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कैमूर की पहाड़ियों में रोमांचक बाइक यात्रा, मार्च 2022

 

#यात्रा_वृतांत

कैमूर_की_पहाड़ियों_में_रोमांचक_बाइक_यात्रा

By Alok Desh Pandey

दिनांक 14-15 मार्च 2022


हमारे शहर बक्सर के जो सबसे नजदीक पहाड़ियों की शृंखला है वो है कैमूर रेंज की पहाड़ियाँ।

चूंकि बचपन में कभी पहाड़ो से नाता तो रहा नहीं अतः जब बड़े हुए तो मन में सदा इन पहाड़ो को अंदर से जानने की कौतूहल बनी रही।

इसी बीच कई बार कुछ लड़को के समूह में माता मुंडेश्वरी मंदिर और गुप्ता धाम जाना हुआ, इससे मेरा कौतूहल और बढ़ता ही गया था, इसलिए ज्यों ही मौका मिला हमने इन पहाड़ो को एक बार शुरू से अंत तक छानने की योजना बनाने को सोचने लगा। इसके बाद से तो टुकड़ो-टुकड़ो में ही सही पिछले दो-तीन साल में कई बार उस क्षेत्र में जाने का सौभाग्य मिला है लेकिन फिर भी इन पहाड़ियों का एक छोटा सा हिस्सा भी शायद ही अच्छे से समझ पाया होऊंगा।

#यात्रा_आरंभ

तो अबकी बार हम दो लोग बाइक से घूमने निकले। मैं और विवेक यहाँ से 14 मार्च 2022 (सोमवार) को बक्सर से निकले। 2 बजे दोपहर को यहाँ से निकले तो 4 बजे के आसपास मोहनिया थे। वहाँ से हमलोग 22 किमी पूर्व कुदरा गए और वहाँ से दक्षिण में चेनारी का रास्ता पकड़ लिए। चेनारी ही वह प्रखंड है जहाँ से गुप्ताधाम पैदल मार्ग से जाने के लिए दो महत्वपूर्ण चढ़ाई उगहनी घाट और पनियारी घाट पड़ते है। चेनारी से 14 किमी दक्षिण शेरगढ़ का किला था। हमलोग का पहला लक्ष्य था आज शेरगढ़ किला का भ्रमण करना और दूसरा कल रोहतास किला जाना। दोनों ही ऐतिहासिक महत्व के थे लेकिन दुर्गम जगहों पर थे।

शाम 5 बजे तक हमलोग करमचट डैम के पास थे। लेकिन यहाँ पहुँचने से एक किलोमीटर पहले ही हमलोगों की बाइक दुर्घटनाग्रस्त हो गई, और थोड़ी मामूली चोट भी लग गई, लेकिन अभी तो यात्रा का शुरुआत भी ठीक ढंग से नही किए थे, लेकिन निराश न होते हुए मैंने अपना मनोबल गिरने नहीं दिया और फर्स्ट एड उपचार कर यात्रा जारी रखने का निर्णय लिया।

वैसे तो चेनारी पास करने के बाद ही हमें पहाड़िया दिखनी शुरू हो गई थी लेकिन बांध के समीप पहुँचने पर वहाँ अद्भुद नजारा दिखाई दे रहा था। सामने दुर्गावती नदी दूर-दूर तक फैली नजर आ रही थी, और बांध के कारण एक झील जैसा नजारा प्रस्तुत हो रहा था। उसके चारों ओर पहाड़ थे खड़े चट्टानों वाली। वहाँ आसपास के लोगो से पता चला कि इस नदी के किनारे-किनारे वाहन चलने लायक एक सड़क बना दी गई है जो सीधे गुप्ता धाम पहुँचा देगी, इससे पहले गुप्ता धाम पहुँचने का मार्ग बहुत ही दुर्गम था।

वहाँ बांध के समीप ही शेरगढ़ का किला अवस्थित था। लेकिन इसके लिए लगभग एक घण्टे की चढ़ाई चढ़नी थी। जब हमलोग वहाँ चढ़ने के लिए स्थित बेस कैम्प के पास पहुँचे तो शाम के 6 से ऊपर बज गए थे, और सूरज भगवान तेजी से अस्त होते जा रहे थे, इस बीच टूरिस्ट के नाम पर हमलोगों के अलावा कोई था भी नहीं लेकिन वहाँ नीचे लगे खेतों की रखवाली करने वाले कुछ मचान जरूर दिखे। हमलोगों किला पर चढ़ने की योजना छोड़  वहीं रात गुजारने का उपाय तलासने लगे और वहाँ के रखवाली करने वाले किसानों से दोस्ती का प्रयास करने लगे। उनमें से एक किसान हमलोग के साथ ही लिटी लगाने को तैयार हो गया, और वह सोने के लिए अपना अतिरिक्त बिछावन भी देने को तैयार हो गया था। लेकिन अचानक उसके कुछ मित्र आ गए तो वह हमलोगों को अपना बर्तन वैगेरह देते हुए यह कह घर जाने लगा कि आपलोग बनाइए खाइए हम सुबह आते है। इस प्रकरण से हमलोग असमंजस में पड़ गए क्योंकि उस जंगलनुमा क्षेत्र में हम अकेले नहीं रहना चाहते थे और अब फिर एक नए व्यक्ति से बात करने में अपना समय की बर्बादी देख रहे थे, इसलिए हमलोग उसी समय  वहाँ से 40 किमी दूर सासाराम के लिए चल दिए, वहाँ एक मित्र के यहाँ ठहरने की पहले से ही व्यवस्था कर लिए थे। 9 बजे तक हमलोग सासाराम में थे। शेरगढ़ का किला आखिरकार नहीं ही घूम पाए लेकिन अगले दिन रोहतासगढ़ किला के मिशन पर निकलना था।

Day-2 (रोहतास किला का यात्रा)

#रोहतास_किला_का_इतिहास

रोहतास किला जिसके नाम पर ही इस जिले का नाम है, किवदन्ती है कि राजा हरिश्चंद्र के लड़के रोहित द्वारा ही इस किले का निर्माण किया गया है। यह डिहरी से लगभग 50 किमी दक्षिण सोन नदी के बहाव के किनारे स्थित पहाड़ो पर अवस्थित है। 1539 ई० में शेरशाह सूरी ने अपने परिवार के औरतो के लिए हिमायु के कहर से बचाने के नाम पर यहाँ के हिन्दू राजा नृपति से किले में शरण मांगी। हिन्दू आम तौर पर शरणागतवत्सल होते ही है। नृपति तुरंत तैयार हो गए। लेकिन शेरशाह ने धोखा देकर डोली में औरतों के जगह सैनिकों को बैठा किले के अंदर प्रवेश करा दिया और भयानक कत्लेआम किया। तब से यह किला मुसलमानों के अधीन हो गया, किले के अंदर जगह-जगह टूटे हुए मंदिरो के अवशेष कभी हिन्दू राजा के अधीन रहे इस किले में मुसलमानों के अत्याचारों की कहानी कहते है।

#रोहतास_किला_यात्रा

इससे पहले वहाँ दो बार जा चुका था लेकिन पैदल मार्ग से कठिन चढ़ाई चढ़ते हुए, लेकिन अबकी बार सड़क मार्ग से जाने की योजना बनी थी। हालाँकि इसकी अपनी एक अलग दुश्वारियां थी। जिस किला का चढ़ाई वाला रास्ता अकबरपुर से मात्र 7 किमी बाद ही शुरू होता था, उसी जगह सड़क मार्ग से जाने में हमलोगों को 35 किमी तक पहाड़ो में घूमते हुए जाना था।

15 मार्च को सुबह 9 बजे हमलोग सासाराम से रोहतास किला की ओर निकले और 11 बजे तक अकबरपुर(रोहतास प्रखंड मुख्यालय) पहुँचे। यहाँ से ही पहाड़ियों के बीच रास्ता शुरू हो जाता है जो सड़क मार्ग से अघौरा और गुप्ताधाम तक चला जाता है। ऊपर चढ़ने से पहले हमलोगों ने पर्याप्त मात्रा में पानी और खाने का सामान खरीद कर रख लिया क्योंकि उपर इसके मिलने की संभावना कम ही लग रही थी।

अकबरपुर से निकलने के बाद लगभग 10 किमी तक तो हमलोग घाटी में ही नीचे-नीचे चलते रहे उसके बाद लगभग 5 किमी तक चढ़ाई वाले रास्ते पर चलते रहे। लेकिन चढ़ाई वाले रास्ते बहुत ही खराब स्थिति में थे, ऐसा लगता था कि वर्षा ऋतु में उधर जाना लगभग असंभव ही हो जाता होगा। जब ऊपर पहाड़ पर पहुँचे तो चारो ओर सुनसान जंगल शुरू हो गया जिसमें कभी कभार ही कोई व्यक्ति या वाहन दिख जाता था, थोड़ी ही दूर चलने के बाद हमें एक तिकोना चबूतरा बना दिखा जहाँ से दो रास्ते कट जा रहे थे, एक रास्ता रेहल की ओर जाता है, दूसरा गुप्ताधाम। वहाँ से गुप्ताधाम 17 किमी है। हमे रेहल की ओर जाना था, रेहल पहुँच कर हमलोग बाए पूरब दिशा की ओर मुड़ गए जहाँ हमलोग किले के एक विशालकाय गेट में प्रवेश किए, शुरू में हमलोगो को लगा कि किला का मुख्य भवन आ गया, लेकिन इस किले का सिमा फैलाव 45 किमी तक था जो इसे भारत का सबसे बड़ा किला भी साबित करता है। गेट में प्रवेश के बाद भी हमलोग लगभग 7 किमी और चले। इतने में दिन के 2 बज चुके थे।

वहाँ पर्यटक के नाम पर 5-6 लोग ही मौजूद थे और बाकी आसपास के गाँव के कुछ लोकल लोग थे। वहाँ किले में कई गाँव भी बसे हुए थे, कुए भी पर्याप्त मात्रा में थे लेकिन वहाँ तक पहुँचने वाले मार्ग की दुर्गमता के कारण ही इतना बड़ा किला पर्यटकों के अभाव झेलता हुआ सुनसान पड़ा था, इस किले के ऊपरी प्राचीर पर चढ़ने से आसपास दूर-दूर स्थित मंदिरों के भग्नावशेष दिखाई दे रहे थे। इन्ही में से एक प्रसिद्ध मंदिर चौरासन शिव मंदिर था, इसको नष्ट करने के प्रयास के बावजूद 84 सीढ़िया बच गई है, इसीलिए इसको चौरासन मंदिर कहा जाता है। लेकिन हमलोग किले के मुख्य भवन घूमने में ही 5 बजा दिए। इसलिए वहाँ भी नही पहुँच पाए क्योंकि पहाड़ी रास्तों के बहुत खराब होने के कारण हमलोग अंधेरे में उतरने का रिस्क नहीं लेना चाहते थे, इसीलिए मन मसोस कर वापस चल दिए।

शाम को 7 बजे तक हमलोग पहाड़ी के नीचे उतर अकबरपुर पहुँच गए थे, वहाँ से हाइवे आ गया जिससे हमलोग 9 बजे तक आराम से सासाराम पहुँच गए। रात में पुनः सासाराम में ही विश्राम हुआ फिर अगले दिन हमलोग बक्सर वापस आ गए।

समाप्त।