हमारे कुछ आर्यसमाजी भाई हिन्दू शब्द से विशेष रूप से चिढ़ते है अतः यह लेख खास कर उन्हीं लोगो के लिए है।
इसमें बहुत सारे तथ्य वीर सावरकर के ‘हिंदुत्व’ नामक पुस्तक से ली है।
.
उनलोगो का कहना है कि हिन्दू शब्द विदेशियों द्वरा दिया गया है और उसका अर्थ काला या चोर होता है इत्यादि-इत्यादि।
पहली बात यह कि हिन्दू शब्द विदेशी है ही नहीं यह हमारे ही धरा की एक पवित्र नदी सिधु के नाम पर है। हमे यह नाम अरबियों द्वारा प्रदान नहीं की गई है। यह आपलोगों कि जो धारणा बन गई है कि ‘हिन्दू’ या ‘हिंदुस्तान’ शब्दों की उत्पत्ति मुसलमानों की द्वेष भावना से हुई है, सवर्था असत्य है। जिस समय मुहम्मद का जन्म भी नहीं हुआ था, अरब नाम कि जाति का धराधाम पर नमो निशान भी नहीं था, उन दिनों भी यह प्राचीन राष्ट्र सिन्धु (या हिन्दू) नाम से ही सुविख्यात था। हम भी और बाहर वाले भी इस राष्ट्र को इसी नाम से संबोधित करते थे। अरबो ने यह खोजकर नहीं निकाला, प्रत्युत उन्हें इस नाम की जानकारी ईरानियों, यहूदियों, तथा अन्य जातियों से प्राप्त हुई।
किन्तु यदि हम ऐतिहासिक तथ्यों की उपेक्षा भी कर दे तो क्या यह समझना कोई कठिन कार्य है कि यदि यह नाम वस्तुतः तिरस्कार का सूचक होता तो हमारी जाति के पराक्रमी और श्रेष्ठ वीर पुरुष इसे कदापि स्वीकार न करते। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि अरबी और फारसी भाषाओं से भी हमारे पूर्वज सुपरिचित थे। मुसलमान तो हमें काफ़िर भी कहते आए हैं, तो क्या हम हिन्दुओ ने इस नाम को ग्रहण कर लिया? यदि नहीं तो फिर हिन्दू और हिंदुस्तान इन शब्दों में ही यह राष्ट्रिय अपमान उन्होंने किस भांति सहन कर लिया? अनेक व्यक्तियों का यह कथन है कि ‘हिन्दू’ शब्द संस्कृत भाषा का नहीं हैं। यह सही है, परन्तु ‘हिन्दू’ ही क्यों अन्य अनेक ऐसे शब्द भी हैं, जो संस्कृत में नहीं है किन्तु फिर भी हम उनका प्रयोग करते हैं। उदाहरणतः बनारस, मराठा, सिख, गुजरात एवं पटना इत्यादि. परन्तु क्या ये शब्द कहीं बाहर से आए है? ये सब उसी संस्कृत का अपभ्रंश है और हिन्दू भी संस्कृत शब्द सिन्धु का अपभ्रंश मात्र ही है।
यह भी संभव है कि आधुनिक मुसलमानी फारसी भाषा में इस शब्द के साथ ही कोई तिरस्कारसूचक भाव भी आ गया हो, और कालान्तर में यह भाव उनलोगों ने अपने डिक्सनरी में जोड़ दिया होगा, परन्तु इस के कारण यह तो नहीं हो जाता कि हिन्दू शब्द का मूल अर्थ ही यह हो जाए और उसे ‘काला आदमी’ का पर्यायवाची स्वीकार कर लिया जाए। ‘हिंदी’ और ‘हिन्द’ शब्द भी फारसी भाषा में हैं किन्तु उनका अर्थ ‘काला’ नहीं है। और इसके साथ हमे यह भी विदित होना चाहिए कि इन शब्दों का उद्भव भी हिन्दू शब्द के साथ-ही-साथ सिन्धु अथवा सिंध इन्हीं संस्कृत शब्दों से हुआ है। यदि इस बात को सत्य समझ लिया जाए कि हिन्दू का अर्थ ‘काला’ होने के कारण ही हमें हिन्दू कहा गया तो फिर हिन्द और हिंदी इन शब्दों का अर्थ इस ढंग पर क्यों नहीं किया गया कि उनका अर्थ काला अथवा काला आदमी समझ लिया जाए। वस्तुस्थिति यह है कि वह शब्द आधुनिक फारसी भाषा से उद्धृत नहीं है अपितु ईरान की प्राचीन जींद भाषा के समय से प्रचलित है जिस समय ‘हप्तहिन्दू’ का तात्पर्य ‘सप्तसिंधु’ ही था।
इस भांति हिन्दू और हिंदुस्तान ये गौरवपूर्ण और देशाभिमान के प्रतिक शब्द उस युग से हमारे देश और राष्ट्र के लिए प्रयुक्त होते रहे हैं, जब मुसलमानों अथवा मुस्लिम ईरानियों का कहीं पता भी नहीं था।
एक समय ऐसा भी युग रहा है जब स्वयं इंग्लैण्ड में ही ‘इंग्लैण्ड’ नाम नार्मन विजेताओं कि दृष्टि में इतना गिर गया था कि वह परस्पर गाली गलौच के लिए व्यवहार में आने लगा था? “क्या मैं अंग्रेज हूँ” यह कहना ही अपनी घोर भर्त्सना करना होता था अथवा “तुम अंग्रेज हो” यह किसी नार्मन को कह देना एक अक्षम्य अपराध माना जाता था। परन्तु क्या इसी कारणवश अंग्रेजो ने अपने देश और राष्ट्र का नाम परिवर्तित कर दिया और इसे इंग्लैण्ड के स्थान पर ‘नारमण्डी’ का नाम दे दिया? और क्या इंग्लैण्ड अथवा अंग्रेज नाम त्याग कर देने से ही वे बड़े हो जाते? कदापि नहीं, प्रत्युत इसके विपरीत उन्होंने अपने पूर्वजों के रक्त और नाम के उत्तराधिकार का परित्याग नहीं किया इसी कारण अब हम देख सकते हैं कि जहाँ ‘नार्मन’ शब्द और नार्मन देश ढूंढे भी नहीं मिल पाता वहाँ अंग्रेज जाति और अंग्रेजी भाषा ने विश्व में अपना महान सम्राज्य स्थापित करने में सफलता अर्जित कर ली।by आलोक
संघर्षो के युग में राष्ट्रों कि मनः स्थिति भी अस्थिर हो उठती है. ऐसी स्थिति में यदि फारसवालो ने हिन्दू का अर्थ ‘चोर’ अथवा ‘काला आदमी’ ही मान लिया हो तो यह भी समझ लेना चाहिए कि हिन्दू भी मुसलमान शब्द को सदैव भद्र व्यक्ति का पर्यायवाची नहीं मानते थे। एक समय ऐसा भी था जब किसी को मुसलमान अथवा ‘मुसन्डा’ कहना उसे पशु कहने से भी अधिक निकृष्ट अपशब्द समझा जाता था।
मूल बात यह है कि मान लीजिए कोई देश अपने डिक्सनरी में भारत का अर्थ शैतान रख दे तो क्या आप अपने देश का नाम ही बदलने लगीएगा? ठीक उसी प्रकार अगर किसी ने द्वेष वश हिन्दू शब्द का गलत अर्थ किया है तो हम अपने आप को हिन्दू शब्द से अलग क्यों करें। बजाए कि अपने आप को इस हिन्दू शब्द से अलग करे, इसके बदले हम अपने राष्ट्र, भाषा, धर्म इत्यादि को उन्नति के शिखर पर पहुचा कर इस हिन्दू शब्द को और गौरवान्वित करने की कोशिस करें तो बेहतर रहेगा।©आलोक
इन सबके आलावा यह बात भी अविस्मरणीय तथ्य है कि प्राचीन यहूदी, ‘हिन्दू’ शब्द से बल-विक्रम और शौर्य का अर्थ ग्रहण करते थे, अर्थात ये गुण हमारी जाति और राष्ट्र के साथ सम्बद्ध थे। ‘सोहाब मो अलक्क’- नामक एक अरबी महाकाव्य में उल्लेख मिलता है कि “अपने ही परिवार और जाति वालों के अत्याचार और प्रहार तो एक हिन्दू कि तलवार से भी अधिक तीक्ष्ण होते है। इसके साथ ही ईरानियों में एक उक्ति प्रचलित है “हिन्दू के समान उत्तर देना”. जिसका तात्पर्य समझा जाता है, ‘हिन्दुस्तानी तलवार और वीरता के प्रदर्शन के साथ गहरा घाव लगाना’। बाविलोन देश के प्राचीन निवासी सर्वश्रेष्ठ कपड़े को ‘सिन्धु’ की संज्ञा देते थे, क्योंकि इस श्रेष्ठ श्रेणी का कपड़ा प्रायः सप्तसिन्धु से ही उन्हें प्राप्त हो पाता था। इससे यह अब स्पष्ट हो जाता है कि इन्हें भी हमारे इस प्राचीन बाबिलोनियन भाषाओँ में इस शब्द को राष्ट्रिय अर्थ में प्रयुक्त किए जाने के अतिरिक्त दुसरे किसी रूप में पयुक्त किए जाते नहीं सुना।
क्या आपलोग बता सकते है कि ये हिन्दूओ की तलवार का स्वाद ईरानियो या यहूदियों ने हमारी गुलामी के काल के पहले चखी थी या बाद में।
अतः उपरोक्त सभी तथ्यों से क्या यह बात सुस्पष्ट नहीं हो जाती कि अपने इस ‘हिन्दू’ नाम के प्रति आदर का भाव जागृत करने का उपाय इस नाम का परित्याग करना, घृणा करना अथवा इसको अस्वीकार करना न हो कर अपने शस्त्र तेज से, उद्येश्य की पावनता तथा अपनी उदात्त संस्कृति से विश्व को इस बात के लिए बाध्य करना ही है कि वह इस नाम का सम्मान करते हुए नतमस्तक हो जाए।
अतः हिंदू शब्द से घृणा करने के बजाए उसे अपना कर उसे और गौरवान्वित करने का प्रयास करना चाहिए, न कि उसे तिरस्कृत करना चाहिए।।जय हिन्द।।
©आलोक
इसमें बहुत सारे तथ्य वीर सावरकर के ‘हिंदुत्व’ नामक पुस्तक से ली है।
.
उनलोगो का कहना है कि हिन्दू शब्द विदेशियों द्वरा दिया गया है और उसका अर्थ काला या चोर होता है इत्यादि-इत्यादि।
पहली बात यह कि हिन्दू शब्द विदेशी है ही नहीं यह हमारे ही धरा की एक पवित्र नदी सिधु के नाम पर है। हमे यह नाम अरबियों द्वारा प्रदान नहीं की गई है। यह आपलोगों कि जो धारणा बन गई है कि ‘हिन्दू’ या ‘हिंदुस्तान’ शब्दों की उत्पत्ति मुसलमानों की द्वेष भावना से हुई है, सवर्था असत्य है। जिस समय मुहम्मद का जन्म भी नहीं हुआ था, अरब नाम कि जाति का धराधाम पर नमो निशान भी नहीं था, उन दिनों भी यह प्राचीन राष्ट्र सिन्धु (या हिन्दू) नाम से ही सुविख्यात था। हम भी और बाहर वाले भी इस राष्ट्र को इसी नाम से संबोधित करते थे। अरबो ने यह खोजकर नहीं निकाला, प्रत्युत उन्हें इस नाम की जानकारी ईरानियों, यहूदियों, तथा अन्य जातियों से प्राप्त हुई।
किन्तु यदि हम ऐतिहासिक तथ्यों की उपेक्षा भी कर दे तो क्या यह समझना कोई कठिन कार्य है कि यदि यह नाम वस्तुतः तिरस्कार का सूचक होता तो हमारी जाति के पराक्रमी और श्रेष्ठ वीर पुरुष इसे कदापि स्वीकार न करते। यह एक सुनिश्चित तथ्य है कि अरबी और फारसी भाषाओं से भी हमारे पूर्वज सुपरिचित थे। मुसलमान तो हमें काफ़िर भी कहते आए हैं, तो क्या हम हिन्दुओ ने इस नाम को ग्रहण कर लिया? यदि नहीं तो फिर हिन्दू और हिंदुस्तान इन शब्दों में ही यह राष्ट्रिय अपमान उन्होंने किस भांति सहन कर लिया? अनेक व्यक्तियों का यह कथन है कि ‘हिन्दू’ शब्द संस्कृत भाषा का नहीं हैं। यह सही है, परन्तु ‘हिन्दू’ ही क्यों अन्य अनेक ऐसे शब्द भी हैं, जो संस्कृत में नहीं है किन्तु फिर भी हम उनका प्रयोग करते हैं। उदाहरणतः बनारस, मराठा, सिख, गुजरात एवं पटना इत्यादि. परन्तु क्या ये शब्द कहीं बाहर से आए है? ये सब उसी संस्कृत का अपभ्रंश है और हिन्दू भी संस्कृत शब्द सिन्धु का अपभ्रंश मात्र ही है।
यह भी संभव है कि आधुनिक मुसलमानी फारसी भाषा में इस शब्द के साथ ही कोई तिरस्कारसूचक भाव भी आ गया हो, और कालान्तर में यह भाव उनलोगों ने अपने डिक्सनरी में जोड़ दिया होगा, परन्तु इस के कारण यह तो नहीं हो जाता कि हिन्दू शब्द का मूल अर्थ ही यह हो जाए और उसे ‘काला आदमी’ का पर्यायवाची स्वीकार कर लिया जाए। ‘हिंदी’ और ‘हिन्द’ शब्द भी फारसी भाषा में हैं किन्तु उनका अर्थ ‘काला’ नहीं है। और इसके साथ हमे यह भी विदित होना चाहिए कि इन शब्दों का उद्भव भी हिन्दू शब्द के साथ-ही-साथ सिन्धु अथवा सिंध इन्हीं संस्कृत शब्दों से हुआ है। यदि इस बात को सत्य समझ लिया जाए कि हिन्दू का अर्थ ‘काला’ होने के कारण ही हमें हिन्दू कहा गया तो फिर हिन्द और हिंदी इन शब्दों का अर्थ इस ढंग पर क्यों नहीं किया गया कि उनका अर्थ काला अथवा काला आदमी समझ लिया जाए। वस्तुस्थिति यह है कि वह शब्द आधुनिक फारसी भाषा से उद्धृत नहीं है अपितु ईरान की प्राचीन जींद भाषा के समय से प्रचलित है जिस समय ‘हप्तहिन्दू’ का तात्पर्य ‘सप्तसिंधु’ ही था।
इस भांति हिन्दू और हिंदुस्तान ये गौरवपूर्ण और देशाभिमान के प्रतिक शब्द उस युग से हमारे देश और राष्ट्र के लिए प्रयुक्त होते रहे हैं, जब मुसलमानों अथवा मुस्लिम ईरानियों का कहीं पता भी नहीं था।
एक समय ऐसा भी युग रहा है जब स्वयं इंग्लैण्ड में ही ‘इंग्लैण्ड’ नाम नार्मन विजेताओं कि दृष्टि में इतना गिर गया था कि वह परस्पर गाली गलौच के लिए व्यवहार में आने लगा था? “क्या मैं अंग्रेज हूँ” यह कहना ही अपनी घोर भर्त्सना करना होता था अथवा “तुम अंग्रेज हो” यह किसी नार्मन को कह देना एक अक्षम्य अपराध माना जाता था। परन्तु क्या इसी कारणवश अंग्रेजो ने अपने देश और राष्ट्र का नाम परिवर्तित कर दिया और इसे इंग्लैण्ड के स्थान पर ‘नारमण्डी’ का नाम दे दिया? और क्या इंग्लैण्ड अथवा अंग्रेज नाम त्याग कर देने से ही वे बड़े हो जाते? कदापि नहीं, प्रत्युत इसके विपरीत उन्होंने अपने पूर्वजों के रक्त और नाम के उत्तराधिकार का परित्याग नहीं किया इसी कारण अब हम देख सकते हैं कि जहाँ ‘नार्मन’ शब्द और नार्मन देश ढूंढे भी नहीं मिल पाता वहाँ अंग्रेज जाति और अंग्रेजी भाषा ने विश्व में अपना महान सम्राज्य स्थापित करने में सफलता अर्जित कर ली।by आलोक
संघर्षो के युग में राष्ट्रों कि मनः स्थिति भी अस्थिर हो उठती है. ऐसी स्थिति में यदि फारसवालो ने हिन्दू का अर्थ ‘चोर’ अथवा ‘काला आदमी’ ही मान लिया हो तो यह भी समझ लेना चाहिए कि हिन्दू भी मुसलमान शब्द को सदैव भद्र व्यक्ति का पर्यायवाची नहीं मानते थे। एक समय ऐसा भी था जब किसी को मुसलमान अथवा ‘मुसन्डा’ कहना उसे पशु कहने से भी अधिक निकृष्ट अपशब्द समझा जाता था।
मूल बात यह है कि मान लीजिए कोई देश अपने डिक्सनरी में भारत का अर्थ शैतान रख दे तो क्या आप अपने देश का नाम ही बदलने लगीएगा? ठीक उसी प्रकार अगर किसी ने द्वेष वश हिन्दू शब्द का गलत अर्थ किया है तो हम अपने आप को हिन्दू शब्द से अलग क्यों करें। बजाए कि अपने आप को इस हिन्दू शब्द से अलग करे, इसके बदले हम अपने राष्ट्र, भाषा, धर्म इत्यादि को उन्नति के शिखर पर पहुचा कर इस हिन्दू शब्द को और गौरवान्वित करने की कोशिस करें तो बेहतर रहेगा।©आलोक
इन सबके आलावा यह बात भी अविस्मरणीय तथ्य है कि प्राचीन यहूदी, ‘हिन्दू’ शब्द से बल-विक्रम और शौर्य का अर्थ ग्रहण करते थे, अर्थात ये गुण हमारी जाति और राष्ट्र के साथ सम्बद्ध थे। ‘सोहाब मो अलक्क’- नामक एक अरबी महाकाव्य में उल्लेख मिलता है कि “अपने ही परिवार और जाति वालों के अत्याचार और प्रहार तो एक हिन्दू कि तलवार से भी अधिक तीक्ष्ण होते है। इसके साथ ही ईरानियों में एक उक्ति प्रचलित है “हिन्दू के समान उत्तर देना”. जिसका तात्पर्य समझा जाता है, ‘हिन्दुस्तानी तलवार और वीरता के प्रदर्शन के साथ गहरा घाव लगाना’। बाविलोन देश के प्राचीन निवासी सर्वश्रेष्ठ कपड़े को ‘सिन्धु’ की संज्ञा देते थे, क्योंकि इस श्रेष्ठ श्रेणी का कपड़ा प्रायः सप्तसिन्धु से ही उन्हें प्राप्त हो पाता था। इससे यह अब स्पष्ट हो जाता है कि इन्हें भी हमारे इस प्राचीन बाबिलोनियन भाषाओँ में इस शब्द को राष्ट्रिय अर्थ में प्रयुक्त किए जाने के अतिरिक्त दुसरे किसी रूप में पयुक्त किए जाते नहीं सुना।
क्या आपलोग बता सकते है कि ये हिन्दूओ की तलवार का स्वाद ईरानियो या यहूदियों ने हमारी गुलामी के काल के पहले चखी थी या बाद में।
अतः उपरोक्त सभी तथ्यों से क्या यह बात सुस्पष्ट नहीं हो जाती कि अपने इस ‘हिन्दू’ नाम के प्रति आदर का भाव जागृत करने का उपाय इस नाम का परित्याग करना, घृणा करना अथवा इसको अस्वीकार करना न हो कर अपने शस्त्र तेज से, उद्येश्य की पावनता तथा अपनी उदात्त संस्कृति से विश्व को इस बात के लिए बाध्य करना ही है कि वह इस नाम का सम्मान करते हुए नतमस्तक हो जाए।
अतः हिंदू शब्द से घृणा करने के बजाए उसे अपना कर उसे और गौरवान्वित करने का प्रयास करना चाहिए, न कि उसे तिरस्कृत करना चाहिए।।जय हिन्द।।
©आलोक