मेरी गुप्ताधाम यात्रा, रोहतास
(दिनांक 25-29 जुलाई 2019)
नमस्ते दोस्तों!
सावन में बहुत लोग भगवान के शिव के दर्शन करने उनके विभिन्न धाम को जाते है। इन्हीं में से एक है बाबा गुप्तेश्वरनाथ का धाम जहाँ भगवान शंकर को राक्षस भष्मासुर से छिपने का आश्रय मिला था। यह हमारे बिहार के ही रोहतास जिला में स्थित है। अबकी सावन हमें भी वहाँ जाने का सौभाग्य मिला, जिसका उल्लेख इस यात्रा वृतांत में कर रहा हूँ।
मेरी कोशिस रहती है कि मैं जहाँ भी जाऊँ उसका रोचक वर्णन आपलोगों के सामने करूँ ताकि उन मित्रों को सहायता मिल सके जो वहाँ जाना चाहते है या जो उस जगह के बारे में जानना चाहते है।
♦गुप्ताधाम अथवा बाबा गुप्तेश्वरनाथ धाम:-
गुप्ताधाम भगवान शिव के वजह से आकर्षण का केंद्र तो है ही लेकिन इसकी सबसे बड़ी विशेषता है इसका पहाड़ियों के बीच होना, जहाँ पहुँचने के लिए भक्तों को खूबसूरत पहाड़ी वादियों से होकर गुजरना पड़ता है जो मन को और प्रफुल्लित कर देता है। सावन के महीने में तो चारों ओर हरे भरे जंगलो के बीच से होकर गुजरना, भक्तों को थकान का अनुभव होने ही नहीं देता।
यू तो गुप्ताधाम जाने के कई रास्ते है लेकिन उनमें से प्रमुख है पनियारी घाट, उगहनी घाट, पचैना घाट इत्यादि जहाँ से अधिकांश तीर्थयात्री पहाड़ो पर पैदल यात्रा कर बाबा के यहाँ पहुँचते है, जिसमें लगातार चलने पर 5-6 घण्टे में यात्रा पूरा किया जा सकता है। हमलोग पनियारी घाट के रास्ते वहाँ पहुँचे जहाँ सबसे पहले हमें पहाड़ पर चढ़ाई चढ़नी पड़ती है फिर 10-12 km समतल चलने के बाद उतराई शुरू हो जाती है। नीचे उतरने के बाद सुगवा नदी को पार करते है, जहाँ गुप्ताधाम में, बाबा पहाड़ के अंदर एक लंबी गुफा में विराजमान है। उस गुफा में अमूमन ऑक्सिजन की कमी रहती है जिसकी पूर्ति कृतिम ऑक्सिजन से की जाती है। वहाँ गुप्ताधाम के समीप ही एक सीता कुंड है जिसे शीतल कुंड भी कहा जाता है जहाँ भक्त स्नान कर भगवान भोलेनाथ को जल चढ़ाते है। सीता कुंड में पानी एक बहुत ऊँचे झरने से आता है वह भी आकर्षण का एक केंद्र है।
25 जुलाई, गुरुवार को जब हम यहाँ से चले तो यहां से पहला पड़ाव हमलोगों ने मुंडेश्वरी धाम के लगभग 8-10 km पीछे एक मंदिर प्रांगण में डाला। अगले दिन शुक्रवार को सुबह मंदिर प्रांगण से ही स्नानादि नित्य क्रिया-कर्म करके माता मुंडेश्वरी के दर्शन को चल दिए।
मुंडेश्वरी धाम से दर्शन करने के बाद हमलोगों का कार्यक्रम गुप्ताधाम का बना और वहाँ से लगभग 12 बजे पनियारी घाट की ओर चल दिए। हमलोगो ने शाम को लगभग 3 बजे के आसपास वहाँ से चढ़ाई चढ़ना आरंभ कर दिया। रास्ते के ठीक बीच में ही एक दुर्गा जी का मंदिर है वही हमलोगों ने रात का पड़ाव डाल दिया। फिर अगले दिन सुबह 12 बजे तक लगभग सभी लोग बाबा गुप्तेश्वरनाथ को जल चढ़ा चुके थे। चूँकि उस दिन शनिवार था और हमलोग यहाँ मंगलवार को पड़ने वाला शिवरात्रि तक रोज जल चढ़ाने का कार्यक्रम बना कर आए थे। अतः इतने दिन में इस क्षेत्र का चप्पा-चप्पा खंगालने का प्लान था। रात में हमलोगों ने लिटी बनाई और प्रसाद वाले के टेंट में ही सो गए। अगले दिन रविवार को हमलोगों ने वहाँ गिर रहे झरने के स्त्रोत के पास पहुँचने की योजना बनाई। और वहाँ स्थित एक दूसरे पहाड़ पर चढ़ना शुरू कर दिया। वहाँ ऊपर और भी खूबसूरत दृश्य था। वहाँ जंगल और नदी के बीचों-बीच दिन भर हमलोगों ने वही पर पिकनिक मनाया और शाम को लौटे। चूँकि अभी रहना तो और दो दिन था लेकिन मौसम के लगातार बदलने, थकान इत्यादि के कारण कई लोग बीमार हो गए। अतः मैं उनलोगों को लेकर रविवार शाम को ही नीचे की ओर वापस पनियारी घाट चल दिया। और सुबह तक वापस अपने गाड़ी के पास पहुँच गया। वहा वे लोग अगले दिन तक बाकिलोग का इंतजार करते रहे लेकिन किसी आवश्यक कार्यवश हम सोमवार, 29 जुलाई को ही वहाँ से बक्सर के लिए चल दिए।
♦रात्रि शयन की व्यवस्था
पहले दिन तो हमलोग मंदिर प्रांगण में रात बिताए थे। वहाँ मंदिर का फर्स बहुत ही उत्तम और टाइल्स लगा हुआ था साथ ही दो-दो पंखे भी चल रहे थे। चूँकि पहले दिन सभी अपने-अपने घर से खाना बनवा कर लाए थे अतः रात में उसी भोजन को कर मन्दिर के फर्स पर ही बिछा-बिछा कर सो गए। अगले दिन सुबह मंदिर प्रांगण से ही नित्य क्रिया-कर्म के साथ स्नान ध्यान कर माता मुंडेश्वरी के दर्शन को चल दिए।
अगले दिन शुक्रवार को गुप्तेश्वरनाथ जाते हुए सभी लड़के मस्ती के मूड में थे अतः कभी रुकते तो कभी इधर उधर घूमते पहाड़ो के सैर करते हुए चल रहे थे। इसलिए 3 बजे के चले आधे रास्ते में ही रात हो गई। जब हमलोग दुर्गा जी के मंदिर के पास पहुँचे तो वहाँ पर बहुत सारे दुकान सजे थे जिसमें खाने के साथ सोने की व्यवस्था थी। सभी दुकानवाले अपने-अपने दुकान में folding रखे हुए थे। चूंकि हमलोग ज्यादा थे तो मोल भाव कर 60 रु/व्यक्ति के हिसाब से खाना और सोना दोनों तय कर लिए। हालांकि भीड़ के अनुसार ये रेट घटते-बढ़ते रहता है। सुबह में पास ही में पहाड़ी नदी बह रही थी सो नित्य क्रिया में कोई दिक्कत नहीं हुई।
शनिवार को हमलोग बाबा को जल चढ़ा दिए थे और एक प्रसाद वाले दुकान के यहाँ ही तीन दिन रुकने की बात किए थे, हालांकि तीन दिन पर कोई मान नहीं रहा था लेकिन तीनो दिन उसी से रोज प्रसाद और जल चढ़ाने के लिए लोटकी लेने की बात पर वह मान गया। इसी दिन सोने में सबसे ज्यादा दिक्कत हुई। उसने सोने का कोई पैसा नहीं लिया लेकिन वहाँ जंगल के बीच जमीन पर एक चट पर सोना था। वहाँ हमे कहि भी फोल्डिंग वाला व्यवस्था नहीं मिल पाया क्योंकि वहाँ वाहन जाने लायक कोई बेहतर सड़क ही नहीं है। सुबह 3 बजे सोते वक्त ही सिरहाने कुछ खड़खड़ की आवाज आई, मैंने फतिंगा समझ भगाने का ज्यों ही प्रयत्न करने का प्रयास किया देखा कि यह बिच्छू है फिर क्या था जानकारी मिलते ही सारे कैम्प में हड़कम्प मच गया सभी उठकर अपने जगह पर झाड़-पोछ करने लगे। हालाँकि उस बिच्छू को हमलोगों ने मारना उचित नहीं समझा क्योंकि हमलोग उसके घर में गए थे।
अगला दिन रविवार था सो शाम को बहुत भीड़ हो गई, क्योंकि उसके अगले दिन सोमवार था। जब हमलोग पहाड़ पर से पिकनिक मनाकर आए तो देखे कि उस प्रसाद वाले के पास तिल भर भी जगह नहीं है जहां हम सोए थे। अतः अब हमलोगों को उस चट का सहारा भी छीन गया था। उसी समय कुछ लोगो ने वापस लौटने की योजना बना ली क्योंकि हमलोग पहले ही दो दिन लगातार जल ढार लिए थे। अतः शाम को 8 बजे चलना शुरू कर दिए। बीच में एक दो जगह पत्थर पर ही पॉलीथिन बिछाकर एक दो घण्टा सोए और अंततः 5 बजे सुबह तक हमलोग अपने पीकप के पास पहुँच गए।
♦भोजन पकाने का व्यवस्था
शुरू में जब हमने जंगल के लकड़ी से लिटी पकाने की बात सुनी तो शंशय में पड़ गया इनलोगो को इस बरसात में जंगल में सुखी लकड़ी कहा मिलेगी। लेकिन वहाँ की लकड़ियों की बात ही कुछ और है और वो तब पता चला जब रविवार को लिटी पकाने वक्त ही घनघोर बारिस आ गई। फिर उसके तुरन्त बाद दूसरी लकड़ी लाकर जलाने से तुरंत जल उठी।
पहले दिन शाम को हमलोगों का दो ग्रुप बन गया। एक ग्रुप जंगल से लकड़ी तोड़ने चल दिया दूसरा आटा और सातु बनाने। प्रसाद वाले दुकानदार से ही टांगी भी मिल गई। लकड़ी काटने के बाद हमलोग 2 kg आलू लेकर एक भोजन के दुकान पर गए जहाँ उसको इसे अपने बर्तन में उबालने को कहा। 20 रु में वो उबालने को राजी हो गया। कुल मिलाकर बहुत ही स्वादिष्ट लिटी बनी।
जहाँ तक लिटी में प्रयुक्त होने वाला सारा सामान की बात है, जैसे सत्तू, आटा, आलू, बैगन, तेल इत्यादि ये हमलोगों ने चेनारी में ही खरीद लिए थे। फिर सभी वस्तुओं को थोड़ा-थोड़ा करके सबके बैग में रखवा दिए थे इससे ढोने में किसी के ऊपर कोई खास बोझ भी नहीं पड़ा। इसी में आते वक्त रास्ते में एक लड़का जब अपने हिस्से का आटा सत्तू बैग से निकाला तो लँगूर ले कर भाग गए।
अगले दिन रविवार को जब हमलोग ऊपर गए तो जमीन से निकलने वाले एक पानी के स्रोत को ढूंढ निकाले थे फिर वही से पानी का सारा इंतेजाम हो गया। और नीचे में तो पानी के लिए बहुत सारे कल लगे हुए थे।
♦अव्यवस्था का आलम
किसी भी प्रकार की प्रशासनिक व्यवस्था का न होना
ये हालांकि अपने आप में आश्चर्यजनक है कि जहाँ लाखो की भीड़ आ रही है वहाँ प्रशासन के नाम पर एक भी पुलिसवाला ड्यूटी करता नहीं दिखा। न ही वहाँ बाबा के पास बुनियादी सुविधा सरकार के तरफ से दिखी। जो भी व्यवस्था था वहाँ भक्तो के सहयोग से वहाँ के स्थानीय लोगो द्वारा किया जा रहा था।
इस शराब बंदी के माहौल में वहाँ जगह-जगह दारू बिक रही थी। जिसमें अधिकांस महुआ था, और बेचने वाले इसे बोल-बोल कर बेचने का प्रयास कर रहे थे। जैसे कि “दर्द के दवाई- दर्द के दवाई”, “पंचर के दवाई” इत्यादि।
वहाँ एक भी शौचालय नहीं था जिसके कारण आसपास के पहाड़ और नदी बहुत ही दूषित हो गए थे।
गुफा के अंदर बिजली भी लोकल समिति द्वारा ही पहुचाई जा रही थी जिसके द्वारा एक नियत समय में ही रोशनी रहती थी उसके अलावा टॉर्च लेकर बाबा के दर्शन को जाना होता था।
यातायात की व्यवस्था तो इस कदर खराब है कि अगर कोई वहाँ बीमार हो जाए तो उसे भी पैदल ही लाना-ले जाना पड़ेगा।
ये तो हो गई अव्यवस्था की बात लेकिन इतनी घोर अव्यवस्था के बावजूद हर साल लाखों भक्तों का उत्साह पूर्वक वहाँ जाना यह सिद्ध करता है कि सुविधा के आगे आस्था भारी है।
॥बाबा गुप्तेश्वरनाथ की जय॥