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अमरनाथ यात्रा संपूर्ण विवरण, जुलाई 2022

मेरी_श्री_अमरनाथ_जी_यात्रा

यात्रा संस्मरण by Alok Desh Pandey

यात्रा अवधि दिनांक 11-07-2022 से 24-07-2022


 

पार्ट 1

बक्सर_से_पहलगाम_बेसकैंप

 

शायद ही कोई हिंदू हो जिसको कश्मीर की घाटियों में स्थित श्री अमरनाथ जी के दर्शन करने की इच्छा न हो। अबकी बार बड़े भाग्य से हमको भी यह अवसर मिलने वाला था। इस अवसर का इस्तेमाल हम पूरे कश्मीर घाटी घूमने में भी करना चाहते थे, तो प्रस्तुत है अभी तक के यात्रा का मेरा विवरण

 

अमरनाथ यात्रा के लिए रजिस्ट्रेशन:-

श्री अमरनाथ जी जाने के लिए इसका रजिस्ट्रेशन प्रोसेस भी आसान नहीं था। यह सिर्फ पंजाब नेशनल बैंक के ऑफिस से ही संभव था। लेकिन इसके लिए भी मेडिकल फिटनेस सर्टिफिकेट चाहिए था, जिसकी सुविधा बक्सर में नहीं थी। शाइन बोर्ड के वेबसाइट में डॉक्टरों की एक लिस्ट थी, जिसमें सबसे नजदीक के डॉक्टर मुहमदाबाद Phc में बैठते थे। उसके बाद आरा पटना में बैठते थे। हमलोग बैंक गए तो बैंक वालो ने हमारे पास दो डेट का ही ऑप्शन रखा एक 15 दूसरा 28 जुलाई को और एक दिन में 5 ही लोग का बुकिंग हो सकता था, बाकी के सारे डेट पहले ही फुल हो गए थे। हमने 5 लोगो की एक टीम बनाई जिसमें मेरे अलावे विवेक, मोलू, देवेश और जीत उपाध्याय थे उसके बाद मुहमदाबाद जाकर यात्रा हेतु स्वास्थ्य प्रमाण पत्र लाए तो रजिस्ट्रेशन का प्रोसेस पूरा हुआ।

 

#यात्रा_प्रारंभ:-

अमरनाथ जी की यात्रा की शुरुआत दो जगहों से होती है, एक पहलगाम से और दूसरा बालटाल से।  पहलगाम वाले रास्ते से लगभग 35 किमी पैदल चलना पड़ता है जिसे दो दिनों में पूरा करना होता है, जबकि बालटाल से 14 किमी लेकिन वह रास्ता खड़ी चढ़ाई पर है इसलिए थोड़ी मुश्किल है। हमलोगो ने पहलगाम वाला रास्ता चढ़ाई के लिए और बालटाल वाला रास्ता उतराई के लिए तय किया था। यात्रा 15 जुलाई को पहलगाम से आगे चंदनबाड़ी से शुरू होनी थी, अतः हमलोगों को 14 जुलाई के शाम तक पहलगाम पहुंच जाना था। लेकिन हमलोगो ने उससे भी एक दिन पहले पहुंचने का तय किया ताकि यात्रा शुरु करने से पहले कुछ आराम का मौका मिल सके। इसके लिए हमलोगो ने 11 जुलाई को  सुबह करीब 5 बजे पंजाब मेल पकड़ी जो अगले दिन सुबह 9 बजे तक अमृतसर में उतार दिया। वहां से जम्मू हम रात तक आराम से पहुंच सकते थे अतः हमलोगो ने दो तीन घंटे अमृतसर शहर में घूम कर ही जम्मू जाने की सोची। और चल दिए ऐतिहासिक स्वर्ण मंदिर की ओर…

 

 

#स्वर्ण_मंदिर_दर्शन:-

12 जुलाई को ट्रेन से अमृतसर में उतरने के बाद हमलोग स्वर्ण मंदिर पहुंचे जहां स्वर्ण मंदिर के बगल में ही श्री गुरु रामदास जी निवास नाम का एक भवन था, वहा पर स्नान वैगेरह की फ्री में व्यवस्था थी। उस समय भयंकर गर्मी और उमस से हाल बेहाल था, सो जाते ही सभी ने स्नान किया फिर स्वर्ण मंदिर दर्शन के लिए चल दिए, वहां स्वर्ण मंदिर के अंदर ही लंगर चल रहा था जहा सबसे प्रसाद चखा और 1 बजे तक हमलोग घूम कर वापस स्टेशन चल दिए। लेकिन कुछ ट्रेनें छूटने के चलते हमलोग शाम के 6 बजे तक पठानकोट ही पहुंच पाए, वहा से फिर जम्मू तक हमलोगों ने बस पकड़ ली। 10 बजे रात तक हमलोग जम्मू में थे। लेकिन भगवती नगर पहुचते-पहुचते 11 बज गए।

 

#जम्मू_से_पहलगाम_बेसकैंप (13 जुलाई)

 

अमरनाथ जी की यात्रा में एक चीज बहुत ही बढ़िया है, वो है पूरे यात्रा के दौरान चलने वाला जगह- जगह लंगर। पूरे यात्रा के दौरान आपको खाने के पैसे कही नही लगेंगे। जम्मू स्थित भगवती नगर से ही अमरनाथ यात्रा के लिए सारी गाडियां खुलती है। वहां आसपास स्थित लंगर में से एक में हमलोगों ने भोजन किया और फिर आगे पहलगाम तक जाने के लिए उपाय तलासने लगे। चूंकि हमलोगो की यात्रा 15 को थी अतः सरकारी माध्यम से उसी दिन निकलने की अनुमति नही मिल पा रही थी, इसलिए थोड़ा ज्यादा चार्ज लगा लेकिन हमलोगो ने कुछ और यात्रियों के साथ मिल कर एक इनोवा कार बुक कर ली। उसने हमसे पहलगाम के लिए प्रति व्यक्ति 1000 रु लिया, लेकिन उस कार वाले ने अपने लालच में हमलोगो की पूरी रात बर्बाद कर दी। इधर हम कई जगह से पता लगा कर आए थे कि सबसे पहले सुरक्षा बलो की अगुवाई में 3 बजे से 5 तक सभी सरकारी अनुमति प्राप्त बसों को निकाला जाएगा उसके बाद ही किसी प्राइवेट वाहन को उसके पीछे- पीछे जाने की अनुमति मिलेगी। लेकिन  इस चक्कर में कि कही बना बनाया ग्राहक भाग न जाए वो कार वाला 2 बजे ही गाड़ी खोलने की बात किया तो हमारे दल के कुछ सदस्य उसके बातो में आ उसमें बैठ गए फिर 10 किमी आगे जाकर उसने एक मैदान में गाड़ी खड़ा कर के अपने सोने चला गया, फिर सीधे साढ़े 6 बजे आया जब वहां से गाड़ी को आगे ले जाने की अनुमति मिली। अच्छे-खासे हम लंगर में ही एक जगह देख कर सो गए थे लेकिन उसके बाद बाकी के रात गाड़ी में ही सो कर बितानी पड़ी। खैर लेकिन जब चलना शुरू हुआ तो हमलोग का ड्राइवर जाम के अलावा बीच में और कही रोक ही नहीं रहा था, आगे रोकते है आगे रोकते हैं कहते हुए सीधे 3 बजे पहलगाम पहुंचा कर ही छोड़ा। वो तो भला हो जीत जी का जिन्होंने भुजा हुआ चूड़ा अपने बैग में रखा हुआ था जिससे सबका काम चल गया।

 

#पहलगाम_में_विश्राम

 

पहलगाम बेस कैंप पहुंचने के बाद हमलोगो ने वही यात्रा कार्ड बनवाया फिर आगे के लिए प्रस्थान किया। वहा ठहरने के लिए टेंट मिल रहा था, लेकिन वो लोग प्रति व्यक्ति नीचे सोने के लिए 275 रु और चारपाई के लिए 350 रु मांग रहे थे। तभी एक परिचित ने हमे एक होम स्टे का पता दिया। वो 1000 रु में हम सभी पांचों लोगो को रुकने के लिए एक बड़ा कमरा दे दिया। साथ में गर्म पानी और चार्जिंग वैगेरह की व्यवस्था थी ही, लेकिन टेंट में ऐसा कुछ भी व्यवस्था नहीं था। रात में हमलोगो ने लंगर में खाना खाने के बाद वहां कुछ सेवा भी किए फिर वापस अपने होटल में जा कर सो गए।

 

#पहलगाम_भ्रमण (14 जुलाई)

 

जब पहलगाम आ रहे थे तभी इसके बारे में योजना बना ली थी कि एक दिन रुक इसके आसपास के विभिन्न जगहों पर घूम लिया जाए। लेकिन जब सुबह उठे तो बारिश शुरू हो गई जो 2 बजे तक अनवरत जारी रही। इससे हमलोगो की वहा के ABC वैली घूमने की सारी की सारी योजना धरी की धरी रह गई। बारिश खत्म होने के बाद हमलोग पैदल ही पहलगाम बेसकैंप स्थित लंगर के लिए चल दिए। बारिश के बाद मौसम वैसे ही और सुहावना हो  गया था ऊपर से रास्ते में इतनी खूबसूरत – खूबसूरत दृश्य दिखाई दे रहे थे, फोटो खींचने वाले प्रेमियों के लिए वह दृश्य स्वर्ग से कम नहीं है। तब से रात के 8 बजे तक हमलोग इसी तरह इधर उधर घूम रहे है अब इंतजार है कल सुबह होने का जब हमलोग श्री अमरनाथ जी के लिए पैदल यात्रा शुरु करेंगे…

पार्ट 2

श्री_अमरनाथ_जी_के_दर्शन

     15 जुलाई से हमारी पैदल यात्रा चंदनबाड़ी नामक एक स्थान से शुरू होनी थी लेकिन हमलोग उसके लिए 13 को ही पहलगाम पहुंच गए थे। अतः एक दिन आराम करने के बाद 15 को तड़के नहा धो कर पहलगाम से यात्रा प्रारंभ कर दिए।

 

#चंदनबाड़ी_से_शेषनाग_झील (दिनांक 15 जुलाई 2022):-

 

आज की हमलोगों की यात्रा शेषनाग झील तक लगभग 12 किमी की होनी थी। हम 5 लोग 7 बजे होम स्टे से निकले और चंदन बाड़ी के लिए एक कार 1000 में बुक की। एक घंटे में हम गंतव्य स्थल पर पहुंच चुके थे। उसके बाद शुरू हुआ हमारा सफर। हम सभी ने भारी भरकम बैग अपने पीठ पर लाद लिया था ये जानते हुए भी कि हमे इसी बैग के साथ करीब 55-60 किमी की दूरी तय करनी थी। भारी – भरकम छोड़िए हमलोगो ने साथ में दो-दो बैग ले लिया था, एक छोटा। यह सोचकर कि 10 दिन का ट्रिप है इतने समान की जरूरत पड़ेगी ही, लेकिन इसमें से बहुत से समानो का उपयोग नही हुआ और पूरे रास्ते पछताते भी रहे।

 

नोट:- जिस चीज की जरूरत नही पड़ेगी उसमें से सबसे पहला चीज है चादर या बेडशीट जो हमने सभी को लेने को बोल दिए थे। लेकिन उसकी जरूरत इसलिए पड़ी ही नही क्योंकि हम जहा जा रहे थे वहा की ठंड चादर के बस की बात नही थी, और कही भी रुकने पर हमलोगो को रजाई उपलब्ध कराया ही जा रहा था। तीन सेट कपड़े भी भारी पड़ रहे थे दो सेट काफी थे।

 

यात्रा के शुरुआत में ही हमलोगो को बड़े-बड़े लंगर दिखाई देने शुरू हो गए थे, उसमें स्टार्टर की मात्रा की ही इतनी भरमार थी कि शायद कोई बड़ी पार्टी या भोज में भी न हो सो हमलोग का पेट तो स्टार्टर से ही भर गया और चल दिए आगे पिस्सू टॉप के लिए

 

#पिस्सू_टॉप:-

 

पहलगाम के तरफ से जाते हुए हमलोगो के लिए यह सबसे कठिन चढ़ाई साबित होने वाला था। चंदन बाड़ी से कुछ दूर सपाट चलने के बाद ही इसकी चढ़ाई प्रारंभ हो गई जो 4 किमी बाद खत्म हुई। इतने में लगभग 12 बज गए थे। ऊपर कुछ देर आराम किया फिर आगे का रास्ता अधिकतर सपाट ही मिला। बिच रास्ते में लंगरों की भरमार थी, लेकिन जहा लंगर के अभाव थे वहा 1 लीटर पानी की बोतल भी 50 रु की मिलती थी। जो चलने में असमर्थ थे उनके लिए घोड़े वाले लगातार ऑफर देते रहते थे, और मेरे जैसे लोगो के बैग को देखकर हमें बैग ढोने वाले पिट्ठू के लिए ऑफर देते थे। लेकिन जब हमलोगो ने शुरू से अपने को कष्ट सहने के लिए तैयार कर ही लिया था तो भोले बाबा की कृपा से उनलोगो की मदद की जरूरत नही ही पड़ी। इस बीच शाम होते होते बारिश भी होने लगी। रास्ते बहुत संकरे थे और नीचे गहरी खाई, बारिश होने से सारे रास्ते फिसलन भरे हो गए और जिन लोगो ने बिना ग्रिप वाली या पुराने जूते पहने हुए थे उनको बहुत ही मुसीबतों का सामना करना पड़ा।

अंततः शाम को 6 बजे तक हम सभी अगले पड़ाव शेषनाग झील के पास पहुंच गए। हम में से कुछ लोग वहा बहुत पहले ही पहुंच कर इंतजार कर रहे थे।

 

नोट:- जो लोग घोड़े की सवारी लेते थे उनका केवल जाने का ही कुल खर्च छः से सात हजार रु हो जाता था, इसके बदले हेलीकॉप्टर की सुविधा जाने के लिए मात्र 4000 रु में ही मिल रही थी।

 

#शेषनाग में रात्रि विश्राम और यात्रा स्थगन:-

चूंकि हमलोगो की यह पहली यात्रा थी लेकिन बक्सर की ही एक और अनुभवी टीम हमलोगों से 2 दिन आगे चल रही थी जिससे हमलोग लगातार संपर्क बनाए हुए थे। उनलोगो को बारिश के कारण 14 जुलाई को शेषनाग से आगे बढ़ने से रोक दिया गया, फिर 15 को यात्रा शुरु हुआ तो आगे बढ़े तो हमलोग भी उस दिन यात्रा शुरु कर शेषनाग पहुंच गए, लेकिन उस दिन शाम को जो बारिश शुरू हुई वो अगले दिन भी लगभग दिन भर पड़ती रही और 16 को भी सभी प्रकार की यात्रा स्थगित कर दी गई। उनलोगो को आगे पंजतरणी में ही रोक दिया गया और हमलोगो को भी अगला दिन शेषनाग झील के पास टेंट में ही गुजरना पड़ा। वहां प्रशासन ने लोकल लोगो की मदद से सैकड़ों टेंट लगवाई थी जिसमें प्रत्येक में 10 लोगो के रुकने की व्यवस्था थी। और वो लोग हमसे प्रति व्यक्ति 450 रु की मांग करते थे। लेकिन यात्रा अवधि एक दिन बढ़ने पर सभी यात्रियों ने प्रशासन से अगले दिन का टेंट का शुक्ल न लेने का आग्रह किया इस पर बीच का रास्ता निकाला गया और अगले दिन भी रात बिताने के लिए हमें प्रति व्यक्ति 200 रु देने पड़े। वहां ठंड भी ज्यादा थी, हाथ धोने पर हाथ सुन्न हो जा रहा था। लेकिन जो भी हो वो टेंट सारे सुविधा से युक्त थे और अंदर रजाई और तकिए की कमी नही थी। बिजली भी थी जो रात को ही रहती थी।

 

#शेषनाग_से_पंचतरणी (दिनांक 17 जुलाई):-

आज का मौसम बहुत ही साफ था सो प्रशासन से अनुमति मिलने के बाद हमलोग तड़के ही यात्रा प्रारंभ कर दिए। बीच में गणेश टॉप नाम से एक चढ़ाई वाला स्थान मिला उसके बाद अधिकांश रास्ता सपाट और ढलान वाला ही मिला। आगे पोषपत्री नामक एक जगह पर बहुत ही भव्य भंडारा लगा हुआ था उसको शायद हमलोग 5 स्टार भंडारा भी बोल सकते थे क्योंकि शायद ही कोई व्यंजन था जो वहा पर नही था। कुछ देर आराम के बाद हमलोग आगे बढ़े और कुल 14 किमी दूरी तय कर 4 बजे तक पंचतरणी पहुंच गए। यहां से बाबा की गुफा महज 4 किमी की दूरी पर थी लेकिन शाम और थकान होने के कारण आज की रात यही बिताने का फैसला हुआ और हमलोगो ने आर्मी द्वारा लगवाया हुआ एक टेंट रहने के लिए चुन लिया। यहां टेंट में ठहरने का रेट शेषनाग से भी ज्यादा 550 रु प्रति व्यक्ति था और अधिकांश सुविधाएं भी नदारद थी। फिर भी जैसे तैसे रात बिताए और तैयार हो गए अगले दिन बाबा के दर्शन के लिए।

 

#श्री_अमरनाथ_जी_का दर्शन (18 जुलाई 2022):-

 

पंजतरणी से अमरनाथ जी के गुफा तक का जो रास्ता है वह बेहद ही संकरा है इतना कि हमलोगों को पैदल रास्ते में ही जाम का सामना करना पड़ गया और 1 से ज्यादा घंटे तक रुके रहे, क्योंकि लगभग चार फीट के रास्ते में टट्टू भी पास कर रहे थे और इसमें जरा सा चूक आपको खाई में गिरा सकता था। इसी के चलते प्रशासन कैंप से धीरे धीरे ही लोगो को आगे बढ़ने का इजाजत दे रहा था, जिसके चलते सुबह साढ़े तीन बजे से ही गेट पर लंबी लाइन लग गई थी। हमलोग 6 बजे गेट से बाहर निकले और गुफा तक पहुचते-पहुंचते 11 बज गया। वहा बहुत सारे लोकल लोग टेंट लगा कर प्रसाद वैगेरह बेचने का काम करते है, वही आपके समान का भी रखवाली करते है और दर्शन से पहले नहाने के लिए गर्म पानी का भी। वहां गुफा के आसपास बहुत बर्फ था, जिससे होकर गुजरने पर पैर भी फिसल रहे थे। हमको दर्शन करके बाहर निकलते निकलते दो बज गए थे बाबा अमरनाथ जी के दर्शन तो हो गए लेकिन उस रूप में नहीं जिस रूप में कल्पना करते थे, उनका शिवलिंग 90% तक पिघल चुका था बस कुछ ही अवशेष बचा था। फिर भी दर्शन से संतुष्टि हुई और इस कठिन यात्रा को सफल मान कर आगे वापसी की ओर चल दिए।

 

#वापसी_बालटाल_की_ओर_से

 

हमलोग उतरने की योजना बालटाल से बनाए थे क्योंकि यह महज 14 किमी ही पड़ता है लेकिन चढ़ने के दृष्टिकोण से उतना ही कठिन क्योंकि इसकी चढ़ाई पूरी तरह खड़ी चढ़ाई है, इतना कि संभल-संभल कर उतरना भी पड़ता है, क्योंकि रास्ते भी बहुत संकरा और खराब थे। अतः ज्यादातर लोग बस उतरने के लिए ही इस रास्ते का प्रयोग कर रहे थे जबकि चढ़ने के लिए पहलगाम की तरफ से 35 किमी लंबा रास्ता ही अच्छा माना जाता है।

दर्शन की ओर जाते समय हमलोग आपस में बिछड़ गए और तीन समूहों में नीचे पहुंचे। हम वहां से 4 बजे शाम को निकले तो पहुंचते-पहुंचते रात्रि के 10 बज गए। नीचे बहुत सारे लंगर लगे हुए थे जिसमें वो लोग यात्रियों के लिए खाने के अलावा सोने की भी व्यवस्था किए हुए थे, जब तक हम नीचे उतरे विवेक पहले से ही इनमें से किसी एक लंगर वाले से मित्रता कर हम सभी के खाने सोने का इंतजाम कर चुका था। अतः यहां हमलोगों को कुछ भी खर्च करना नहीं पड़ा। इसके चलते हमलोगो ने अगले दिन भी यही विश्राम कर आगे बढ़ने की योजना बनाई।

पार्ट 3

श्रीनगर भ्रमण और वैष्णो देवी दर्शन

 

18 जुलाई को हम दर्शन कर बालटाल उतर गए थे और हमलोगों की ट्रेन 23 जुलाई को जम्मू से थी, इस बीच हम कश्मीर के बाकी हिस्से को एक्सप्लोर करना चाहते थे। इसके लिए हमलोगों ने श्रीनगर घूमकर कटरा जाने का प्रोग्राम बनाया था। लेकिन एन मौके पर श्रीनगर जाने के लिए ही कोई तैयार नहीं हुआ और सब डायरेक्ट वैष्णो देवी ही जाने की योजना बनाने लगे, दिनभर इसी माथापच्ची में बीत गया। वैसे भी हमलोगो ने आज अपनी थकान मिटाया। बालटाल में हमलोगो कुछ भी रहने खाने में खर्च नही करना पड़ा। अंततः हमने अकेले ही श्री नगर जाने का फैसला ले लिया। अगले दिन वो लोग जम्मू तो हम श्रीनगर में थे।

 

#20_21_जुलाई_श्रीनगर_भ्रमण:-

 

चूंकि श्रीनगर एक हिल स्टेशन है तो यहां हर चीज महंगी है ही लेकिन थोड़ी बुद्धि चलाने पर अपने पॉकेट ज्यादा ढीले करने से बच सकते है। वहां जाते ही हमने लाल चौक के लिए एक बस पकड़ा और वहां समीप ही एक यात्री निवास नामक धर्मशाला था, जहा कमरे 600 में और केवल बेड लेने पर 100 रु/बेड मिलता था। कमरे तो सारे फूल हो चुके थे लेकिन बेड मिल गए। वहां कोई भी शेयर्ड टैंपू नहीं चलता था उसके लिए वहां सूमो चलते थे जो दूरी के हिसाब से 10 या 20 रुपया लेते थे। शाम को डल झील टहलने निकला जो लाल चौक से 3 किमी की दूरी पर था। उस समय वहां 8:00 बजे तक भी हल्की सूरज की रोशनी मौजूद थी।

अगले दिन सुबह शंकराचार्य मंदिर के दर्शन के लिए गए तो वहां कोई सूमो भी नही जा रही थी। केवल रिजर्व गाडियां ही जाती थी, बहुत दिमाग लगाकर किसी दूसरे की रिजर्व की हुई एक टेंपो में अपना जगह बना लिया। वापसी भी इसी तरह किया। इसके बाद श्रीनगर के प्रमुख बाग जिनमें शालीमार बाग और निशात बाग शामिल है का भ्रमण किया इतने में थक गया था अतः वापस धर्मशाला जा करके आराम किया।

 

नोट:- श्रीनगर में कुछ कड़वी यादें और सबक – श्रीनगर के अलावा भी हम बहुत जगह गए है हर जगह वहां के लोग टूरिस्ट को अतिथि देवो भव समझ कर ही आदर सत्कार करते है और ऐसा महसूस भी होता है, लेकिन श्रीनगर में वहां के लोकल का ऐसा व्यवहार रहता है कि टूरिस्टों को कैसे मौका पाकर परेशान कर दे या ठग ले।  हालांकि मैंने यात्रा से पहले ऐसे बहुत सलाह पढ़ चुका था कि वहां किसी लोकल या ड्राइवर वैगेरह पर ज्यादा भरोसा नही करना चाहिए, लेकिन ऐसा मुझे एहसास तब हुआ जब मैं कई बार आसपास के लोगो से रास्ता पूछने की कोशिश किया। वे साफ गलत रास्ता बता देते थे, यहां तक एक दो बार लोकल पुलिस से भिनएक जगह का रास्ता पूछा तो वो भी गलत रास्ता बता दिए, वो तो भला हो गूगल मैप बाबा का जिसके चलते ज्यादा भटकना नहीं पड़ा। वहां अधिकांश ठेले वाले बिहार यूपी के थे, अतः वे ही ज्यादा मदद कर देते थे, एक बार उनकी मदद से किसी सैलून का पता पूछा और उसके बताए अनुसार सैलून के लगभग बगल में पहुंच ही गया था कि एक और लोकल से वहां आसपास मौजूद किसी सैलून के बारे में पूछा। उसने तुरंत आत्मविश्वास से आगे जा कर दाएं मुड़ने को कहा। आगे गया तो पता चला कि आगे तो कुछ नही है लेकिन उसके ठीक बगल में ही वो सैलून था। खैर मुझे तो बहुत ज्यादा कड़वे अनुभव नही हुए और खर्चे भी कम हुए लेकिन श्रीनगर भ्रमण के दौरान सतर्क रहना एकदम आवश्यक है।

 

 

#22_23_जुलाई_वैष्णो_देवी_दर्शन और घर वापसी:-

आज सुबह न्यूज़ में सुना कि श्रीनगर जम्मू मार्ग भूस्खलन से बंद हो चुका है फिर भी हमने ट्रेन पकड़ कर बनिहाल जाने का निश्चय किया और दोपहर तक बनिहाल पहुंचते-पहुंचते मार्ग खुल चुका था। फिर शाम तक हम कटरा पहुंच चुके थे, जहां हमारे भाई दर्शन करके वापस आ चुके थे। कल सुबह ही हम लोग की गाड़ी थी अतः रात में 11:00 बजे से चढ़ना शुरू किए और सुबह 3:00 बजे दर्शन कर 7:00 बजे तक नीचे उतर गए। करते ही स्टेशन जाने के लिए पैकिंग वगैरह करने लगे फिर अगली नींद ट्रेन में ही लिए। अगले दिन 24 जुलाई को हम बक्सर पहुंच गए थे।

समाप्त