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मोहन भागवत के व्याख्यान का विश्लेषण

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के वर्तमान सर संघचालक प०पू० मोहन भागवत जी के तीन दिवसीय “भविष्य का भारत” व्याख्यानमाला श्रृंखला के दौरान दिए गए उद्बोधन का विश्लेषण।
By Alok Desh Pandey

व्याख्यानमाला के पहले दिन तो भागवत जी ने संघ के स्थापना की पृष्ठभूमि बताई तथा कार्यपद्धति की चर्चा की जो कि हम सभी कार्यकर्ता रोज अनुभव करते है। लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात है सिद्धान्त की जिस पर उन्होंने दूसरे और तीसरे दिन चर्चा की। इसी चर्चा के आधार पर संघ और उसके सिद्धांत पर बहुत सारे प्रश्न उठ खड़े हुए है। और उसी का मैं विश्लेषण करने जा रहा हूँ।
सबसे पहली बात आखिर हिंदुत्व की परिभाषा क्या है? हिन्दू किसे कहा जा सकता है। वीर सावरकर की माने तो जो इस भारत भूमि को पूण्य भूमि और पितृ भूमि दोनों मानता हो वो हिन्दू कहे जाने योग्य है। भारत भूमि से उतपन्न होने वाले चाहे जितने भी सम्प्रदाय हो सबमें कुछ कॉमन बाते है और इसके चलते हम सभी का आपस में और इस मातृभूमि के साथ भी गहरा लगाव है। इस लगाव और बन्धुत्व भावना के कारण ही हम देशभक्ति की पराकाष्ठा भी पार कर जाते है।
लेकिन उन मतो का क्या जो इस भूमि से जुड़े नहीं है। सावरकर का मानना है कि उनका पूण्य भूमि वेटिकन, जेरुसलम और मक्का मदीना ही बना रहेगा, वे इसे पितृ भूमि तो मान सकते है लेकिन उनके अंदर इस भूमि के प्रति वो श्रद्धा भाव कभी नहीं उतपन्न हो सकती जो यहाँ से उतपन्न होने वाले मत मतान्तरों वाले लोगो में है। अतः उनकी देशभक्ति भी हमेशा संदिग्ध रहेगी। अतः हिन्दुओ में केवल सनातनी, सिख, बौद्ध, जैन इत्यादि ही आएंगे। ये समस्त मत भले ही परस्पर विरोधाभासों से भरें हो लेकिन वो एक समान मूल्य रखते है। जैसे सत्य आग्रही। सभी के मतों का सम्मान करना। विविधता को भेद का विषय न बनाना इत्यादि।
लेकिन इसके विपरीत मोहन भागवत जी ने हिंदुत्व की अपनी एक परिभाषा दिया है जिसमें उन्होंने हिंदुत्व के एक सद्गुण को ही समूचा हिंदुत्व के रूप में परिभाषित कर दिया। उनके अनुसार विविधता को स्वीकार करना ही हिंदुत्व है। मतलब भारत भूमि पर जितने भी मत-मतान्तर वाले लोग है वो सभी हिन्दू है चाहे उनका मत कोई भी क्यों न  हो, भारत ने सबको सबको स्वीकार किया है और इस नाते वो सभी हिन्दू है। इसके लिए उन्होंने ध्येय वाक्य वसुधैव कुटुम्बकम का भी सहारा लिया, आगे उन्होंने ये भी कहा कि आप उनको हिन्दू न कह कर भारतीय कहो, कोई दिक्कत नहीं, चलेगा! लेकिन मेरे अनुसार उन सभी को संबोधित करने लिए हिन्दू शब्द ही सबसे उपर्युक्त है। हिन्दुओ का संगठन करने से मेरा तातपर्य भी यही है। अतः हिंदुत्व के अंतर्गत मुसलमान भी आ जाएंगे। बिना मुसलमानों के यह हिंदुत्व अधूरा है। अगर हम कहते है कि हमे मुसलमान नहीं चाहिए तो हिंदुत्व भी नहीं बचेगा।
भागवत जी ने यहाँ हिंदुत्व के एक गुण को ही हिंदुत्व के रूप में परिभाषित कर भ्रम की स्थिति पैदा कर दी है। कहा गया है कि इतिहास अपने आप को दोहराता है और मनुष्य अगर अपनी गलतियों से सीखने लगे तो पूरी जिंदगी कम पड़ जाएगी। अतः इस विषय में हमे इतिहास से जरूर सीखना चाहिए। दुनिया के किसी भी देश में किसी भी मुसलमान का अन्य मतावलंबियों के प्रति सहिष्णुता का कोई इतिहास नहीं रहा है क्योंकि काफिरों (गैर मुसलमानों) से नफरत की बात उनलोगों के मुख्य धार्मिक ग्रंथ कुरान में ही बताई गई है। अतः जब तक वे कुरान पढ़ते रहेंगे नफरत तो नहीं ही मिटने वाली, और एक मुसलमान होने के नाते कुरान पढ़ना वे अपना धार्मिक कर्तव्य समझते है। तो बिना इस नफरत को मिटाए अगर कोई हिन्दू मुस्लिम एकता की बात करता है तो वह निश्चित रूप से भ्रम फैलाने का ही कार्य कर रहा है।
विविधताओं को और दूसरे के विचारों को सम्मान देना हिंदुत्व के अनेक गुणों में से एक है न कि यही हिंदुत्व है। ऐसा मानने से वो संप्रदाय भी हिन्दू हो जाता है जो अपने को तो हिन्दू नहीं ही मानता है अपितु हमेशा हिन्दू कहे जाने वालों से शत्रुवत व्यवहार ही करता है। फिर यह उसी जैसा हो गया जैसे कि कोई भेड़ किसी भेड़िया के सामने हाथ फैला कर बैठ जाए और कहे कि हम तो आपको मित्र मानते है चाहे आप हमें खा जाओ। क्या ऐसा करने से प्रकृति के सिद्धांत बदल जाएँगे? या उस भेड़िया का हृदय परिवर्तित हो जाएगा? मित्रता तो समान विचारधारा वाले लोगो से निभाई जाती है। अगर मुसलमानों को हिन्दू नहीं मानने से भागवत जी की तथाकथित हिंदुत्व नामक विचारधारा खतरे में आ जाएगा तो इतना समझ लेना चाहिए कि उनको हिन्दू मान व्यवहार करने से स्वयं हिन्दुओ का अस्तित्व ही खतरे में आ जाएगा।
मोहन भागवत जी ने अपने तथाकथित हिंदुत्व की परिभाषा को और दृढ़ करते हुए दूसरे दिन के उद्द्बोधन में ही कहा कि अगर कोई ईसाई या अन्य मत मतान्तर वाले जो अपने को हिन्दू नहीं मानते और हिन्दू धर्म अपनाना चाहते है तो भी इसकी कोई आवश्यकता नहीं, क्योंकि हम तो आपको पहले ही हिन्दू मान चुके है। इसके लिए उन्होंने बकायदा रमण महर्षि का उदाहरण भी दिया कैसे उन्होंने एक ईसाई को हिन्दू बनने से रोक दिया और उसे एक “बढ़िया ईसाई” बनने को प्रेरित किया। अतः संघ की दृष्टि में घर वापसी की प्रक्रिया भी संदिग्ध हो गया है।
इस प्रकरण में जब तीसरे दिन किसी ने यह सवाल पूछा कि जब आपने सभी को हिन्दू मान लिया है तो धर्मांतरण का विरोध क्यों करते है क्योंकि वो तो फिर भी हिन्दू रहेगा। इस प्रश्न पर भागवत जी ने धर्मांतरण को राष्ट्रांतरण बताकर विरोध करने के बजाए वही गोलमोल जबाब दिया कि सभी जब हिन्दू ही है तो धर्मांतरण की आवश्यकता ही क्यों? और हम धर्मांतरण का नहीं इसका व्यवसायीकरण का विरोध करते है।
तीसरे दिन ही जब शिक्षा बिषयक सवाल पूछा गया जिसमें शिक्षा में भारतीय मूल्यों को लेकर सवाल पूछे गए तो उन्होंने भरषक यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया कि भारतीय मूल्यों में ईसाई मूल्यों और इस्लामिक मूल्यों का भी जगह है अतः वेद उपनिषद के साथ-साथ इनलोगों के मूल्यों को भी शिक्षा नीति में शामिल करना चाहिए।
तीसरे दिन आरक्षण के ऊपर सवाल-जवाब में भी अन्य सभी सवालों पर तो अपना राय स्पष्ट किए लेकिन अल्पसंख्यकों के आरक्षण के सवाल पर अपना कोई मत रखने के बजाए इसे संसद पर छोड़ दिया कि इस मामले को वही जाने।
क्या सही जबाब देने से जो अल्पसंख्यक होने के नाते संप्रदाय के आधार पर आरक्षण की मांग कर रहे है उनकी भावनाओं के आहत होने का खतरा है जिससे संघ द्वारा अपना तथाकथित विस्तारीकरण की योजना को गहरा धक्का लगता। अगर ऐसा है तो यह निश्चित रूप से दुर्भाग्यपूर्ण है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ में तुष्टिकरण की शुरुआत हो गई है जिसकी कीमत आज नहीं तो कल देश को चुकानी ही पड़ेगी।
गाँधी जी में भी सर्वप्रिय होने की लालसा घर कर गई थी और अपने इस लालसा को पूरा करने के लिए उन्होंने ऐसे-ऐसे कार्य कर दिए कि सर्वत्र उनकी निंदा होने लगी। लेकिन इससे ज्यादा भयंकर कीमत हमारे देश को और उसकी भोली भाली जनता को चुकानी पड़ी। इसलिए हम सभी का कर्तव्य बनता है कि गलत चीजों का विरोध करें चाहे कोई कितना ही बड़ा क्यों न हो?
अल्पसंख्यको के सवालों पर तीसरे दिन ही उन्होंने अल्पसंख्यक शब्द का ही विरोध करते हुए कहा कि यहाँ कोई भी अल्पसंख्यक नहीं है। हम सभी को हिन्दू मान चुके है और सबसे बराबर अपनत्व का व्यवहार करेंगे। उन्होंने मुसलमानों को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने का आह्वान करते हुए कहा कि आपको बिना कारण डरने की जरूरत नहीं है एक बार शाखा आकर खुद देखिए कि आपके खिलाफ कोई बात होती है या नहीं। रही बात हिन्दू कहने की तो हमारे लिए हिंदुत्व का मतलब किसी पंथ से न होकर समूचा राष्ट्रीयत्व से है और इसका प्रयोग करना हम नहीं छोड़ सकते। लेकिन मेरे हिन्दू कहने से ये कदापि नहीं है कि आप लोग पराए हो।
इस क्रम में उन्होंने गुरु जी के प्रसिद्ध पुस्तक बंच ऑफ थॉट में मुसलमानों के प्रति विचार को भी नकारते हुए कहा कि यह बयान उस समय के तत्कालिक परिस्थिति के अनुसार दी गई होगी। इन सारे तथाकथित साम्प्रदायिक विचारों को निकाल कर हमने एक नई पुस्तक का निर्माण किया है “गुरुजी विजन और मिशन”। अब सभी को यही पुस्तकें पढ़ना चाहिए।
भागवत जी ने अंत में संगठन के विचारधारा में हुए इस परिवतर्न को मान्य करने के लिए आद्य सर संघचालक प०पू० डॉ हेडगेवार जी का सहारा लिया कि यह परिवर्तन करने की अनुमति सीधे हमें उन्हीं से मिली है, इसके अलावा पिछले तीन दिनों के जितने भी विचार यहाँ से निकले है वो केवल मेरे विचार नहीं है, बल्कि संघ के अंदर गहन विचार-विमर्श होने और नीचे की कार्यकारिणी द्वारा व्यापक सहमति मिलने के बाद ही यहाँ बोले गए है।
इतने सारे बातों को बोलने के बाद भी अगर किसी को लगता है कि संघ में न्यून मात्र भी परिवर्तन नहीं आया है तो वह ऐसा ही है जैसे कोई शिकार सामने शिकारी को देखर अपनी आँखें बंद करके बैठ जाए और शिकारी के भाग जाने की कल्पना करने लगे।
यहाँ हिन्दू मुस्लिम एकता के प्रयत्नों में भागवत जी और गाँधी जी के द्वारा किए प्रयासों की तुलना करने पर पता चलता है। दोनों का लक्ष्य तो एक ही था लेकिन दृष्टि बोध अलग-अलग है। गाँधी ने मुसलमानों और हिन्दुओ को अलग-अलग कौम माना फिर उन दोनों को एक कराने की दृष्टि से प्रयास किए। जबकि यहाँ मोहन भागवत जी के अनुसार वो अलग है ही नहीं। सभी एक है बस आत्मविस्मृत हो गए है और उनको केवल याद दिलाने की जरूरत है यह एकता जमीन पर भी दिखने लगेगी।
दृष्टिबोध भले ही अलग अलग हो लेकिन भावना एक ही है हिन्दू मुस्लिम एकता की भावना। और यही भावना प्रेरित करती है त्याग करने को मतलब अपने तरफ से कुछ नरमी बरतने को अर्थात तुष्टिकरण को। जिसका फल सदा से यही होता आया है कि वो हमारी सहृदयता को कायरता समझेंगे और पीठ पीछे छुरा भोकेंगे।
अतः आज समय की आवश्यकता है कि हम सभी यथार्थ को पहचानते हुए चले तभी हम अपने समाज को आगे आने वाली मुसीबतों से बचा सकते है।
आलोक देश पाण्डेय, बक्सर (बिहार)

This Post Has One Comment

  1. Unknown

    कभी एक नहीं है हिन्दू मुस्लिम

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