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मेरी पहली उत्तराखंड यात्रा हरिद्वार ऋषिकेश, मई 2022

मेरी_पहली_उत्तराखंड_यात्रा_हरिद्वार_ऋषिकेश

#यात्रा_वृतांत by Alok

(8 मई-11 मई 2022)


हुत दिन से मन तो था ही कि उत्तराखंड चला जाए, और बहुत दिन बीत गया था कही दूर की यात्रा पर गए हुए भी, तो उस दिन आचानक योजना बना लिए कि हम आज ही निकल लेंगे तो ही घूम पाएंगे, नहीं तो आगे कुछ दिन मेरे लिए बहुत व्यस्त रहने वाला था, फिर क्या था जनरल टिकट कटाए और हरिद्वार-ऋषिकेश की योजना बना कर बैठ गए हावड़ा हरिद्वार में, यही एकमात्र गाड़ी ही है जो बक्सर से सीधे हरिद्वार पहुँचाती है, हालाँकि अंदर स्लीपर में बैठने के लिए फाइन जरूर देना पड़ा लेकिन पूरे रास्ते आराम से सो कर गए। उस दिन यह गाड़ी 6 घण्टे लेट थी और सुबह यानी अगले दिन 8 मई को करीब 5 बजे बक्सर आई, और पहुँचते-पहुँचते रात्रि के 11 बज गए, वहाँ अपने एक जान-पहचान के यहाँ पहले से ही रहने की व्यवस्था कर लिए थे, मेरे साथ मेरा एक ममेरा भाई है “विवेक” वो भी आ गया था।

हम दोनों लोग बस एक दो दिन का प्लान बना कर ही आए थे इसलिए ज्यादा जगहों पर नहीं घूम सकते थे। काफी देर रिसर्च करने के बाद पता चला कि ऋषिकेश के पास एक प्रसिद्ध मणिकूट पर्वत है जिसपर नीलकंठ महादेव विराजमान है। वहाँ पर जाने के लिए 11 किमी की खड़ी चढ़ाई चढ़नी थी, जो जंगल के बीच से होकर गुजरता था, इसके अलावा सड़क मार्ग से भी जाने विकल्प था। ऋषिकेश में और भी रोमांचकारी चीजे है जैसे रिवर राफ्टिंग वैगेरह लेकिन हमको जंगल थोड़ा ज्यादा आकर्षित करते है इसलिए हमलोगों ने ट्रैकिंग करने को ही तव्वजो दी और इसके लिए मैंने बहुत सारे सोर्स से जरूरी जानकारी इक्क्ठा करना शुरू कर दिया, लेकिन हमे हर जगह नकारात्मक उत्तर ही मिल रहे थे कि अभी मत जाओ जंगली जानवर हमला कर देंगे, तो गर्मी है इत्यादि।

दरअसल यह इलाका राजाजी राष्ट्रीय उद्यान से सटा या इसके अंतर्गत आता है जिसमें बहुतायत की संख्या में हाथी, बाघ, तेंदुआ इत्यादि मिलते है। इसीलिए जिससे भी पूछते वो यही कहता कि अगर जाना भी है तो कम से कम 20 लोगो का ग्रुप रहे तभी पैदल जाना। इस वजह से हमलोगों ने वाहन द्वारा सड़क मार्ग वाला रास्ता ही चुन लिया और पहुँच गए निलकंठ बाबा के पास। ऋषिकेश में रामझूला से गंगा नदी पार करने के बाद स्वर्गाश्रम नामक जगह है वही से निलकंठ महादेव मंदिर जाने के लिए वाहन भी मिलते है और एक मार्ग पैदल भी जाता है। वहाँ हमलोग पहुँच कर एक छोटे से झरने में स्नान किए फिर मन्दिर के दर्शन किए, लेकिन मन मान ही नहीं रहा था, कि इतना दूर आए और कुछ रोमांच नहीं किए।

फाइनली डिसाइड कर लिए कि हमलोग पैदल ही उतरेंगे, अब जो होगा देखा जाएगा। उस समय दोपहर के तीन बज रहे थे, और सबसे बुरी बात यह थी कि वहाँ का तापमान और बक्सर का तापमान एक जैसा ही था, भयंकर गर्मी थी, उस पर 11 किमी पैदल यात्रा। हमलोगों ने एक-एक बोतल पानी में ओआरएस मिलाया और पीते-पीते चल दिए। निकले तो अकेले ही थे लेकिन रास्ते में कई लोग उधर से पैदल चढ़ते दिखाई दिए, जिनसे बात करने पर मन का डर दूर होते गया, और इतना निकल गया कि हमलोग उतरते वक्त मेन रूट छोड़ कर शार्ट कट के चक्कर में उबड़-खाबड़ वाले रास्ते चूज करने लगे। अंततः वही हुआ जिसका डर था, लंगूरों के एक समूह ने हमलोगो को घेर लिया। काट नहीं रहे थे लेकिन रास्ता भी नहीं छोड़ रहे थे। हमारे पास कुछ बिस्किट थे उसका इस्तेमाल किए तो कुछ और लँगूर दूर से भी आ गए, फिर लगता है बिस्किट खाने के बाद उनलोगों प्यास लग गई। एक लँगूर बिलकुल पास आकर विवेक के हाथ से बोतल छीन लिया। फिर एक और लँगूर मेरे पास आ कर मेरे बैग से बोतल निकाल लिया, और आराम से ढक्कन खोलकर उसका सारा पानी पी गए। राहत की बात यही थी कि पानी पीने के बाद उनलोगों ने रास्ता छोड़ दिया, फिर उसके बाद से शार्ट कट रास्ते अपनाना हमलोगों ने कम कर दिया।

आधा एक घण्टा और चले तो फिर एक राहगीर से दो घुट पानी मिला, फिर आगे एक दुकान भी मिल गया। नीचे उतरते-उतरते शाम के 06 बज चुके थे, और हमलोग बुरी तरह थक कर यही सोच रहे थे कि उतरने में यह हाल है तो जो चढ़ रहे है उनका हाल कैसा होगा। शाम को 9 बजे तक हमलोग घर पहुँच गए थे, इसके बाद हमलोग अगले दिन हरिद्वार नगर भ्रमण कर वापस बक्सर जाने की योजना बनाए थे लेकिन इतने ज्यादा थक चुके थे कि अब लग रहा था कि घुमने से मन भर गया। और सुबह ही वापस बक्सर जाने की योजना बनाने लगे, लेकिन वहाँ से जो ट्रेन थी वो रात में थी और फिर से लेट थी। इसलिए दिल्ली से बक्सर का ट्रेन टिकट बुक करने की कोशिश किए और बस द्वारा चल दिए हरिद्वार से दिल्ली।

लेकिन बुकिंग का प्रयास असफल रहा और जनरल टिकट के काउंटर पर गए तो पता चला नई दिल्ली में अभी तक यह सुविधा चालू ही नहीं हुई है। अंततः भगवान भरोसे मगध में सवार हो गए, और एक जगह दो सीट खाली दिखी वहाँ सो गए, उसके बाद तो सुबह हो गया न कोई यात्री अपना दावेदारी पेश करने आया न ही कोई टीटी ही पूछने आया। अगले दिन यानी 11 मई को हम बक्सर में थे।

समाप्त।

तो कैसी लगी मेरी इस यात्रा की कहानी, टिप्पड़ी अवश्य कीजिएगा।