हिन्दू राष्ट्र के स्वप्न के लिए सवर्णों को आरक्षण का मुद्दा त्यागना होगा

हिन्दू राष्ट्र के स्वप्न के लिए सवर्णों को आरक्षण का मुद्दा त्यागना होगा

हिन्दू राष्ट्र के स्वप्न के लिए सवर्णों को आरक्षण का मुद्दा त्यागना होगा

लालच से एकता नहीं आ सकती
बात चाहे हिन्दू-मुस्लिम एकता की हो या सवर्ण एकता की या दलित-मुस्लिम एकता की, कोई भी एकता लालच फैक्टर के बल पर स्थायी नहीं हो सकती।
जब गाँधी जी दक्षिण अफ्रीका से भारत आए और यहाँ अंग्रेजो के विरुद्ध आंदोलन शुरू किया तब उन्होंने यही सोचा कि अगर हम सभी हिन्दू-मुस्लिम एक हो जाए तो अंग्रेजो को यहाँ से निकाल बाहर कर सकते है लेकिन अब प्रश्न यह था कि मुस्लिमो को भी अपने साथ कैसे लाया जाए, और उधर अंग्रेजो ने भी मुस्लिमो को लालच देकर अपनी और खीचने का प्रयास शुरू कर दिया था. तो गाँधी ने मुस्लिमो को अंग्रेजो से भी ज्यादा लालच दे दिया और फिर खिलाफत आंदोलन में तो गाँधी जी ने मुस्लिमो को मन मुताबिक करने की छुट दे दी.

उन्होंने तो हिन्दू-मुस्लिम एकता के लिए गैर देश तुर्की में खिलाफत हटाने के विरोध में मुसलमानों के खुलेआम साथ देने की घोषणा कर दी. इसी से मुसलमानों में धर्मान्धता और बढ़ती ही गई. हद तो यह हो गई थी मुस्लिम गाँधी के मंच पर से ही काफ़िरसाही को हटाने का आह्वान करते थे और मुस्लिम राज्य को बहाल करने की मांग उठाते थे .
इसके आलावा तब तो और हद हो गई जब वे लोग “अहिंसावादी गाँधी’ के मंच पर से ही काफ़िरो को काट डालने का आह्वान करने लगे, इस पर कुछ हिन्दुओ ने गाँधी जी के समक्ष जा कर आपत्ति जताई तो वे बोले अरे नहीं… वे तो अंग्रेजो की बात कर रहे थे मतलब कि गाँधी मुस्लिमो द्वारा अंग्रेजो को काटने कि बात तक को स्वीकार कर लिए थे लेकिन वही बाद में हिन्दुओ द्वारा मात्र चंद सिपाहियों को जलाने के घटना पर एक बहुत बड़ा आंदोलन वापस ले लिया था.
इसी का यह परिणाम हुआ कि जब वही मुस्लिम, एक काफ़िर अंग्रेजो से हार गए तो दुसरे काफ़िर हिन्दुओ को ही काट कर पूरा-पूरा बदला चुकाया, अकेले मोपला में 5000 हिन्दुओ को परलोक पहुंचा दिया गया और फिर भी  गाँधी ने अपने लालच देने वाले सिद्धांत से समझौता नहीं किया उन्होंने इस घटना की निंदा प्रस्ताव तक को ख़ारिज करवा दिया क्योंकि हो सकता था मुस्लिमो के इस कृत्य का निंदा करने पर हिन्दू मुस्लिमो की एकता का स्वप्न टूट जाए. उसके बाद उन्होंने दिन दूना रात चौगुना लालच देना शुरू किया. अंग्रेज 2 देते तो गाँधी 4 देते फिर अंग्रेज 8 देते गाँधी 16. वे अंत-अंत तक वे लालच दे-देकर हिन्दू-मुस्लिम एकता को कायम करने का प्रयास करते ही रहे, पहले पाकिस्तान दिया फिर पाकिस्तान बनने के बाद 55 करोड़ रुपया भी दिलवाया.
लेकिन क्या हुआ इसका परिणाम, हिन्दू-मुस्लिम एकता तो हुई नहीं, हा उनकी एक मांग पूरी होने के बाद दूसरी मांग जरुर उत्पन्न होते गए.
यही बात आज के परिस्थिति में भी लागू होती है जब हम किसी को लालच के बल पर एक करने की कोशिश करेंगे तो वे भी एक तभी तक रहेंगे जब तक वह लालच का factor विद्यमान है लालच का factor हटते ही वे अपने पुराने ढर्रे पर आ जाएँगे।
उसी तरह अगर कोई कहता है कि आरक्षण जैसे  मुद्दे के नाम पर हम सभी सवर्णों को एक कर सकते है तो मान लीजिए कुछ समय के लिए सभी सवर्ण एक हो भी जाएँगे लेकिन उनके मन से जातिवादी धारणा को कैसे हटाओगे? आपको ऐसे-ऐसे लोग तक मिल जाएँगे जिन्हें आरक्षण और जातिवाद में से किन्हीं दो को चुनने का अवसर दिया जाए तो वे जातिवाद को चुनेंगे।
दूसरी बात यह कि आप अगर केवल सवर्णों को ही एकजुट करोगे तो हिन्दू राष्ट्र किस प्रकार बना पाओगे. Rss भाजपा वैगेरह क्यों अब तक अपने मिशन में असफल रही है क्योंकि उनको हिन्दू समाज के मात्र  20-25% लोगो का ही समर्थन मिलता है. और जब आप अपने ग्रुप में जातिवादी मानसिकता के लोग को भर लीजिएगा जो आरक्षण का जबरजस्त विरोध करते हो तो आप ही बताइए कि कौन दलित आपके दल में आएगा, वो तो दूर से ही कन्नी कटेगा. रही बात obc की तो ये हो सकता है obc भी आरक्षण का विरोध करने लग जाए लेकिन वे भी अपनी जातिवादी मानसिकता के चलते जातिवादी सवर्णों के पास तक नहीं फटकेंगे, जाति का गुरुर दोनों में है और ये गुरुर दोनों को कभी साथ नहीं ला पाएगा खास कर जहाँ राजनितिक हित की बात हो. बहुत होगा तो वे आपके आरक्षण के मिटाने के आंदोलन में आपका साथ दे लेकिन फिर भी आपसी जातिवादी खटपट तो रहेगी ही.
फिर सवाल तो वही अटका रहेगा की हम हिन्दुओ को स्थाई रूप से एक डोर में कैसे बांध सकते है. जहाँ तक हिन्दुओ के एकता की बात है तो वो हमने एक बार प्राप्त कर लिया था बाबरी मस्जिद के समय. उस समय दलित भी सवर्णों के साथ आ गए थे, फिर क्या हो गया कि हम हिन्दुओ को लम्बे समय तक एक नहीं कर सके. वही कारण है जातिवाद का.
तो हमारा साफ मानना है कि हम इस ‘आरक्षण’ को हिन्दुओ को एक करने का जरिया नहीं बना सकते. हाँ, यह कह सकते है जब हम हिदू राष्ट्र को प्राप्त कर लेंगे तो सारी व्यवस्था को समतामूलक बनाने के क्रम में इस आरक्षण पर विचार कर सकते है, लेकिन फिर भी हमें याद रखना होगा कि आरक्षण को आखिर क्यों लाया गया था?
आरक्षण को जाति के आधार पर लागू करने की जरूरत कैसे पड़ी, क्योंकि हमारे समाज में जाति के आधार पर भेद-भाव किया जाता था और यह अभी भी है.
समाज में किसी खास प्रकार के लोग ही आगे  बढ़ पाए अतः पिछड़े वर्ग के लोगो जिनको जाति के आधार पर भेद-भाव किया गया उनको आगे बढ़ाने के लिए ही तो यह आरक्षण लागू किया गया, जब वे लोग गुलामी काल में 1000 वर्ष से ज्यादा समय तक अन्याय सह सकते है तो क्या हम कम से कम जातिवाद मिटने तक थोड़ा सा अपने ही भाइयो के लिए अन्याय नहीं सह सकते. और हम इस छोटे से अन्याय को सहने की बात इसलिए कह रहे है क्योंकि हमे एक बड़ा अन्याय को खत्म करना है और वो अन्याय भी हजार वर्षो से ही होता आया है . कुछ पाने के लिए तो कुछ खोना पड़ता ही है अतः हमे दलितों और अन्य पिछड़ा वर्ग का भी समर्थन पाने के लिए इस आरक्षण का फ़िलहाल समर्थन करना चाहिए.

written by alok desh pandey
feb 2015

 

Leave a Reply


The reCAPTCHA verification period has expired. Please reload the page.