यात्रा_संस्मरण
#मेरी_पहली_पूर्वोत्तर_यात्रा
by Alok Desh Pandey
दिनांक:- 17 अप्रैल 2023 से 27 अप्रैल 2023
Day 1&2 (17-18 अप्रैल 2023)
#बक्सर_से _गुवाहाटी:-
आने से दो दिन पहले तत्काल टिकट चेक कर रहा था, और सौभाग्य से तीन टिकट मिल भी गया जिनमें मेरे साथ मेरे दो अन्य ममेरा भाई विवेक और देवेश भी थे। गाड़ी गांधीधाम कामाख्या एक्सप्रेस 17 को सुबह 08:30 बजे थी, लेकिन उस दिन 11 बजे आई, और धीरे-धीरे शाम होते – होते 5 घंटा लेट हो गई। स्लीपर बोगी में गर्मी ने बहुत परेशान किया और दिन भर पानी पीते हुए ही बीता, रात हालांकि ठंडा बीता और जब सुबह उठे तो हम बंगाल में थे और मौसम सुहावना था। 6:00 बजे के जगह 11:00 बजे हम लोग कामाख्या जंक्शन पर उतरे। वहां उतरने पर टेम्पो वाले मनमानी भाड़ा मांग रहे थे, लेकिन किसी ने बताया कि आगे से सिटी बस मिलेगी जो सस्ते में शहर में कहीं भी पहुंचा देगी। सो हम लोग मुश्किल से आधे किलोमीटर चले तो मेन रोड आ गया और वहां से कामाख्या मंदिर गेट के लिए बस पकड़ लिए जो प्रति व्यक्ति 10 रु लिया। अब तक धूप कड़कड़ा कर हो चुकी थी और तापमान 32 डिग्री पहुंच गया था।
#कामाख्या_मंदिर_दर्शन:-
शुरू में हमलोगों की योजना थी कि वहां मंदिर के आसपास ही हम लोग अपने ठहरने की व्यवस्था कर लेंगे फिर नहा धोकर दर्शन करने जाएंगे लेकिन वहां नीचे कोई होटल वगैरह मिला ही नहीं, और इसी क्रम में हमलोग पैदल ही आगे बढ़ते रहे लेकिन पीठ पर भारी भरकम बैग लदा हुआ था, सो इसके साथ चलना अब मुस्किल हो गया था। मंदिर की दूरी मंदिर की गेट से 3 किलोमीटर थी और गेट पर ही वहां तक जाने के लिए साधन मिल रहा था लेकिन हम लोग उसे इग्नोर कर आगे बढ़ गए थे, और बीच रास्ते में कोई साधन नहीं मिल रहा था। इस बीच विश्राम करने के लिए एक जगह रुके तो वहां के एक लोकल ने बताया कि पैदल शॉर्ट कट के लिए सीढ़ी से चले जाओ तो बस 1 किमी ही पड़ेगा, जो बगल से ही गुजर रही थी, लेकिन उसकी बात मान कर हम लोग और मुसीबत में पड़ गए और एक बार में 100 मीटर भी नहीं जा पा रहे थे क्योंकि वो सीधी चढ़ाई थी। बीच रास्ते में ही हम लोग सत्तू वैगेरह घोल कर पिए और फिर दो तीन बार और आराम करते हुए आगे बढ़े, हालांकि अमरनाथ यात्रा में हमलोग इससे मुश्किल परिस्थितियों का सामना किए है लेकिन वहां मौसम ठंढा था जबकि यहां लगातार पसीना गिरते ही जा रहा था। उपर पहुंचने पर वहां प्रसाद बेचने वाले ने ही 50 रु प्रति व्यक्ति के हिसाब से नहाने धोने के लिए एक कमरा उपलब्ध करा दिया। जहां कुछ देर हमलोग आराम करते हुए स्नान कर दर्शन करने चल दिए। वहां प्रसाद वाला बताया था कि हमें दर्शन के लिए लाइन लगाना पड़ेगा तो हम भी इसी चक्कर में पड़े तब तक एक महिला बोली अभी लाइन में लगेंगे तो 3 – 4 घंटे लग ही जाएंगे, इधर हमलोग कुछ ज्यादा खाए भी नहीं थे, सो साइड से दर्शन के उपाय सोचने लगे, गर्भ गृह के नजदीक पहुंचे तो वहां अंदर लाइन में कुछ लोगों ने हमसे बोतल में पानी मांगा तो पूछने पर पता चला कि वो लोग तो सुबह 06 बजे से ही लाइन में लगे है और अभी 2 बजे तक दर्शन नहीं हो पाया था, इससे हमलोगो की हिम्मत और टूटने लगी, तभी एक रास्ता अंदर जाता नजर आया जो सबके लिए खुला था, वहां गेट नंबर 2 लिखा था, उधर से जाने पर हमलोगों को तुरंत ही माता जी के दर्शन हो गए लेकिन हम लोग माता जी से 10 फिट दूरी एक ग्रिल के बाहर थे और जो लाइन लग कर गए थे वो ग्रिल के अंदर से दर्शन कर रहे थे, इसके अलावा एक वीआईपी दर्शन का भी लाइन लगा था जिसका चार्ज 501/- रु था। खैर दर्शन तो दर्शन होता है किसी भी तरह हो। दर्शन करने के पश्चात मंदिर के गेट से बाहर निकलते ही हमलोगों को एक भंडारा दिखाई दिया जहां हमलोगों ने माता का प्रसाद खिचड़ी के रूप में खाया और वापसी के लिए प्रस्थान कर दिए। वहां मंदिर से समीप ही गुवाहाटी स्टेशन के लिए बस खुल रही थी जो एक सवारी का 25 रु ले रही थी।
#गुवाहाटी_में_ही_आराम:- सब कुछ जल्दी हो जाता तो हमलोगों की योजना उसके बाद उमानांद मंदिर देखने की थी जो ब्रम्हपुत्र नदी के बीच में एक टापू पर स्थित था, जिस पर लोग स्टीमर से जाते थे, लेकिन गर्मी और थकावट के चलते हमलोग यह योजना रद्द कर ठहरने के लिए एक बजट होटल खोजने लगे। वहां स्टेशन से नजदीक ही एक पलटन बाजार है जहां असंख्य होटल है लेकिन सभी अपना रेट 1000-1200 रु से उपर ही बता रहे थे, फिर हमलोगों ने दिमाग लगा कर ठीक मेन रोड पर स्थित होटलों पर ध्यान न केंद्रित करते हुए थोड़ा गली गुची पर ध्यान केंद्रित किया और हमें 700 रु में 3 अलग अलग बेड वाला होटल मिल गया था। शाम को निकले तो पलटन बाजार घूमने में 2- 3 घंटा लगा गया, उधर से ही खाना खा कर होटल में वापस आए तब तक खूब जोर से बारिश होने लगी। जो रात भर होते रही। सुबह उठे तो कड़ा धूप निकला हुआ था। आज हमलोग शिलांग जाने वाले है, मिलते है आगे कि यात्रा में…
Day 3 (19 अप्रैल 2023, बुधवार)
#गुवाहाटी_से_शिलांग :-
19 अप्रेल को सुबह हमलोग खा पीकर गुवाहाटी के पलटन बाजार में स्टेशन के समीप पहुंचे तो कई सूमो वाले शिलांग-शिलांग चिल्ला रहे थे, वे लोग प्रति व्यक्ति 300 रु ले रहे थे और लगभग 10 यात्री बैठाने के बाद चल देते थे। हमलोग 11 बजे दोपहर में गुवाहाटी से चले तो 3 बजे के आसपास शिलांग के पुलिस बजार में थे।
#पुलिस_बजार शिलांग:-
यह शिलांग के सबसे महत्वपूर्ण जगहों में से एक है और शिलांग के केंद्र में स्थित है। यहां नाना प्रकार के होटल और खाने के समान मिल जाएंगे। शिलांग में हमारे एक परिचित व्यक्ति मिल गए जो वही रहते थे। उन्होंने हमें एक होटल का पता बताया जो शुद्ध शाकाहारी था, जो कि शिलांग में मिलना बहुत ही मुश्किल है। उसका नाम होटल हरिओम था और वह भी पुलिस बाजार के नजदीक ही था, उसमें सस्ते में रुकने की व्यवस्था भी हो गई। उसके अंदर घुसते ही होटल मैनेजर ने हिदायत दिया कि “नॉनवेज एंड ड्रिंक्स आर नॉट अलाउड”। कमरे भी साफ सुथरे थे और हमलोगों के लिए 750 रु में तीन बेड वाले एक कमरे की व्यवस्था हो गई।
शाम को हमलोग थोड़ा भ्रमण किए और आसपास घूमने वाले स्थानों के बारे में पता किए।
#मेघालय के कुछ महत्वपूर्ण पर्यटन स्थल:-
मेघालय जो बारिश के लिए पूरी दुनिया में प्रसिद्ध है, चेरापूंजी और मासेनराम में तो पूरी दुनिया में सबसे ज्यादा बारिश होती है, इसके आलावा दौकी नदी जिसकी क्रिस्टल क्लियर पानी में नदी की तलहटी तक साफ दिखाई देती है।
एक यूट्यूबर को देखने से पता चला कि एक MTDC की सरकारी बस सस्ते में इन सब जगहों पर भ्रमण करा कर रात में वापस शिलांग छोड़ देती है। उसका ऑफिस पुलिस बजार से 1 किमी दूर ऑकलैंड पोस्टऑफिस के सामने था। उसकी बुकिंग के लिए एक दिन पहले ही जा कर बुक करवाना पड़ता है लेकिन हमलोग एक दिन पहले नहीं जा पाए। वो तो भाग्य अच्छा था अगले दिन सुबह जाने पर कुछ लास्ट टिकटें बची थी वरना प्राइवेट टैक्सी में मेघालय घूमना बहुत महंगा पड़ जाता। वहां से हर जगह की बस खुलती थी, डौकी नदी, चेरापूंजी, मासेनराम, बड़ा पानी इत्यादि। हम लोगो ने पहले दिन डौकी नदी तक की यात्रा करने की योजना बनाई।
Day 4 (20 अप्रेल 2023, गुरुवार)
चूंकि टिकट हमलोग एक दिन पहले नहीं कटा पाए थे तो सुबह 6 बजे ही हम एक बार MTDC ऑफिस के चक्कर लगा आए, लेकिन सब कुछ बंद था, पुनः हम सभी सीधे तैयार हो कर गए तो 08 बजे ऑफिस खुलते ही टिकट कटा लिए। डौकी के लिए ₹600/- प्रति व्यक्ति लग रहा था, जिसमें वो 230 किमी यात्रा के दौरान 5 जगहों पर घुमाने वाला था, इस दौरान उसको लौटने में रात्रि के 08 बजने थे। हमने अगले दिन के लिए चेरापूंजी का टिकट भी करा लिया जो दोनो ओर 145 किमी की यात्रा के दौरान 8 जगहों पर घुमा रहा था और ₹400/- प्रति व्यक्ति ले रहा था। हम लोगो की बस सुबह 08:30 बजे तक वहां से खुल गई और शुरू हो गया पहाड़ो के अदभुद नजारे।
#डौकी नदी तक की बस यात्रा (एक अदभुद रोमांच):-
सुबह जब हम लोग शिलांग से निकले तो धूप खिली हुई थी, लेकिन जैसे- जैसे बस आगे बढ़ी हमलोग ऊंचाई की ओर बढ़ते गए और आगे 6000 फिट की ऊंचाई पर हमें चारो से बादलों ने ढक लिया और ठंड लगने लगी, बस अपने पहले पड़ाव canyon view point पर रुकी वहां से चारो ओर बादल बादल ही दिखाई दे रहे थे, वहां हमलोग जी भर के फोटोग्राफी किए फिर बस आगे single living root bridge की ओर बढ़ी। living root bridge मतलब जिंदा पेड़ के जड़ों से बना पुल। यह स्थान विश्व में अनोखा है जहां वृक्ष के जड़ से ही नदी पर पुल बन गया है, मेघालय में ऐसे दो जगह है दूसरा वाला पुल डबल डेकर है लेकिन उसको घूमने के लिए एक पूरा दिन निकालना पड़ता है। इसके नजदीक ही एक गांव है Mawlynnong जिसे एशिया के सबसे साफ गांव का दर्जा प्राप्त है, वहां हमलोग करीब 01:45 PM में पहुंचे और बताया गया कि हमें लंच यही करना है, पहले हमलोग सारा गांव घूमे फिर खाना खाए, उसके बाद चल दिए बांग्लादेश बॉर्डर की ओर जहां डौकी नदी का पानी इतना साफ हो जाता है जिससे नदी की तलहटी भी साफ – साफ दिखती है, हालांकि यह पूरे वर्ष इतना साफ नहीं रहती और हमलोग थोड़ा ऑफ सीजन में गए थे फिर भी इसका दृश्य देखने में बनता था। वहां नौका भ्रमण के लिए प्रति तीन व्यक्ति पर 800 रु ले रहा था, हमारे साथ जो दो थे वो तो तुरंत सारे कपड़े उतार कर नदी में छलांग लगा दिए और जी भर कर नहाए, हमलोग वहां 1 घंटे से ज्यादा रहे और 06 बजे हमारी बस जब वहां से खुली तो 09:15 PM तक हमलोग शिलांग के पुलिस बजार में थे। एक ही दिन में इतना घूम लिए कि लगता था अब मन ही भर गया।
20 अप्रैल को MTDC की बस में शिलांग से डौकी तक रोमांचक सफर करने के बाद अगले दिन चेरापूंजी के लिए भी टिकट बुक कर लिए थे।
Day 5&6 (21-22 अप्रैल 2023)
चूंकि लगभग 08 बजे ही बस खुलने का समय था, उन दोनों को समय से उठाना भी एक चुनौती था, किसी तरह सबको तैयार कराने के बाद नाश्ता वैगेराह कर समय पर बस में चढ़ गए और चल दिए चेरापूंजी की ओर।
हमारी बस लगभग एक घंटा चलने के बाद Mawkdok Dympep Valley View Point पर रुकी जहां हमलोग कुछ फोटोग्राफी वैगेरह किए फिर चेरापूंजी की ओर आगे बढ़ गए। उसके बाद से शुरू हुआ हम लोगों का चेरापूंजी सफर। सबसे पहले बस चेरापूंजी में रामकृष्ण मिशन आश्रम के पास पहुंची, जहां पहुंचते ही बारिश ने जोरदार तरीके से स्वागत किया हालांकि 10 मिनट में ही बंद भी हो गई, इसके बाद शुरू हुआ प्राकृतिक नजारे दिखने का सिलसिला।
हमारी बस थोड़ी-थोड़ी दूरी पर अलग- अलग प्राकृतिक view point पर रुकती और बस के सारे पर्यटक उतारकर फोटोग्राफी करने लग जाते, किसी का मन भरता नहीं था, तब तक बस वाला हॉर्न बजाने लगता। इसमें हम लोग के साथ एक बूढ़े चाचा टाइप नमूना सफर कर रहे थे, वो हर बार बस में चढ़ने में लेट कर देते। पता चलता कि सारे पर्यटक चढ़ गए हैं और वह उधर प्रकृति के मजे ले रहे हैं, फिर कंडक्टर को उनको अलग से प्रयास करना पड़ता था, इस क्रम में कंडक्टर जो कि एक महिला थी यही वार्निंग देती थी इस तरह लेट करेंगे तो हम एक दो प्वाइंट कम घुमाएंगे। वे पूरे रास्ते यात्रियों के मनोरंजन के केंद्र बने रहे।
इस बीच हमारी बस हमें इंडिया के दूसरे सबसे लंबे जल प्रपात के पास ले गई, फिर seven sisters waterfalls के पास ले गई जहां 7 झरने एक साथ गिर रही थी, उन सातों झरनों को पूर्वोत्तर के सात राज्यों का प्रतीक बताया गया। इस बीच हमलोग एक संकरी गुफा को भी घूमने गए जिसका नाम MAWSMAI CAVE था। उधर से ही एक प्वाइंट पर पहाड़ो से दूर बंगलादेश बॉर्डर भी दिखाई दे रहा था, बीच-बीच में ऐसा भी लगता था कि हमलोग बदलो से ही होकर गुजर रहे है क्योंकि अचानक से बहुत घना कोहरा छा जाता था। इसी तरह पूरे रास्ते रुक रुक कर बारिश होती रही और शाम 06:30 बजे तक हमलोग पुलिस बजार में थे।
आज का दिन कल से भी रोमांचक गुजरा, इतना घूम लिए लगा अब कही घूमने की जरूरत नहीं है, इसीलिए जब सभी सोए तो अगले दिन 09 बजे से पहले नहीं उठे। अब शिलांग में कही और घूमने का मन नहीं था सो हम सभी अपना सारा समान पैक कर वापस गुवाहाटी जाने की तैयारी करने लगे और दोपहर 01 बजे तक हमलोगों ने होटल से चेक आउट कर लिया। शाम को 05 बजे तक हम गुवाहाटी स्टेशन पर थे।
#नागालैंड_के_किस्से और कठिन_विकल्प_चुनना :-
जब हम घर से निकले थे तो एक सपना लेकर चले थे कि पूर्वोत्तर के कम से कम तीन चार राज्य तो छू ही लेंगे इसीलिए हमने अगला प्लान नागालैंड की राजधानी कोहिमा घूमने का बनाया, लेकिन नागालैंड का नाम सुनते ही उनलोगो के मन में नेगेटिविटी छाने लगी, शायद वे लोग सुन लिए थे कि वहां आदमी को मार कर खाते है🤣,
खैर नागालैंड के बारे हमें भी कुछ मालूम नहीं था कि वहां पहुंचने के बाद कहा रहना है कहां खाना है या वहां कैसा वातावरण है, मालूम था तो हमें कि वहां किसी भी तरह जाना है,
लेकिन हमारे दोनो भाई हिम्मत नहीं जुटा पाए और जाने से साफ इंकार कर दिए। बीच रास्ते में ही हम बहुत असमंजस में पड़ गए, अंत में फैसला यही हुआ कि वे दोनो उसी समय तत्काल बक्सर की गाड़ी पकड़ेंगे और हम भी जय श्री राम का नाम लेकर कुछ जरूरी सामान ले उन दोनो को विदा कर चल दिए, अकेले ही नागालैंड की ओर। आज 23 अप्रैल की सुबह हम नागालैंड के दीमापुर स्टेशन पर थे।
Day 7 (23 अप्रैल 2023, रविवार)
22 अप्रैल को जब साफ हो गया कि मेरे साथ नागालैंड कोई नहीं चलने वाला है, मैंने अकेले ही जाने का निर्णय ले लिया तब मेरे पास नागालैंड के किसी भी व्यक्ति का कोई लिंक नहीं था, न नागालैंड के बारे में, बस इतना मालूम था कि नागालैंड जाने के लिए दीमापुर वाली ट्रेन पकड़नी है अतः सबकुछ भगवान पर छोड़ कर पौने 09 बजे एक दीमापुर की ट्रेन में बैठ गया। लेकिन वो कहते है न जब आप प्रयास करते है तो भाग्य भी आपका साथ देने लगता है, ट्रेन में बैठते ही मुझे वहां के संपर्क सूत्र मिलने लगे और फिर धीरे- धीरे कोहिमा, इंफाल सब जगह के संपर्क सूत्र मिलने लगे।
#खटखटी_में_पड़ाव:-
हमारी ट्रेन रात के 2 बजे ही दीमापुर स्टेशन पर उतार दी थी, तो वहां एक एसी वेटिंग रूम था जो 10 रु प्रति घंटे के हिसाब से चार्ज ले रहा था, वही जाकर सो गया, सुबह 06 बजे उठा तो वहां से हमे एक जानकर के यहां खटखटी जाना था, चूंकि दीमापुर, नागालैंड-आसाम के बॉर्डर पर स्थित है अतः पहले स्टेशन से नागालैंड गेट के लिए ऑटो लेना पड़ता है, फिर नागालैंड सीमा को क्रॉस कर असम पहुंचने के बाद असम के खटखटी या बोकाजान के लिए कोई साधन मिलता है।
#दीमापुर_में_हिंदू_सम्मेलन:-
खटखटी में जब रुके तो बात ही बात में संघ के एक स्वयंसेवक ने बताया कि वह दीमापुर में एक हिंदू सम्मेलन में भाग लेने जा रहे है, नागालैंड और वहां हिंदू सम्मेलन ये शब्द सुन कर मन में बहुत जिज्ञासा उत्पन्न हो गई कि हमे उन लोगो से अवश्य मिलना चाहिए जो इस विषम परिस्थिति वाले राज्य में हिंदू संगठन का कार्य कर रहे है, उसके बाद उस दिन कही और जाने का कार्यक्रम रद्द कर इस सम्मेलन में ही पूरा दिन बिताने का निश्चय कर लिया। वहां मुझे पूर्वोत्तर में हिंदू संगठन के लिए काम करने वाले कई बड़े लोगो से मुलाकात हुई और उनके माध्यम से इस क्षेत्र के बारे में ढेर सारी जानकारियां भी मिली, इसके साथ ही कोहिमा इंफाल वैगेरह में भी संपर्क सूत्र मिल गए। अब इतना संतोष हो गया था कि इन जगहों पर जाएंगे तो बिलकुल अकेले नहीं रहेंगे बल्कि इन क्षेत्रों के बारे में कुछ बताने वाले लोगो से भी मुलाकात हो जाएगी। आज रात दीमापुर में ही रुक गया और कल सुबह कोहिमा जाने की तैयारी में लग गया।
#नागालैंड_में_प्रवेश_के_लिए_अनुमति_पत्र :-
मैं शुरू से पढ़ते आया था कि नागालैंड समेत कई पूर्वोत्तर राज्यों में कोई सीधे प्रवेश नहीं कर सकता इसके एक अनुमति पत्र लेना पड़ता है जिसे इनर लाइन परमिट कहते है, वहां #हिंदू_सम्मेलन में जाने से मुझे इसकी समुचित जानकारी हुई और उन्हीं लोगो के सहयोग से मैंने इसके लिए ऑनलाइन आवेदन कर दिया। उन्हीं लोगो के सहायता से इसलिए क्योंकि फॉर्म भरते वक्त वहां के एक स्थानीय व्यक्ति का reference और मोबाइल नंबर mandatory मांग रहा था जो मुझे आसानी से उपलब्ध हो गई। अगले दिन कोहिमा पहुंचते पहुंचते मेरा आवेदन स्वीकृत हो गया और इसके लिए मुझे 15 दिन के लिए 50 रु शुल्क के रूप में चुकाना पड़ा।
#दीमापुर_से_कोहिमा_बस_यात्रा :-
दीमापुर स्टेशन के पास ही एक बस स्टैंड है जहां से कोहिमा के लिए बस मिल रही थी, हम अगले दिन 24 अप्रैल को सुबह 9 बजे बस स्टेंड पहुंच कर टिकट वैगेरह कटाए, वहां से कोहिमा तक सरकारी बस का भाड़ा मात्र 100 रु था, हमारी बस 10 बजे खुली और बीच में एक जगह 15 मिनट का ब्रेक लेकर दोपहर 12:00 बजे तक कोहिमा के ISBT बस स्टैंड पहुंच गई। वहां से हमे कोहिमा में तीन पत्ती जाना था जो 7 किमी था, उसके लिए एक और बस पकड़ा जो हमसे 40 रु लिया और तय जगह पर पहुंच गए। वहां हमें एक स्थानीय कार्यकर्ता रूकूवोटो (rukuvoto) जी मिले जिनके जरिए हम कोहिमा में घूम पाए।
Day 8 (24 अप्रैल 2023, सोमवार)
कोहिमा शहर का रोमांचक यात्रा संस्मरण
आज दोपहर को हम कोहिमा में थे, और केवल भर ही हमें कोहिमा में रुकना था सो जो भी घूमना था आज ही घूम लेना था, इस बीच मैंने कोहिमा के आसपास के पर्यटन स्थलों के बारे में पता लगाया।
#कोहिमा_वार_सेमित्री और अन्य पर्यटन स्थल:-
कई लोगो से पूछने पर यही पता लगा कि पूरे कोहिमा में यही एक जगह है जहां पर्यटक घूमने जाते है, हालांकि मैं कोहिमा आया ही इस स्मारक के लिए था लेकिन और कोई अच्छी घूमने वाली जगह में कोहिमा में 25 किमी दूर जोको वैली है, जिसे गर्मियों में फूलो इत्यादि के सौदर्य के लिए तथा जाड़े में बर्फ की वजह से यात्री वहां अक्सर जाते है, मुझे सिर्फ एक ही दिन रुकना था सो मैंने केवल युद्ध स्मारक ही देखने का निश्चय किया।
#कोहिमा_युद्ध_स्मारक का ब्रिटिश नियंत्रण में होने की जानकारी को प्रमाणित करने वाले एक वर्षों पुराने सपने का पूरा होना:-
लगभग 7-8 साल पहले ही एक आलेख पढ़ा था जिसमें बताया गया था कि किस प्रकार वर्तमान भारत सरकार अभी भी पुरातन ब्रिटिश गुलामी के चिन्हों को ढो रही है, जैसे रानी लक्ष्मी बाई को जिस रेजिमेंट ने हराया था वो अभी भी उनकी तलवार को गर्व पूर्वक प्रदर्शित करते है, इसी कड़ी में कोहिमा का नाम सुना था कि किस प्रकार अंग्रेजो ने आजाद हिंद फौज को हराने के बाद वहां वार सेमेट्री बनाया लेकिन आजादी के बाद भी उसका नियंत्रण अभी भी ब्रिटिश सरकार के हाथों में है और इसे वह भारतीयों को गर्व की तरह प्रदर्शित कराता है, जबकि यह आजाद हिंद फौज के सैनिकों का एक तरह से अपमान है, लेकिन उस समय मुझे यह बात हजम नहीं हुई थी कि क्या सच में ऐसा है तभी से मुझे कोहिमा के इस स्मारक की सच्चाई जानने की एक तड़प सवार थी, लेकिन मुझे अभी ऐसा कोई नहीं मिला जो इस बात को कन्फर्म कर सके। यहां तक कि वहां के स्थानीय rukuvoto जी ने भी इस बात से हैरानी जताई और इस बात को सच मानने से इंकार कर दिया। इसके बाद आखिरकार दोपहर 2 बजे इस युद्ध कब्रिस्तान के पास पहुंच ही गया। वहां पर बहुत सारे अंग्रेजो और भारतीय सैनिकों के कब्र थे जहां एक – एक सैनिकों की वीरता के बखान करते हुए उद्धृत किया गया था कि कैसे फलाना सैनिक वीरगति को प्राप्त हुआ, हिंदू सैनिक जिनका कब्र नही बन सकता था उनके लिए एक अलग स्मारक बनाया गया था जिसपर उन सभी सैनिकों के नाम लिखे हुए थे जो इस युद्ध में वीरगति को प्राप्त हुए थे, उस कब्रिस्तान को अदभुद सजाया गया था, साफ सफाई और फूलो के पार्क बेहतरीन थे लेकिन मुझे इस बात का प्रमाण ढूंढना था कि इन सारे खर्चों को ब्रिटिश सरकार ही वहन करती है, अंत में वहां मौजूद एक sis के प्राइवेट गार्ड से पूछने का प्रयास किया और उसने मेरे मन की बात बता दी कि यहां का सारा खर्च ब्रिटिश सरकार उठाती है लेकिन फिर भी उसकी बातों में वजन नहीं लग रहा था न ही वह पुख्ता तरीके से अपनी बातों को रख रहा था, इसीलिए मुझे किसी अधिकारी या किसी बड़े आदमी से इस बात को सुनने का मन कर रहा था, तभी नीचे से कोई वीआईपी जैसा लगने वाला व्यक्ति इस स्मारक को घूमते हुए आया, उसके आगे पीछे सेना के जवान चल रहे थे उनमें से आसाम राइफल्स का एक अधिकारी उनके लिए गाइड का काम कर रहा था, मुझे लगा जरूर यह कुछ बता सकता है और मैं उनलोगो के पीछे – पीछे हो लिया। उसके बाद मेरी मन की मुराद पूरी हो गई जब उसने बताना शुरू किया कि यहां के एक-एक स्टाफ के सैलरी से लेकर सारा सौंदर्यीकरण के खर्चे तक ब्रिटिश सरकार वहन करती है।
#अभी तक हीन भावना के शिकार बने हुए हमारी व्यवस्था के प्रमाण:-
जब वो अधिकारी युद्ध स्मारक या इस कब्रिस्तान के इतिहास के बारे में बताना शुरू किया तो वह गर्व से बता रहा था कि कैसे जपानियो ने इस पहाड़ी तक सारा कोहिमा विलेज इत्यादि कब्जा कर लिया था, फिर हमारी सेना reinforcement लेकर आई और उन सभी को पीछे धकेल कर हरा दिया इतने पर मुझे रहा नहीं गया और मैंने उनसे पूछ दिया सर आप बार -बार जापानी शब्द का प्रयोग क्यों कर रहे है, यहां तो ब्रिटिश फौज और सुभाष चंद्र बोस जी के नेतृत्व वाली आजाद हिंद फौज के बीच लड़ाई हुई थी, इस पर वह अधिकारी बोलने लगा कि मुझे यही लाइन बोलने की अनुमति है यह शब्द बोलने के लिए मुझे लिखित परमिशन चाहिए, तभी वो जिनको समझा रहा था उन्होंने हस्तक्षेप करते हुए मेरा समर्थन किया और कहा कि नहीं नहीं आजाद हिंद फौज तो यहां लड़ी ही थी।
फिर जब और आगे बढ़े तो एक बार फिर उस अधिकारी ने जपानियों को हराने की वीरता का वर्णन करना शुरू कर दिया, इसपर फिर मैंने पूछा कि यह जीत हमारे लिए गर्व का विषय कैसे हो सकता है, जब ब्रिटिश फौज और आजाद हिंद फौज के बीच लड़ाई हुई और दोनों ओर से भारतीय सैनिक ही मरे तो तो अगर विजय आजाद हिंद फौज की होती तो गर्व का विषय होता ब्रिटिश फौज का विजय हमारे लिए गर्व का विषय कैसे है?
उसके बाद से वहां का माहौल बदल गया, और उस अधिकारी ने साइड में आकर मुझसे बात करनी शुरू कर दी और उसने अपनी निजी इच्छा जाहिर करी कि मुझे भी जानना था कि आजाद हिंद फौज इस युद्ध में कैसे लड़ी और कहा कहा तक आगे बढ़ी, मैंने उनको एक दो पुस्तकों के नाम बताए जिससे यह जानकारी उनको मिल सके। फिर वो जिस वीआईपी व्यक्ति को गाइड कर रहा था उनसे मैंने परिचय जानना चाहा तो पता चला वे हरियाणा से बीजेपी के राज्यसभा सांसद रामचंद्र जांगड़ा थे, उन्होंने मेरी बहुत प्रशंसा की तथा मेरा परिचय वैगेरह पूछ मुझसे ढेर सारी बात भी की।
जब इस घटना को मैंने अपने एक मित्र से साझा किया तो उसने मुझे उलाहना देना शुरू कर दिया कि आपने एक बड़े मौके को गंवा दिया, जब मालूम चल गया था कि वो राज्यसभा सांसद है तो इस बात को सरकार के सामने रखने के लिए उनसे आग्रह करना चाहिए था ताकि इस विषय पर सरकार कोई उचित कदम उठाए।
हालांकि उनसे परिचय तो अंतिम में हुआ था, उससे पहले ही संग्रहालय से संबंधित सारी बाते हो गई थी। खैर यह केवल एकमात्र उदाहरण थोड़े न है ऐसे उदाहरण भरे पड़े है, उन सभी पर सरकार को कदम उठाना चाहिए।
#कोहिमा_का_बाजार:-
कोहिमा वार सेमित्रि से कुछ ही दूरी पर एक चौराहा राझू प्वाइंट(Razhu point) है, इसे आप कोहिमा का केंद्र या हृदय स्थली भी बोल सकते है, यहां बड़ा बाजार है और इसके आसपास आपको ढेर सारे होटल, रेस्टुरेंट इत्यादि मिल जाएंगे। इसके बगल में ही NST बस स्टैंड है जहां से इंफाल के लिए बस मिलती है, वहां से दीमापुर वापस जाने के लिए आपको वहां से लोकल बस पकड़ ISBT बस स्टैंड जाना होगा। मैंने आज शाम को ही इंफाल जाने के लिए बस पता कर लिया, जो दिन भर में केवल एक ही थी, वो भी सुबह 06 बजे।
#कोहिमा_में_शाकाहारी_भोजन ?
उधर से जब वार सेमित्री देख कर वापस आ रहा था तो भूख लग आई थी, लेकिन स्ट्रीट फूड पर जहां नजरे दौड़ाता था वहां केवल मांसाहार ही मांसाहार नजर आ रहा था। एक जगह एक वेंडर मोमो जैसा बर्तन में कुछ बेच रही थी, बाहर से भी देखने पर कुछ मोमो जैसा ही लग रहा था, सो मैंने पूछ दिया is it vegetarian, उधर से तुरंत जवाब आ गया, no no this is pork momo, उसके बाद से इन वेंडरों पर से विश्वास उठ गया। फिर एक बिहारी जैसा दिखने वाला छोला बेचने वाला दिखाई दिया, वो भी अंडा के साथ छोला बेच रहा था, उससे हाल चाल पूछा तो ज्ञात हुआ पटना का ही रहने वा
ला है, फिर अपना दुखड़ा रोया तो उसने बोला कि मैं आपको pure veg छोला ही खिला देता हूं, हालांकि ऐसा भी नहीं है शाकाहारी उपलब्ध ही नहीं है, बस थोड़ा खोजने में थोड़ी मेहनत करनी पड़ेगी।
सबसे आश्चर्य तो तब हुआ जब एक अजीब प्रकार का मांस का टुकड़ा बिकते हुए देखा, बगल के एक सब्जी वाली से इसके बारे में पूछा तो पता चला कि यह कुत्ता का मांस है, यह तो यहां ऐसे बिक रहा था जैसे हमारे यहां बकरे का मांस बिकता हो। इसको देखकर मन में यही कल्पना उठी कि ये लोग इस तरह कुत्ते खाएंगे तो इलाके के सारे कुत्ते ही गायब हो जाएंगे तो जिस प्रकार इधर बकरी पालन एक व्यवसाय है उधर कुत्ता पालन भी एक व्यवसाय होना चाहिए। और इससे ही जुड़ी एक और घटना याद आ गई जब दिल्ली में रहने वाले एक कुत्ता प्रेमी मित्र ने बताया था कि मैं रोजाना गली के आवारा कुत्तों को खिलाया करता था लेकिन अचानक से उनकी संख्या घटने लगी और थोड़े ही समय में मोहल्ले से सारे कुत्ते गायब हो गए, थोड़ी सी छान बीन करने पर पता चला कि मोहल्ले में कुछ नागालैंड के निवासी रेंट पर कमरा लेकर रह रहे है।
उस मित्र ने उन नागालैंड निवासियों से बात किया तो पता चला कि वे लोग इधर से की कुत्ता चुरा कर उधर ले जाते है और ऊंचे दामों पर बेंच देते है।
#कोहिमा_में_पानी_की_कमी
मैंने पहली बार ऐसा कोई शहर देखा, जहां नहाने की पानी की भी कमी रहे, मैं जहां ठहरा था वहां एक हजार लीटर वाली पानी टंकी को फूल करवाने के लिए 700 रु देना पड़ता था। इतना कमी तो हम राजस्थान में भी न देखे होंगे।
#शाम_को_06:30_बजे_तक_सारा_कोहिमा_बजार_बंद
ये देखने में बहुत अटपटा लगा, अभी शाम के 06 बजे थे, मैंने रूकूवोटो को बजार चलने के लिए बोला तो वह बोलने लगा कि अब कोई फायदा नहीं अब थोड़ी देर में सब कुछ बंद हो जाएगा। फिर भी मेरे कहने पर वह मेरे साथ निकल लिया। निकलने के साथ ही मैंने दुकानों के शटर गिरते हुए देखना शुरू किया और 06:30 PM तक लगभग 75% दुकान बंद हो गए थे। मैंने उससे इसका कारण जानना चाहा तो उसने बताया कि अब कोई सिक्योरिटी इश्यू नहीं है, लेकिन जब थी तब यहां के लोगो की लाइफ स्टाइल यही हो गई थी, और अब उग्रवाद के बहुत कम हो जाने के बाद भी जायदा कुछ बदल नहीं हुआ है, अगर दुकान खुला भी रहे तो लोग खरीदने नहीं आते इससे दुकानदार भी जल्दी ही बंद करने में भलाई समझते है। हम लोग रात के लगभग 08 बजे तक घूमते रहे फिर घर पहुंचे तो भोजन बना।
अगले दिन सुबह मणिपुर जाने के लिए सुबह 06 बजे ही NST बस स्टैंड पहुंच गया, लेकिन आगे माओ बजार में मणिपुर बॉर्डर पर ILP नहीं होने के चलते बीच रास्ते ही हमको बस से उतार दिया, इसके बाद की कहानी अगले पार्ट में…
Day 9,10,11 (25-27 अप्रैल 2023)
मणिपुर यात्रा
#मणिपुर_बॉर्डर_पर_बिना_परमिट_बस_से_उतारा :-
पूर्वोत्तर के चार राज्यों में प्रवेश के लिए इनर लाइन परमिट (ILP) की आवश्कता होती है, हालांकि नागालैंड का तो आसानी से बन गया लेकिन मणिपुर के लिए अभी तक ऊपर से अप्रूव ही नहीं हुआ था। वैसे भी नागालैंड में मेरा परमिट कही चेक नहीं हुआ था। वहां से मणिपुर के लिए दिन भर में सिर्फ एक ही सरकारी बस खुलती थी और अगले दिन 25 अप्रैल को एकदम सुबह 06 बजे पहुंच गया बस स्टैंड मणिपुर की बस पकड़ने लेकिन जब बजे के आसपास वह नागालैंड-मणिपुर बॉर्डर पर स्थित माओ बजार पहुंची तब वहां बस को रोककर चेकिंग होने लगी, और बस में से मेरे सहित दो लोगो को ILP Document नहीं दिखाने के कारण नीचे उतार दिया गया और पास में ही एक काउंटर के पास जाकर ILP बनवाने को कहा गया। वहां जाने पर अधिकारी ने एक डिटेल तो पूछा ही कि किस लिए जा रहे हो, कहा रुकोगे, कितने दिन रुकोगे लेकिन सबसे ज्यादा परेशानी तब हो गई जब वो वहां के किसी जान पहचान वाले लोकल का भी आधार कार्ड डिटेल मांगने लगा। इसी चक्कर में आधा घंटा बीत गया और बस वाला परेशान हो गया कि मैं चला अब तुम लोग दूसरे साधन से आना। अंत में मेरा तो कांटेक्ट उपलब्ध हो गया पर दूसरे राजस्थान वाले भाई जी को कुछ नहीं सूझ रहा था, सो अंत में वहां मौजूद अधिकारी से ही गुहार लगा कर सॉल्यूशन पूछा, इसके बाद उसने फिर तरकीब बताई कि आप अभी तुरंत ऑनलाइन होटल बुक कर लीजिए फिर वो होटल वाला आपका मदद कर देगा, इस प्रकार हमारी बस वहां से आगे बढ़ी।
दोपहर दो बजे हमारी बस इंफाल पहुंची इस बीच खाने के लिए एक जगह रुकी लेकिन वहां का मांसाहारी भोजन देखकर हिम्मत नहीं किया कि कुछ खा-पी ले। इंफाल पहुंचने पर ही भोजन हुआ। हालांकि वहां भी वैसा ही स्थिति था, शाकाहारी भोजन ढूंढना पड़ता था।
#मणिपुर_की घाटियों_में_बसा_इंफाल_शहर :-
जब मणिपुर की राजधानी इंफाल उतरे तो कही से यह महसूस नहीं हो रहा था कि हम 2500 फिट ऊंचे किसी पर्वतीय इलाके में है, इंफाल शहर भी किसी आम भारतीय शहर की तरह दिख रहा था, चूंकि इंफाल घाटी एरिया में है और उसके चारो ओर ऊंचे ऊंचे पर्वत है अतः अभी तक सीधे रेल की कोई कनेक्टिविटी नहीं हो पाई थी, हालांकि अगले साल यह भी हो जाएगा।
#इंफाल_में_भोजन:-
यहां भी शाकाहारी के लिए थोड़ा कठिन स्थिति ही थी, बहुत खोजने पर कही कही शाकाहारी भोजन दिखाई देता था, वो तो भला हो यहां और कोहिमा में मेरे कुछ परिचित मिल गए थे जिसके चलते भोजन में कुछ खास कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ा वरना सस्ते में शाकाहारी भोजन ढूंढना ही एक चुनौतीपूर्ण कार्य होता।
#मणिपुर_का_मशहूर_लोकटक_झील :-
इसे तैरता झील भी कहते है क्योंकि इसमें अनेक छोटे छोटे टापू स्थित है जो अपनी जगह बदलते रहते है। पानी अधिक होने पर वे भी ऊपर आ जाते है और कम होने पर नीचे। यह इंफाल से 40 किमी दक्षिण मोइरांग में था, जहां तक नेता जी ने अंग्रेजो को हराते हुए आजाद हिंद फौज का झंडा गाड़ दिया था। इसके सम्मान में वहां आजाद हिंद फौज का भव्य संग्रहालय बना है। अगले दिन 26 अप्रेल को सुबह 08 बजे ही इंफाल से मोइरांग की और प्रस्थान कर गया। 09 बजे हम मोइरांग में थे वहां पहुंच कर सबसे पहले INA म्यूजियम दर्शन हुआ उसके बाद झील के दर्शन के लिए निकट ही सेंद्रे में एक पहाड़ जैसा ऊंचा साइट है जिसके लिए म्यूजियम से ही शेयर्ड ई रिक्शा मिल गई। वहां उस ऊंचे टीले से समूचे झील का अद्भुत नजारा दिखाई दे रहा था। हालांकि इसी झील में कई फ्लोटिंग होम स्टे भी है और यहां का नेशनल पार्क भी फ्लोटिंग ही है लेकिन समय की कमी के कारण ये सब चीजें नहीं देख सके और वापस इंफाल चल दिए।
#इंफाल_से_वापसी :-
अब मुझे घर से निकले 10 दिन से ज्यादा हो रहे थे इसलिए हमने पूर्वोत्तर का सफर यही समाप्त करने की निश्चय किया। लेकिन वापसी का मार्ग इतना भी आसान नहीं था, यहां से पहले 100 किमी दूर खोंगसांग तक सड़क मार्ग से जाना था, फिर वहां से सिर्फ एक ट्रेन सप्ताह में तीन दिन जाति थी नहीं तो आगे और 150 किमी सिलचर तक सड़क मार्ग से ही जाना है फिर सिलचर से गुवाहाटी और फिर यहां से देश के हर कोने के लिए गाड़ी उपलब्ध थी। लेकिन इस तरह गुवाहाटी पहुंचने में ही 24 घंटे से ऊपर लग जाता, और अगले ही दिन का इंफाल से गुवाहाटी तक का एयर टिकट 2400 रु में मिल रहा था सो मैंने फ्लाइट का ऑप्शन ही चुना और फिर गुवाहाटी से ट्रेन पकड़ कर 28 अप्रैल को शाम तक अपने घर वापस आ गया था।
समाप्त