यात्रा_संस्मरण
मेरी_राजस्थान_यात्रा
By Alok
दिनांक 25.11.2022 से 05.12.2022 तक।
नवंबर लास्ट का महीना चल रहा था और सुबह के 05:30 बजे थे जब हम लोग जैसलमेर स्टेशन पर उतरे। ऐसा लग रहा था मानो यहां कड़ाके की ठंड पड़ रही हो और पानी से हाथ धोने में भी डर लग रहा था, हम लोग स्टेशन से बाहर जाने के लिए पौ फटने का इंतजार करने लगे, लेकिन 07 बज गए अभी भी हल्का-हल्का अंधेरा ही था।
इससे पहले हमको कोई अनुभव नहीं था कि कोई शहर इतना भी खूबसूरत हो सकता है, जब स्टेशन से पैदल ही हमलोग शहर की ओर निकल रहे थे तो सूर्य की पहली किरण इस शहर पर पड़ी और देखते ही देखते ऐसा लगने लगा मानो पूरा शहर जगमगा रहा है, हर तरफ पीला ही पीला दिखाई दे रहा था, वहां का हर घर ऐसा लग रहा था मानो वह कोई राजमहल का छोटा सा हिस्सा हो, फिर ध्यान में आया कि दरअसल यहां पीले पत्थर बहुतायत में पाए जाते है, इसी लिए प्रत्येक घर को बनाने में इसी बड़े – बड़े पीले पत्थरों का प्रयोग किया गया है और इसका पाकृतिक रंग किसी पीले पेंट किए गए घरों से भी ज्यादा खूबसूरत दिख रहा था, समूचा शहर का निर्माण ही इन पीले पत्थरों से किया गया है और इसीलिए इस शहर का नाम स्वर्ण नगरी है और यहां स्थित किले का नाम सोनार किला या गोल्डेन फोर्ट है।
पूरा शहर एकदम स्वच्छ लग रहा था, शायद ही कही गंदगी दिखाई दे और जब रास्ते में शहर के गलियों से होकर गुजर रहे थे तो अधिकांश घरों की महिलाएं बाहर निकल कर अपने घर के सामने चबूतरों को पानी से धो रही थी, शायद ये सब उनके दिनचर्या का हिस्सा रहा हो लेकिन मुझे अदभुद लग रहा था।
“जैसलमेर” जो राजस्थान में एकदम मरुभूमि के बीच में स्थित एक शहर है, बहुत दिनों से जिज्ञासा थी कि पहाड़ समुद्र तो देख लिए है, एक बार रेगिस्तान भी हमे देख लेना चाहिए और यही चीज हमें अबकी बार राजस्थान खींच लाई थी।
दिन जैसे- जैसे चढ़ता गया ठंड का बुखार उतरता गया और अपने शरीर पर लदे कपड़े बोझ समान प्रतीत होने लगे, दरअसल रेगिस्तान की खासियत ही यही है, दिन पूरा गर्म तो रात पूरी ठंडी।
सभी को नमस्कार!
प्रस्तुत है मेरी एक और यात्रा संस्मरण, जो मैंने राजस्थान यात्रा के दौरान अनुभव किया था। वैसे मेरा प्रयास यही रहता है कि मैं यात्रा के उन अनुभवों को आपके सामने रख सकू जो मुझे खुद नई और रोचक लगी हो।
राजस्थान क्या किसी भी क्षेत्र को आप एक बार में संपूर्ण रूप से नहीं ही जान सकते लेकिन राजस्थान अभी तक मेरे लिए सर्वथा अपरिचित था सो एक बार वीरों के इस धरती के दर्शन की लालसा बहुत दिन से थी, लेकिन घूमने के भी मौसम होते है और राजस्थान घूमने का सबसे बढ़िया मौसम ठंढा ही है। सो अबकी बार मौका मिल ही गया।
सबके घूमने के अपने-अपने तरीके होते है मेरा तरीका भी कुछ अलग है, उतने ज्यादा संसाधन न होने के बावजूद भी अगर शौक पूरे करने हो तो अलग तरीके लगाने ही पड़ते है, जिसे हम जुगाड़ सिस्टम भी कह सकते है। और अबकी बार मेरा बहुत सौभाग्य रहा था कि इस दस दिन के यात्रा में मुझे कभी भी होटल के शरण में नहीं जाना पड़ा और कभी कभी ही रेस्टुरेंट के शरण में जाना पड़ा।
#दिनांक 25 नवंबर 2022
एक दिन पहले ही मैंने आज के लिए मगध में तत्काल टिकट मार लिया था, सो शाम को 7 बजे बक्सर से बैग वैगेरह पैक कर निकल लिए राजस्थान दर्शन के लिए, साथ में मेरा एक भाई भी था विवेक।
#आगरा दर्शन (26.11.2022)
हमलोगों ने शुरुआत राजस्थान बॉर्डर पर ही स्थित आगरा दर्शन से किया। वहां मैंने पहले से ही एक परिचित के यहां व्यवस्था कर लिया था। मगध से हमलोग टुंडला जंक्शन पर सुबह 10 बजे उतरे वहां से आगरा 30 किमी था जहा के लिए आसानी से टेंपू मिल गया। फिर दोपहर भोजन वैगेरह करके ताजमहल या तेजोमहालय शिव मंदिर के दर्शन के के लिए निकल लिए। वहां ताजमहल के अंदर जाने के लिए 250 और सिर्फ नजदीक से देखने के लिए 45 रु टिकट था। टेंपू वाला 1 किमी दूर ही हमलोगो को उतार दिया, जिसके बाद हमलोग वहां के ऑथराइज ई – रिक्शा से आगे तक गए। वहां एक खास प्रकार का पेपर मिल रहा था, जिसे ताजमहल के अंदर जाने पर सबको अपने जूते में लपेटना था, हालांकि हमलोग अंदर गए ही नहीं।
ताजमहल का परिसर बहुत बड़ा है जिसमे घूमते घूमते कब 2-3 घंटा निकल गया, पता ही नहीं चला। शाम को अपने रुकने की व्यवस्था अपने एक मित्र के पास जो नजदीक के ही धौलपुर जिले के थे, उनके यहां था, सो जल्दी ही हमलोग आगरा छोड़ धौलपुर के लिए प्रस्थान कर गए और रात्रि 8 बजे तक उनके घर पर थे।
#धौलपुर (27.11.2022)
आज कही जाने का मन नहीं था, सो उनके यहां ही रुके रहे, और नहा खा कर 2 बजे के बाद उनके बाइक से गांव के आसपास के इलाके में घूमने निकले। उनके गांव के बगल में ही आर्मी द्वारा नवनिर्मित एक हवाई पट्टी था, जिसपर हमलोगो ने अपने ड्रोन वैगेरह से ढेर सारा शूट किया। उनके गांव के बगल से ही चंबल नदी बहती थी, जिसमें नदी के दोनो ओर पांच
किमी तक बीहड़ का इलाका था, जिसका प्रयोग अभी भी वहां के स्थानीय असमाजिक तत्व करते थे, इसलिए इस इलाके में इतने महंगे ड्रोन साथ रख कर अंदर तक जाने की हिम्मत नही हुई, बस प्रवेश कर बाहर आ गए।
#भरतपुर पक्षी अभ्यारण (28.11.2022)
बचपन में सामान्य ज्ञान में हमलोगों ने इस जगह के बारे में खूब पढ़ा था, इसलिए इस क्षेत्र को देखने की काफी जिज्ञासा थी। जयपुर में हमारे एक रिश्तेदार रहते थे, सो अगली योजना यही बनी कि सुबह की बस से भरतपुर पहुंच वहां दिनभर भ्रमण कर रात तक जयपुर पहुंचा जाए। सुबह 8 बजे धौलपुर से प्रस्थान करने के बाद 12 बजे तक हमलोग भरतपुर में थे और शाम 4 बजे तक पक्षी अभ्यारण घूमते रहे, हालांकि जैसी कल्पना थी वैसी दिखी नहीं। क्षेत्र तो बहुत बड़ा था, लेकिन पर्यटकों को एक 5 किमी लंबी सीधी सड़क पर जा कर वापस लौटना था, जंगल ट्रेल जैसा कुछ चीज वहां नहीं दिखा। सो उतना मजा नहीं आया, लेकिन संतुष्टि जरूर हुई कि इस जगह को देख लिए है। 5 बजे हमलोग वहां से 180 किमी दूर जयपुर के लिए प्रस्थान किए जिसे हम बस द्वारा मात्र 3 घंटे में तय कर लिए, हालांकि भरतपुर से जयपुर की जो ट्रेन का समय दिखा रहा था वो इससे कही ज्यादा था। और भाड़ा भी लगभग एक समान था, अतः दिमाग में यही आया कि छोटी दूरी के लिए ट्रेन से बढ़िया बस ही है।
#जयपुर दर्शन और जैसलमेर के लिए प्रस्थान (29.11.2022)
जयपुर से जैसलमेर रात भर का रास्ता था सो एक दिन पहले ही जैसलमेर के लिए आज की ट्रेन की तत्काल टिकट बुक करा लिए थे। ट्रेन आज शाम को थी सो हम दिन में अपने परिचित के यहां से बाइक लेकर जयपुर घूमने निकल पड़े। पहले हवा महल फिर जंतर मंतर देखे, और भी कई परिचित लोगो से मुलाकात हुई फिर शाम को ट्रेन पकड़ लिए जो अगले दिन सुबह 05:30 बजे हमें जैसलमेर उतार दी। जैसलमेर में अगले दो दिन हमारे लिए बेहद खास होने वाले थे फिर 01 दिसंबर को रात में वहां से जयपुर के लिए ट्रेन थी। हम आपको आगे बताएंगे कि अगर आप भी कभी जैसलमेर घूमने जाएंगे तो आपको किन किन जानकारियों की जरूरत पड़ेगी।
#जैसलमेर के रोमांचक और अदभुद अनुभव (30.11.2022 से 01.12.2022)
30 नवंबर की सुबह जैसलमेर में उतरने के बाद वहां हमारे कुछ परिचय के लोग के यहां ठहरने की व्यवस्था हो गई और हमलोग बाकी के दो दिन किस तरह घूमनी है योजना बनाने लगे। शहर बहुत छोटा था, तीन-चार किमी के क्षेत्र में फैला हुआ। इसलिए पहला दिन हमलोगों ने पूरा शहर पैदल घूमने में बीता दिया। वहां के सबसे प्रसिद्ध और वहां का प्राचीन गौरव “सोनार किला” था। इसके अलावा पटवो की हवेली और गडीसर झील नगर के आकर्षण के प्रमुख केंद्र थे। गडीसर झील पर रोज शाम को लाइट एंड साउंड के शो भी होते थे। गोल्डेन फोर्ट या सोनार किला के गेट के आसपास ही बहुत सारे बाइक रेंट पर देने वाले दुकान थे, वे लोग एक आधार कार्ड और डीएल के फोटो पर दिन भर के लिए बाइक उपलब्ध करा देते थे, स्कूटी का 400 होंडा का 700 और बुलेट का 1000 ले रहे थे। हमलोग अगले दिन बाइक ट्रिप की योजना बना कर सुबह ही वहां पहुंच गए और कागजी करवाई पूरी कर एक बुलेट हायर कर लिया और निकल पड़े रेगिस्तान की सैर पर। चुकी अब एक ही दिन समय था तो हमलोगों ने लोंगेवाला बॉर्डर पोस्ट और तनोट माता मंदिर घूमने का निश्चय किया जो वहां से 100 किमी से अधिक ही दूरी पर था। जैसे जैसे हमलोग शहर से दूर होते जा रहे थे वैसे हमे आबादी की विरलता और रेगिस्तान की सघनता मिलती जा रही थी, चुकी हमलोग वर्षा ऋतु के तुरंत बाद गए थे, तो सफेद रेगिस्तान में हल्के हरे झाड़ियों के भी दर्शन हो रहे थे, लेकिन तनोट मंदिर में तैनात एक जवान ने बताया कि ये हल्की झाड़ियां भी जनवरी तक पूरी तरह खत्म हो जाती है फिर चारो ओर रेगिस्तान के समंदर के अलावा और कुछ नहीं दिखता, जून में तो वहां का तापमान 55°C तक चला जाता है। सबसे पहले हमलोग लोंगेवाला पोस्ट पर गए, जहां के लड़ाई को बॉर्डर फिल्म में फिल्माया भी गया था, वहां एक म्यूजियम भी बनाया गया है, इसके अलावा उसके आसपास के क्षेत्र में यत्र-तत्र पाकिस्तानी टैंक जो जहां पड़े थे उसे उसी हालत में वहां सुरक्षित रखा गया था। लोंगेवाला पोस्ट के बाद हमलोग तनोट माता मंदिर पहुंचे जहां जिंदा बम के गोले अभी भी सजा कर रखे हुए है जो अब तक नहीं फटे थे, मंदिर का स्वरूप अब बहुत बड़ा हो गया है। धीरे धीरे अब शाम होने लगी थी और हमे लौटना भी था सो ज्यादा नहीं रुक कर तुरंत चल दिए लेकिन जैसे जैसे सूरज ढलता जा रहा था वैसे वैसे ठंड बढ़ता जा रहा था, अंततः साढ़े सात बजे तक हमलोग जैसलमेर में थे, इस बीच हमलोगों ने बाइक से एक दिन में 280 किमी का सफर तय किया। बीच-बीच में बाइक वाला फोन करते रहता था कि आपलोग कहां तक पहुंचे। इसी बीच जो एक अहम जगह छूट ही गया सैम सैंड ड्यूंस। सुना था यहां बड़े बड़े रेत के टीले देखने को मिलते है। खैर अगली बार के लिए भी कुछ चाहिए, उसी दिन जयपुर के लिए हमलोगों की ट्रेन रात में 11 बजे थी, जो अगले दिन 10 बजे जयपुर में उतारी।
#जयपुर में मंदिर एवम् पार्क भ्रमण तथा घर वापसी
(दिनांक 02 दिसंबर से 05 दिसंबर)
जयपुर शहर चारों ओर से पहाड़ियों से घिरा हुआ है और वहां पहाड़ों पर अनेक किले एवं प्राचीन मंदिर स्थापित है, सभी को घूमना तो संभव नहीं था लेकिन चूल गिरी मंदिर, मोती डूंगरी गणेश जी मंदिर, बिरला मंदिर इत्यादि मंदिरों में गए फिर अगले दिन वहां जवाहर सर्किल और सिटी पार्क इत्यादि प्रसिद्ध पार्कों के भ्रमण किए। अगले दिन 4 दिसंबर के शाम को हमारी बक्सर के लिए ट्रेन थी, सो सुबह में ही एक दो किले घूम लिए फिर वापसी की राह पकड़ ली। अंततः हमारी 10 दिन लंबी यात्रा आज समाप्त हो गई थी, और अपने पीछे बहुत सारे अनुभवों को छोड़ कर गई।