वस्त कर अपनी नई शिक्षा निति बनाई, यहाँ तक हम गुलामो के लिए एक संविधान भी बना दिया और यह सब होता रहा सुधारवादी मांगो के कारण. दरअसल अंग्रेज चतुर थे. उनका मानना था कि शासन पद्दति का मूल ढांचा वही रखते हुए हुए उनमे थोड़ा-थोड़ा सुधार किया जा सकता है, और इसे उदारवादी शासन पद्धति का नाम भी देते थे. इसी के चलते भारतीयों के उग्र आंदोलनों के कारण वे अपने शासन पद्धति में थोड़ा-थोड़ा बदलाव करते रहे और दुनिया को दिखाते रहे थे अंग्रेज न्याय प्रिय एवं सभ्य है और वे भारतीयों को मुर्ख बनाते रहे कि देखो तुम्हारी ये-ये मांगे मान ली अब चुप-चाप बैठ जाओ. लेकिन फिर भी यह ऊंट के मुह में जीरा के समान ही था. यहाँ तक कि कांग्रेस भी अंग्रेजो से आजादी की मांग नहीं करती थी, वे औपनिवेशिक आजादी की मांग करती थे मतलब अंग्रेज के देखरेख में शासन चलाने का अधिकार मांगते थे या यु कहे कि वे शासन व्यवस्था में भारतीयों को भी भागिदार बनाना चाहते थे, कांग्रेस द्वारा तो पूर्ण स्वतंत्रता की मांग 26 जनवरी 1930 को लाहौर अधिवेशन में की गई फिर भी कई नेताओ का इसपे मतभेद था लेकिन पूर्ण स्वतंत्रता की लड़ाई तो हमारे क्रांतिकारी भाई 1857 से ही लड़ते चले आ रहे थे और उस समय तक आते-आते तो उनकी मांग बहुत ही तेज हो गई थी. इसी प्रकरण में 1937 में अंग्रेजो द्वारा भारत का एक संविधान भी बना दिया गया और उसके अनुसार लोकतान्त्रिक ढंग से चुनाव करवा-करवा कर के राज्यों में सरकारे बनवाना भी शुरू कर दी. जैसे आज बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र के चुनाव होते है ठीक उसी तरह.

नेता भी पद पा-पा कर मस्त और जनता तो ऐसे ही मस्त रहती है, अंग्रेजो ने हमको बढ़िया मुर्ख बनाया था लेकिन अंग्रेजो के भाग्य ने पलटी मार दिया अगर द्वितीय विश्व युद्ध न हुआ रहता जिससे उनकी आर्थिक हालत खराब हो गई और इसके साथ-साथ सुभाष चन्द्र बोस द्वारा सशस्त्र क्रांति न हुई होती तो शायद अभी भी भारत अंग्रेजो के बनावटी लोकतंत्र में उलझा रहता. उस समय  के लोकतंत्र और अभी के लोकतंत्र में अंतर ही क्या है, सब कुछ वैसा कि वैसा ही है. उस समय भी वोट के लिए और सत्ता पाने के लिए नेता कुछ भी करने को तैयार रहते थे और आज भी वैसा ही है. 1946 में कांग्रेस द्वारा अखंड भारत के मुद्दे पर चुनाव लड़ना इस बात ज्वलंत उदाहरण है कि किस प्रकार केंद्र में कांग्रेस की सरकार बनते ही वो तुरंत ही अपने वादे से पलट गई और कुछ समय बाद भारत विभाजन करा के ही दम लिया. यह जनता के साथ कितना बड़ा धोका था? उस समय सारे हिंदुत्ववादी दल भी कांग्रेस को इसी आशा पर समर्थन दिए थे कि शायद कांग्रेस के जितने से भारत विभाजन टल जाए और चुनाव में कांग्रेस के खिलाफ अपना प्रत्यासी नहीं उतारा था. और आजादी बाद भी वैसा ही लोकतंत्र, वही सिस्टम कायम रहा और कांग्रेस और सभी पार्टिया बार-बार जनता को धोका देती रही और आज भी वहीँ हो रहा है.

अंग्रेज गए भी तो ऐसी व्यवस्था कर के गए जिससे कि उनकी शासन पद्धति का मूल ढांचा जो उनलोगों ने हम पर शासन करने के लिए बनाई थी बनी रहे. और वही 1937 वाला संविधान को थोड़ा-बहुत हेर फेर करके हमारे नेताओ ने लागू कर दिया, उसके आलावा हमारे देश में कुछ नहीं बदला, न ही अंग्रेजो द्वारा बनाई गई कानून ही बदले न ही न्याय प्रणाली में बदलाव आया . बस उसमे थोड़ा-थोड़ा सुधार होता रहा. अतः आज भी वही चल रहा है. उसी तरह अंग्रेजो के बनाए मूल ढांचे को बनाए रखते हुए उसमे थोड़ा-थोड़ा करके सुधार  किया जा रहा है उतना कि जिससे जनता का गुस्सा शांत रहे. और जनता को एक लोकतंत्र का झुनझुना भी थमा दिया जाता है कि ये लो अपनी मनपसंद सरकार चुन लो. जनता इसी में खुस होकर कहती है, लोकतंत्र सबसे अच्छा है क्योंकि हम इससे सरकार बदल सकते है. लेकिन उसको ये नहीं मालुम कि सिस्टम तो हमेशा अंग्रेजो का बना-बनाया ही रहेगा. और नई सरकार भी अपना मन मुताबिक़ कार्य नहीं कर सकती. उन्हीं लोगो के कानून के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में आज भी हिंदी समेत सभी भारतीय भाषा बोलने पर प्रतिबंध है. वाह रे हमारी स्वतंत्रता.

हम अपनी स्वतंत्रता तो तब न माने जब सारा का सारा तंत्र हमने अपने से बनाया हो इसमें एक भी विदेशी का न योगदान हो. नहीं तो फिर कैसे स्वतंत्रता (स्व+तंत्र). यहाँ तो सारा का सारा तंत्र ही विदेशी है, हमने तो बस उसमे नाम मात्र का सुधार कर दिया है.

Alok

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